सबसे खराब दौर अभी बाकी है
सोमवार से अनलॉक दो आरंभ हुआ। हालांकि इस दौरान भी लॉक डाउन है लेकिन वह सख्ती नहीं है जो पहले थी। सब कुछ खुल रहा है मॉल, बाजार, मंदिर ,मस्जिद, गुरुद्वारे इत्यादि। कुछ लोगों का कहना है कि कोरोना की कड़ी टूट रही है।लॉक डाउन को लेकर बहस तो चल ही रही थी अब कोविड-19 को देख कर भी बहस चल पड़ी है। कुछ लोगों का मानना है कि देश में कोविड-19 पर काबू पा लिया गया है। ऐसा सोचने के पीछे उनके पास कुछ आंकड़े भी हैं और उसके आधार पर वह इसकी गणना कर रहे हैं और उसके प्रकाश में भारत में इसकी स्थिति की तुलना कर रहे हैं और इस तुलना में भारत की स्थिति थोड़ी बेहतर दिख रही है। अगर केवल आंकड़े देखें 31 मई तक पूरी दुनिया में 63.39 लाख लोग कोविड19 के शिकार हुए। जिनमें 3.76 लाख लोगों की मृत्यु हो गई। भारत संक्रमण के मामले में स्पेन को पीछे छोड़ता हुआ पांचवें स्थान भारत में अब तक 24 लाख46 हजार 628 लोग संक्रमित जिनमें 6929 लोग मारे गए हैं। इस आंकड़े को देखते हुए केवल अमेरिका, ब्राजील, रूस और ब्रिटेन ही भारत से ऊपर हैं। जनसंख्या के लिहाज से भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है इसलिए जनसंख्या के सापेक्ष कोरोना प्रभावितों की तुलना करने पर प्रभावितों की संख्या कम दिखती है। सरकार में शामिल लोग इन्हीं आंकड़ों का सहारा लेते हैं और दावा करते हैं कि भारत ने इसका मुकाबला सही तरीके से किया।
लॉक डाउन के दौरान ये आंकड़े बताते हैं कि भारत में मरने वालों की संख्या कम है और यह संख्या सकारात्मक दिशा को दिखा रही है। लेकिन यदि प्रति एक करोड़ पर होने वाले कोविड-19 देश तो देखा जाए तो यह एक संशय को जन्म देता है और वह संख्या है कई मौतें बिना जांच किए भी हो सकती है। किसी भी देश में कोरोना प्रभावितों की स्थिति का अनुमान संख्या को देखने पर लग सकता है लेकिन इससे सार्थक तुलना नहीं हो सकती। कुर्ला का प्रसार बिग डाटा एनालिसिस का विषय इसलिए विभिन्न देशों में नॉरमल डिसटीब्यूशन के नियमों का पालन कर सकता है शुरुआत में बनेगा बीच में अपने शीर्ष बिंदु पर रहेगा और अंत में नीचे की तरफ आएगा। किसी भी देश में यह कितनी तेजी से बढ़ेगा और शीर्ष बिंदु पर पहुंचकर कितनी तेजी से नीचे गिर जाएगा यह वहां के सरकार द्वारा इस महामारी की रोकथाम के लिए लॉक डाउन, टेस्टिंग , स्क्रीनिंग, क्वॉरेंटाइन इत्यादि कदमों पर बहुत हद तक निर्भर करता है। लेकिन शुरुआत में कुछ गलतियां हुईं और अपने सभी प्रयासों के बाद भी मोदी जी कहीं न कहीं नाकामयाब हो गए। इस नाकामयाबी की वजह हमारे देश की नौकरशाही है। बेशक भारत की नौकरशाही एक आइडियल टाइप व्यवस्था है लेकिन इसमें विशेषज्ञ नहीं हैं और जो है भी उन्होंने प्रधानमंत्री को निराश किया है। कारण चाहे जो भी हो लेकिन इस निराशा का नतीजा सरकार को ही भोगना पड़ा है। जहां तक नौकरशाही का प्रश्न है उसकी निर्णय क्षमताओं में रचनात्मकता नहीं हुआ करती है। इसलिए, संकट काल में नौकरशाही असरदार नहीं रह जाती।ऐसे फैसले निर्वाचित नेता ही कर सकते हैं। लेकिन, यह संकट इतना व्यापक था और हमारे नेता नरेंद्र मोदी इससे चारों तरफ से घिर गए थे इसलिए वह कई कार्यों में नौकरशाही पर निर्भर हो गए। ब्रिटिश जमाने से यह देखा गया है कि नौकरशाही ने खुद को सबसे कुशल माना है और इस क्रम में विशेषज्ञता को गौण कर दिया गया है। अगर नौकरशाह जनता से जुड़े होते हैं तो शायद प्रधानमंत्री को बता सकते थे कि लॉक डाउन से करोड़ों लोग संकट से गिर जाएंगे। यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसी नौकरशाही की मौजूदगी में यह कह पाना बड़ा कठिन होगा इस देश में कोविड-19 के पहले मरीज की पहचान कब हुई थी। जिस किसी देश में सबसे पहले पहचान हुई होगी वहां यह बीमारी सबसे पहले शीर्ष पर पहुंचेगी क्योंकि वहीं से से नीचे उतरना है ।अगर अमेरिका, ब्रिटेन और भारत में कोविड-19 के रोजाना आने वाले मामलों और रोजाना उनसे हुई मौतों आंकड़ों की तुलना करें तो जो निष्कर्ष प्राप्त होगा वह काफी महत्वपूर्ण होगा।
जहां तक भारत का सवाल है यहां रोजाना कोविड-19 मिले सामने आ रहे हैं और उनसे मरने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में यह समझ पाना बड़ा कठिन होगा की इन मामलों का ग्राफ कब शीर्ष पर पहुंचेगा और कब वहां से नीचे उतरना शुरू होगा यह बोल पाना मुश्किल है कि महामारी कब काबू में आएगी। कई राज्यों में रोगियों की संख्या फिर से बढ़ने लगी है। यह संख्या कहां पहुंचे रुकेगी यह कहना संभव नहीं है। ऐसा लगता है कि अभी सबसे बुरा दौर बाकी है।
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