CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Thursday, June 25, 2020

कोविड-19 से लड़ाई में बढ़ रही है लापरवाही



कोविड-19 से लड़ाई में बढ़ रही है लापरवाही


पश्चिम बंगाल सरकार ने लॉक डाउन की अवधि बढ़ाकर 31 जुलाई कर दी है लेकिन जितनी छूट मिल रही है वह मिलती रहेगी। सरकार ने यह फैसला सर्वदलीय बैठक के बाद किया। वैसे भी कोरोना महामारी एक निर्णायक और खतरनाक दौर में पहुंच गई है। लॉकडाउन में देशव्यापी छूट दिए जाने के बाद सरकार और मीडिया का फोकस दूसरे मुद्दों पर चला गया। राजनीतिक नेताओं की प्राथमिकताएं बदल गयीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब घोषणा की कि लॉकडाउन धीरे धीरे पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा। इस घोषणा के बाद यह धारणा जोर पकड़ ली कि अनलाॅक डाउन1 के बाद अनलॉकडाउन 2 भी आएगा। अनलॉक डाउन 2 आएगा अथवा नहीं यह तो बाद की बात है लेकिन फिलहाल नए मामलों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। रोजी रोटी के लिए लॉकडाउन हटाना जरूरी था लेकिन इसके साथ ही यह जरूरी था कि प्रशासन का ध्यान इस पर रहे। पर्याप्त सोशल डिस्टेंसिंग हो, सफाई हो और रोगी के संपर्क में आने वालों की पहचान जरूरी हो। लोगों के मन में बैठाना होगा कि महामारी अगर बढ़ी लॉकडाउन और बढ़ा दिया जाएगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। यहां तक कि अनलॉक डाउन के बाद कोविड-19 के अस्पतालों में तैनात डॉक्टरों को भी संक्रमण लगा। लोगों को लगा आजादी मिल गई और लोग बिना मास के भीड़भाड़ वाली जगहों में घूमने लगे। कोलकाता महानगर के सबसे जनसंकुल बाजार बड़ा बाजार और कैनिंग स्ट्रीट में धक्का-मुक्की शुरू हो गई। किसी को इस बात की परवाह नहीं थी कि संक्रमण बढ़ सकता है और वह भी इसके शिकार हो सकते हैं। लॉकडाउन के दौरान लोगों में जो संगम देखा गया था वाह तेजी से टूटता देखा गया।


