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Thursday, October 24, 2019

अन्न की बर्बादी रोकिए सब का पेट भरेगा

अन्न की बर्बादी रोकिए सब का पेट भरेगा 

दो दिनों के बाद दिवाली आएगी चारों तरफ खुशियों का माहौल होगा। दिए जलेंगे और लाखों खर्च होगा। इसमें बहुत बड़ा हिस्सा खाने वाली चीजों की बर्बादी का भी होगा। इसके पहले शादी ब्याह के मौसम में भी खाने वाली चीजों की बर्बादी देखी गई है।  इसी बीच पसलियों से फूट कर बहते मवाद की तरह एक रिपोर्ट भी आई कि भारत भुखमरी के पैमाने पर बहुत ज्यादा गिर गया है यानि यहां बहुत ज्यादा लोग ठीक से खा नहीं पाते। पेट नहीं भर पाते हैं।  आंकड़े बताते हैं भारत बहुत तेजी से तरक्की कर रहा है लेकिन इस भारत के बच्चे भूखे रहने की आदत डाल रहे हैं। यहां की नई  पीढ़ी में असमानता और मानव व्याधियों को सहने की ताकत बढ़ती जा रही है। भारत तकनीकी क्षेत्र में लंबी छलांग लगा रहा है और भूख से मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहा है। अगर नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी के मॉडल पर भारत की आबादी के भूख का समग्र विश्लेषण करें तो यहां एक साथ कुपोषण , जरूरत से ज्यादा पोषण तथा कुपोषण के कारण व्याप्त अक्षमता कायम है।  तीनों का अलग अलग समाधान संभव नहीं है। वैश्विक भूख सूची में भारत का स्थान 2019 में 102 हो गया  जबकि 2010 में यह पंचानवे था तथा सन 2000 में यह 83 वें स्थान पर था यानी 19 वर्षों में हमारा स्थान 19 सीढ़ियों के नीचे आ गया । जिस पाकिस्तान को लगातार भूखों और नंगों का देश कहा जा रहा है उसका स्थान 94 है । भारत में 10 बच्चों में से तीन अविकसित हैं और इसका मुख्य कारण है बढ़िया भोजन नहीं प्राप्त होना।  कुपोषण देश के विकास के लिए एक तरह से अभिशाप है। क्योंकि कुपोषण का सीधा असर शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है ।
अध्ययन से पता चला है कि कुपोषण और भूख बच्चों की सीखने की क्षमता को खत्म कर देते हैं। यहां तक कि वे बहुत बुनियादी चीजें भी ठीक से समझ नहीं पाते और इससे उनका विकास रुक जाता है।
      यद्यपि देश में भूख से मुकाबले के लिए कई योजनाएं हैं लेकिन सही रूप में उन्हें अमल में नहीं लाया जाता। सरकार प्रतिवर्ष लाखों टन अनाज किसानों से खरीदती  है ताकि कम कीमत पर लोगों को खाद्यान्न उपलब्ध हो सके ।साथ ही आपात स्थिति में भी कमी ना हो । लेकिन क्रूर सत्य है कि जो अनाज सरकार खरीदती है उसका बहुत बड़ा हिस्सा सही भंडारण नहीं हो पाने के कारण बर्बाद जाता है ।जयही नहीं हमारे पास जो संसाधन हैं उसका भी सही उपयोग नहीं हो पाता या वह सही ढंग से बने नहीं होते हैं। राष्ट्र संघ के अध्ययन के मुताबिक भारत अनाज उपजाने के लिए प्रतिवर्ष 230 क्यूबिक किलोमीटर ताजे पानी का उपयोग करता है और अंततोगत्वा यह बर्बाद हो जाता है। इस पानी को 10 करोड़ लोगों को हर साल पीने के पानी के रूप में काम में लाया जा सकता है यही नहीं इस पानी के लिए जो 30 लाख बैरल तेल का उपयोग होता है वह भी बर्बाद हो जाता है । सरकार विकास के लिए रात दिन एक करती है लेकिन हमारे देश के नौजवानों को , किशोरों को, बच्चों को सही खाना नहीं मिल पाता और उनका मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है ।सोचने की क्रिया प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
जिस देश के नौजवान ठीक से सोच नहीं सकेंगे और मजबूती से अपना काम नहीं कर पाएंगे वो देश कैसे विकसित होगा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास का जो चिंतन है उसकी पृष्ठभूमि में इसी पोषण का दर्शन है। वह चाहते हैं देश की जनता राजनीतिक आंकड़े बाजी और जोर आजमाइश से अलग कुछ ऐसा करे जिससे कम से कम अच्छा खाना भरपेट मिल सके। मेक इन इंडिया तथा इस तरह की अन्य परियोजनाएं इसी प्रयास का अंग हैं। वह क्रियाशील है तो देश को एक दिशा में सोचने और उस पर काम करने के पायलट प्रोजेक्ट के रूप में प्रधानमंत्री ने सबसे पहले स्वच्छता सुविधाओं को उपलब्ध कराने की योजना बनाई। ताकि बच्चे अस्वच्छता के कारण होने वाली बीमारियों से मुक्त तो हो। सरकार ने इसके बाद वाला कदम  स्कूलों में मिड डे मील स्कीम , इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेज और सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुधारने की कोशिश आरंभ की है जिसके तहत सबसे पहला कदम अफसरशाही में भ्रष्टाचार को खत्म करना है ताकि लालफीताशाही उसी ढंग से सोचे और क्रियाशील हो जिस ढंग से  प्रधानमंत्री सोचते हैं । क्योंकि दुनिया का कोई देश गरीबी को तब तक नहीं मिटा सकता है जब तक लोगों के लिए  सही अवसर नहीं उत्पन्न हो और उस अवसर में सरकारी अफसरशाही की ईमानदारी पूर्ण भूमिका ना हो।


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