अगर किसी फिल्म में डायलॉग की तरह चुनाव के परिणामों की स्क्रिप्ट लिखी जाए देश में सबसे महत्वपूर्ण होगा कि विपक्ष कहेगा मेरे पास देश की बिगड़ती आर्थिक स्थिति, बेरोजगारी किसानों की दुरावस्था जैसे मुद्दे हैं। तो सत्तापक्ष ताल ठोक कर कहेगा मेरे पास मोदी है । अभी हाल में एक नारा आया था "मोदी है तो मुमकिन है ",लेकिन इस बार के चुनाव परिणाम खासकर हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव के परिणाम तो यही बता रहे हैं हर बार मोदी है तब भी मुमकिन नहीं है । चुनाव परिणाम के बाद मोदी जी ने टेलीविजन पर जो कहा और उससे साफ जाहिर होता है कि उन्हें पराजय खल गई। महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना का पिछला टारगेट पार करने का टारगेट लिया था । उसी तरह हरियाणा में भी 75 के पार का टारगेट था लेकिन दोनों लक्ष्य हासिल नहीं हो सके। पिछली बार महाराष्ट्र में भाजपा को 122 सीटें मिली थी जो इस बार हासिल नहीं हो सका और शिवसेना का भी नंबर पहले से कम रहा। यहां सरकार बनाने के लिए 146 सीटों की जरूरत है पिछली बार सरकार 185 सीटों के साथ बने थे। इस बार का जादुई आंकड़ा पिछली बार से कुछ सीट ज्यादा है। महाराष्ट्र और हरियाणा में संभवत भाजपा की सरकार बनेगी और वही मुख्यमंत्री होंगे जो पहले थे क्योंकि मोदी और शाह दोनों ने इनके कार्यकाल की प्रशंसा की है और आगे के लिए बधाई दी है । इससे साफ जाहिर होता है कि उन्होंने इन्हीं दोनों नेताओं को मुख्यमंत्री बनाने की विचार किया है। इस चुनाव में सबसे दिलचस्प बात है कि इस बार जनता ने विपक्ष को भी मजबूत किया है। बेशक उसे सत्ता नहीं दी। क्योंकि वहां लड़ाई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और जननायक जनता पार्टी के बीच ही थी। कांग्रेस के उम्मीदवार तो बस लड़ रहे थे। लेकिन पार्टी कहीं नहीं दिख रही थी। महाराष्ट्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिवाजी के मेकअप में चुनाव प्रचार किया। कुछ ऐसा आईकॉनिक प्रचार था लगता है जादू हो जाएगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं है कुछ खास नहीं हुआ । आईकॉनिक जादू नहीं चल सका। अब प्रश्न उठता है यहां शिवसेना की भूमिका क्या होगी ?उद्धव ठाकरे तो आधी आधी की बात कर रहे हैं यानी एक बार यह उत्तर प्रदेश में हुआ था। ढाई साल भाजपा और ढाई साल से शिवसेना का मुख्यमंत्री का फॉर्मूला । लेकिन यह ना यूपी में चला और ना ही कश्मीर में। इस बार शिवसेना को 63 सीट नहीं मिली। मजे की बात है यह कांग्रेस ने अच्छा किया है।
हरियाणा में भाजपा पिछली बार 47 पर थी इस बार सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद उसके सारे मंत्री हार गए । ऐसी जीत का होगा भी क्या? किसी तरह से इज्जत बची लेकिन इज्जत का बचना बेइज्जती के साथ निकल जाने के अलावा कुछ नहीं था। दोनों राज्यों में कांग्रेस को थोड़ी ज्यादा सीट हासिल हुई और एनसीपी की टैली भी आगे बढ़ी।
देशभर में 51 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए उनमें से 20 सीटों पर भाजपा पहले से काबिज थी और अब जो परिणाम आए हैं उसे पता चलता है कि उसे केवल 17 सीटों पर विजय मिली है। यानी 3 सीटें घट गईं। अब चूंकि यह सारी सीटें देश भर में फैली हैं इसलिए सिर्फ महाराष्ट्र और हरियाणा नहीं बल्कि पूरा देश यह इशारा कर रहा है कि बीजेपी से आशाएं पूरी नहीं हुई । दिल्ली और झारखंड में चुनाव होने वाले हैं दिल्ली में अवैध कॉलोनियों का मरहम तो थोड़ा राहत पहुंचा दे लेकिन झारखंड का क्या होगा?
समग्र रूप से चुनाव परिणाम को देखें तो एक बात सामने आती है कि भाजपा को अपने भीतर झांकना होगा तथा उन कारकों को समझना होगा जिनके चलते वह इन चुनावों में सफलता हासिल नहीं कर सकी। अगर ऐसा नहीं करती है तो धीरे धीरे राष्ट्रीय स्तर पर भी घटने लगेगी जो आगे चलकर खतरनाक हो सकता है।
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