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Tuesday, October 22, 2019

भारत में अपराध

भारत में अपराध 

2 दिन पहले हिंदू नेता कमलेश तिवारी की उनके घर में ही हत्या कर दी गई अभी खबर आई है कि मुजफ्फरनगर जिले के पुरकाजी शहर के  समीप एक गांव में  एक दलित महिला की हत्या कर दी गई। इसी पृष्ठभूमि में सोमवार को भारत सरकार ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़े  "क्राईम इन इंडिया 2017" जारी किया। लेकिन इस आंकड़े में कहीं भी लिंचिंग का जिक्र नहीं है जबकि हमारे समाज में  इस पर सबसे ज्यादा बहस होती है  और  इसे लेकर  सियासत गर्म हो जाती है। लेकिन अलग खंड है जिसमें राष्ट्र विरोधियों द्वारा किए गए अपराधों का ब्यौरा है। इस बात का कहीं भी विश्लेषण नहीं है राष्ट्र विरोध क्या है उनकी परिभाषा क्या है। किन लोगों या समुदायों को उस संवर्ग में रखा जाएगा  अफवाह  रखा गया है। एक तरफ देशद्रोह कानून को कमजोर करने या उसे समाप्त करने पर बहस चल रही है दूसरी तरफ अपराध  रिकॉर्ड्स में यह एक अलग कालम बनता जा रहा है।
    यह रिपोर्ट इस वर्ष के शुरू में आनी चाहिए थी जिसमें लिंचिंग इत्यादि का भी  ब्योरा प्रस्तुत किया जाना चाहिए था इसमें पत्रकारों की हत्या का भी जिक्र होना चाहिए था लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है । इस बीच एक नया खंड जोड़ा गया है। वह है हत्या का कारण जिसमें सांप्रदायिक या धार्मिक लिखा गया है । ऐसा महसूस होता है  कालांतर में  सांप्रदायिक कारणों को  धार्मिक कारणों से जोड़ दिया जाएगा और फिर उसकी व्याख्या  राष्ट्र विरोध या राष्ट्र द्रोह के संदर्भ में किया जाने लगेगा। यह 2017 की रिपोर्ट है। इस वर्ष लगभग पचास लाख संज्ञेय अपराध रिकॉर्ड किए गए थे जो पिछले वर्ष यानी 2016 से 3.6 प्रतिशत ज्यादा थे। एनसीआरबी के आंकड़े ही बताते हैं के 2016 में 48 लाख एफ आई आर दर्ज किए गए थे। एनसीआरबी का यह कथित तौर पर ताजा आंकड़ा लगभग 1 वर्ष विलंब से जारी किया गया है। आंकड़े बताते हैं कि 2017 में महिलाओं के खिलाफ 3 लाख 59 हजार 849 मामले देशभर में दर्ज किए गए। यह प्रवृत्ति लगातार तीन वर्षों से बढ़ती देखी जा रही है । महिलाओं के खिलाफ जो अपराध हैं उनमें हत्या, बलात्कार, दहेज हत्या, आत्महत्या के लिए उकसाया जाना, हमले, महिलाओं के प्रति क्रूरता और अपहरण जैसे अपराध शामिल हैं। 2017 के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के प्रति सबसे ज्यादा अपराध उत्तर प्रदेश में हुए। देश के सबसे अधिक जन संकुल इस राज्य में महिलाओं के प्रति अपराध की संख्या 56011 है। इसके बाद 31979 अपराधों के साथ महाराष्ट्र का नंबर आता है। पश्चिम बंगाल थोड़ा ही पीछे है। यहां आलोच्य वर्ष में 30,992 ,मध्यप्रदेश में 29,778, राजस्थान में 25,993 और असम में 23,082 मामले दर्ज किए गए । दिल्ली में महिलाओं के प्रति अपराध की संख्या लगातार तीसरे वर्ष भी घटी है।  जबकि अरुणाचल, गोवा , हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम ,नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा इत्यादि राज्यों में महिलाओं के प्रति अपराधों की संख्या तीन अंकों में है जो राष्ट्रीय आंकड़ों की तुलना में 1% भी नहीं है ।
बच्चों के प्रति अपराध की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। 2017 में 63,349 बच्चे लापता हुए। जिनमें 20,555 बच्चे लड़के थे, 22,691 लड़कियां तथा 103 ट्रांसजेंडर थे।
अगर आंकड़ों का विश्लेषण करें तो एक अजीब निष्कर्ष सामने आता है। इसके अनुसार आलोच्य  वर्ष में हत्या के मामले 5.9 प्रतिशत घटे हैं । 2017 में हत्या के 28,653 मामले दर्ज हुए जबकि 2016 में यह आंकड़ा 30450 था। हत्या के मामले में  झगड़े सबसे प्रमुख कारण थे। आंकड़े के मुताबिक झगड़ों के कारण हत्या के 7898 मामले दर्ज हुए, जबकि व्यक्तिगत कारणों से या व्यक्तिगत दुश्मनी से 4660 और लाभ के चलते हत्या के 2103 मामले दर्ज हुए। दूसरी तरफ अपहरण की घटनाओं में 9% की वृद्धि हुई । 2016 में जहां 88008 अपहरण की घटनाएं हुई थी वही 2017 में यह बढ़कर 95893 हो गई हैं।
        अगर इन इन आंकड़ों के आधार पर विक्टिमोलॉजी के सिद्धांत पर क्राइम प्रोफाइलिंग की जाए तो उस खास इलाके के आचरण संबंधी पैटर्न को समझा जा सकता है और उसकी व्याख्या की जा सकती है। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं उत्तर प्रदेश में महिलाओं के प्रति अपराध की घटनाएं बढ़  रही हैं। इसका स्पष्ट अर्थ है कि वहां महिलाओं के प्रति  कोमल भाव या उनका सम्मान नहीं है। यह एक बहुत ही खतरनाक प्रवृत्ति है जो आगे चलकर महिला दमन का रूप ले सकती है । एक समाज का यह स्वरूप बहुत ही खतरनाक हो सकता है। जिसमें सुधार के लिए सख्त कानून का नहीं कानून का सख्ती से पालन जरूरी है। शुरू में ही चर्चा की गई उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के एक शहर के किनारे एक किशोरी का अपहरण के बाद हत्या कर दी गई इस पर भी कोई चर्चा नहीं हुई। जबकि एक हिंदूवादी नेता की हत्या में पूरे देश को सन्न कर दिया यह एक मनोभाव है और इस मनोभाव को बदलना जरूरी है। आंकड़े केवल संख्या बताते हैं संख्या के पीछे के मनोभाव को समझना और उसे आवश्यकतानुसार बदलना हमारे समाज और हमारे नेताओं का काम है।


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