कुछ साल पहले एक बहुत मशहूर किताब आई थी "फ्रीडम एट मिडनाइट।" उस किताब में भारत की आजादी की व्याख्या थी। उसके कुछ साल पहले सचमुच आधी रात को भारत आजाद हुआ था तो जवाहरलाल नेहरू ने एक भाषण दिया था उसकी सबसे मशहूर पंक्ति है "ट्राईस्ट विद डेस्टिनी" आज हम उसी डेस्टिनी से मुकाबिल हैं। अब 30 अक्टूबर की रात धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर 2 राज्यों में बंट गया। अब से कोई कोई 72 वर्ष पहले कश्मीर के शासक महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ कश्मीर के विलय की संधि जिसके बाद यह रियासत भारत का अभिन्न हिस्सा बन गई । बंटवारे का यह समां इतिहास में दर्ज हो गया। 5 अगस्त को जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद उसे दो हिस्से में बांटने का फैसला भी किया गया था। एक हिस्सा था लद्दाख और दूसरा जम्मू कश्मीर। साथ ही दोनों को केंद्र शासित राज्य भी घोषित कर दिया गया था। जम्मू कश्मीर को मिला राज्य का दर्जा गुरुवार को खत्म हो गया और उसके साथ ही उसे 2 केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया। इसके साथ ही राज्यों के उपराज्यपाल भी अपना पदभार संभाल लेंगे। जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल होंगे गिरीश चंद्र मुर्मू और लद्दाख का भार आरके माथुर को सौंपा गया है।
भारत के इतिहास की यह पहली घटना है जब दो केंद्र शासित राज्य एक ही राज्य से निकले हैं। इसके साथ ही देश में राज्यों की संख्या 28 और केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या नौ हो गई । दोनों केंद्र शासित प्रदेश देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के दिन अस्तित्व में आ गए । सरदार पटेल को देश की 560 से ज्यादा रियासतों के भारत में विलय का श्रेय है । हमारे देश में 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जाता है। कानूनन केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में पुडुचेरी की तरह ही विधानसभा होगी जबकि लद्दाख चंडीगढ़ की तर्ज पर बगैर विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेशों होगा।
हालांकि आगे क्या होगा इस बारे में कुछ भी कहना बहुत जल्दी बाजी होगी। किंतु केंद्र को उम्मीद है कि अब वार्ता आरंभ हो जाएगी और कश्मीर के सभी मशहूर नेताओं की गिरफ्तारी के बाद जो राजनीतिक शून्य कायम हो गया है, वह भरना शुरू होगा। केंद्र सरकार एक नया राजनीतिक उत्प्रेरण शुरू कर रही है जो वहां के लोगों और नई दिल्ली के बीच बातचीत का आधार बनेगा। जम्मू और कश्मीर एक बहुत बड़े बदलाव से गुजर रहा है और यह बदलाव वे लोग ज्यादा महसूस कर रहे हैं जो कभी सत्ता में हुआ करते थे और इसलिए उनकी बेचैनी को समझा जा सकता है। कश्मीर में एक सबसे बड़ा तत्व है पाकिस्तान के बरअक्स वहां की सुरक्षा की स्थिति। क्योंकि पाकिस्तान कश्मीर के राष्ट्र विरोधी तत्वों को लगातार और अबाध मदद करता है। अब कश्मीर में जो राजनीतिक मैदान बचा है उसमें नए खिलाड़ी प्रवेश कर रहे हैं लेकिन पुराने खिलाड़ियों को पछाड़ना आसान नहीं होगा। नए लोगों के कश्मीर में पैर जमाने की बहुत कम घटनाएं सामने हैं। पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद लोन ने एक व्यवहारिक राजनीतिक विकल्प तैयार करने की कोशिश की लेकिन कुछ नहीं कर पाए। थोड़ी सी सफलता उन्हें कुपवाड़ा में मिली । फिलहाल नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के आधार डगमगा रहे हैं और उसके कई कारण हैं। पहला कि वे खुलकर पंचायत चुनाव लड़े और राज्य भर के पंचायतों के पंच और सरपंच दूसरी पार्टियों के हैं। दूसरी बात यह है कि शासन में उनकी पकड़ नहीं है और कश्मीरी इसे अच्छी तरह समझते हैं। वहां की अवाम किसी विकल्प की तलाश में है। तीसरी बात है कि वहां का सरकारी तंत्र केंद्र की बात सुनता है। राज्य का उस तंत्र पर या अफसरशाही पर कोई पकड़ नहीं है । पुरानी अफसरशाही का पुराने राजनीतिज्ञों से जो भी तालमेल है उससे नए तंत्र का उभार जरूरी है ताकि नए लोगों के समर्थक बढ़ सकें। अब इन नए खिलाड़ियों से क्या उम्मीद हो सकती है यह आने वाला वक्त ही बताएगा । इसमें सबसे महत्वपूर्ण है पाकिस्तान की गुप्त दखलंदाजी। पाकिस्तान को किसी भी तरह से रोका नहीं गया तो वह यहां गड़बड़ी पैदा करेगा । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी को रोकने की योजना में जुटे हुए हैं।
Thursday, October 31, 2019
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