महामारी को काबू में करने के लिए पिछले 4 महीनों में देशभर में प्रशासन ने प्रशंसनीय काम किया। पूरे देश में एक तरह से वार रूम बनाकर जिस तरह से प्रशासन और राजनीतिक नेताओं ने काम किया तारीफ के काबिल था। उदाहरण के लिए कोलकाता महानगर के आसपास जितनी झोपड़पट्टी थी उसमें प्रशासन ने इसे फैलने से रोका। यही हाल मुंबई के धारावी में हुआ। इससे जाहिर होता है अगर प्रशासन किसी काम को मिशन मान ले और नेता उसमें समर्थन दें तो कहीं बेहतर प्रदर्शन हो सकता है। लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि मिशन वाली भावना अगर खत्म हो गई और चलता है वाला रवैया शुरू हुआ तो प्रशासन फिर पिछले ढर्रे पर लौट आएगा जो कुछ हासिल हुआ वह समाप्त हो जाएगा। कोलकाता में यही हुआ इनफ्लुएंजा आदि बीमारी की शिकायतें लेकर अस्पतालों में आने वालों की लाइन लग गई और फिर जांच के दौरान मामलों की संख्या बढ़ती गई यह सामुदायिक संक्रमण के स्पष्ट लक्षण हैं। मीडिया कामयाबी की खबरों की तलाश में घूमता रहेगा। लेकिन मीडिया ने या किसी और ने नतीजे पर ध्यान नहीं दिया। नतीजा तीन बातों पर निर्भर करता है वे हैं संयोग, दिशा और विकल्प। यहां आकर यह भी मानना होगा ऐसे मामलों में किस्मत भी अहमियत रखती है, पिछला इतिहास भी महत्व रखता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि फैसले कितनी अच्छी तरह लागू किए जाते हैं और उसमें लोगों का कितना सहयोग मिलता है। ध्यान देने की बात है कि कई बार एक जगह के मुकाबले दूसरी जगह अच्छा काम हुआ। क्यों हुआ? मीडिया के हवाले से या सरकारी रणनीतियों की एक तस्वीर जरूर पेश करें लेकिन उपलब्ध होगी। विभिन्न तरह के मॉडल का प्रोजेक्शन करके यह जरूर बताया जा सकता है कि सब कुछ ठीक-ठाक है लेकिन ऐसी बातों से खतरा और बढ़ेगा। लोग जीत का एलान करने लगेंगे और ऐसे काम करने लगेंगे मांगो सब कुछ सामान्य हो गया। जीत के पहले जीत का जश्न मनाना खतरनाक होता है क्योंकि इसमें धोखे की गुंजाइश ज्यादा होती है और ऐसी मनोस्थिति से बचना जरूरी है। नेता और प्रशासन ऐसे मामलों की तस्वीर नहीं देखना चाहते। और इससे भी ज्यादा खतरनाक बात यह है कि इसकी तुलना आरंभ हो जाती है और सामने कसौटी पर वह जगह होती है जहां स्थिति बेहतर हो। ऐसी हालत में मामलों की संख्या कम दिखाने के लिए टेस्टिंग कम की जाती है। परिणाम यह होता है अचानक बड़ी महामारी सामने आ जाती है और सामुदायिक संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। इस खतरे के मुकाबले के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय का एक पैमाना तय करना चाहिए और राज्य सरकारों पर छोड़ देना चाहिए कि वह कितनी टेस्टिंग कराना चाहती है। केंद्र सरकार प्रति सप्ताह 10 लाख आबादी पर 2500 टेस्टिंग का शुरुआती पैमाना तय करे। यह राज्यों, जिलों, नगर पालिकाओं पर लागू हो। यह शुरुआती पैमाना धीरे धीरे और जब तक उनकी पूरी आबादी के न्यूनतम 2% हर 10 लाख की आबादी पर 20000 टेस्टिंग ना हो जाए तब तक इसे बढ़ाते रहना चाहिए और फिर अपेक्षित पॉजिटिव रेट हासिल होने तक टेस्टिंग लागू रहे।





यही नहीं रोगी के संपर्क में आने वालों की पहचान कभी पैमाना तय किया जाए इसे हासिल करने के लिए बेहतर उपाय तैयार किए जाएं कोई चलताउ सूचना इस बारे में नहीं जारी किया जाए। लॉकडाउन के उद्देश्य महामारी के बढ़ते ग्राफ को सीधा करना था और स्वास्थ्य सेवा में सुधार करना था। लॉकडाउन के दौरान इसके तेज विस्तार को तो रोकने में कामयाबी मिली लेकिन स्वास्थ्य सेवा में कितना सुधार हुआ इसकी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। कोविड-19 के मामलों और मौतों की संख्या बताने वाले तो कई स्रोत है लेकिन टेस्ट की दर, टेस्ट पॉजिटिविटी की दर, अस्पतालों में उपलब्ध सुविधाओं इत्यादि के बारे में बताने वाले शिरूर हर जिले में होने चाहिए। खतरे को कम करने का यही एक उपाय हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सभी दलों से बातचीत करके लॉक डाउन की अवधि तो बढ़ा दी है लेकिन इसके साथ ही अगर अन्य बातें नहीं हुईं जैसे टेस्टिंग, अस्पतालों में सुविधाओं का विस्तार इत्यादि तब तक इस वृद्धि से कोई लाभ नहीं होने वाला।

0 comments: