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Monday, June 29, 2020

ओली का आत्मविश्वास डगमगा रहा है



ओली का आत्मविश्वास डगमगा रहा है


विगत 2 महीनों से लग रहा है भारत सहित दक्षिणी एशिया के कई देश किसी ग्रह के चपेट में आ गए और उनके दिन खराब चल रहे हैं। भारत चीन को लेकर तथा भारत-पाकिस्तान को लेकर जो चल रहा था वह और सब जानते ही हैं अब नेपाल भी उसी संकट में पड़ गया है। नए नक्शे को लेकर भारत और नेपाल में जो तनाव शुरू हुआ वह बढ़ता हुआ चीन तक पहुंच गया। कहां नेपाल भारत से अतिरिक्त जगह पर दावा कर रहा था वहीं चीन ने नेपाल के 2 गांव पर कब्जा कर लिया। इस कब्जे का क्या जियो पोलिटिकल होगा यह तो पृथक विश्लेषण का विषय है लेकिन देश भक्ति का ज्वार लाने वाले नेपाल के प्रधानमंत्री के पी सिंह ओली को महसूस हो रहा है कि खिलाफ साजिशें चल रही है और उनका शासन खतरे में है। प्रधानमंत्री ने तो यह बात सार्वजनिक तौर पर कही है और यह भी कहा है भारत में उनके खिलाफ बैठकें में हो रही हैं। शुरू से आरंभ तक श्री ओली के मनोविज्ञान पर अगर ध्यान दें तो हर संकट के समय चाहे वह चुनाव हो या कोई और उन्होंने स्थिति से निपटने के लिए ऐसा ही कुछ कह कर कदम बढ़ाया है और इसे भी उनका इसी तरह का प्रयास माना जाना चाहिए। यह तो सर्वविदित है नेपाल के मामले से चीन द्वारा अपने लिए इस्तेमाल किया जाना साफ कहता है कि ओली इस कठिन परिस्थिति में देश को मजबूत नेतृत्व नहीं दे पाए। धीरे धीरे उनका विश्वास हो रहा है और जो बाहर दिख रहा है। इससे पहले भी उनकी सरकार के पतन का कारण बाहरी नहीं आंतरिक ही था। उनकी गतिविधियों को देखकर ऐसा लगता है कि वे मानसिक रूप से काफी घबराहट में हैं और शायद इससे उनकी ताकत कम हो जाए। प्रधानमंत्री की कार्यशैली को लेकर पार्टी के भीतर जो विरोध का स्वर उभरा है प्रधानमंत्री उसे अपने पक्ष में करना चाहते हैं।





ओली को उम्मीद कि भारत पहले की तरह उसके साथ खड़ा हो जाएगा लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पी सिंह ओली से विदेश नीति के ज्यादा समझदार है और उन्हें मालूम है ऐसे मौके पर नेपाल के साथ खड़ा होने का क्या है लेकिन ओली ने उम्मीद कर रखी थी। नरेंद्र मोदी ने भारत की ओर से कुछ नहीं किया। ना तो भारत की ओर से कोई दूत गया और ना ही भारत के विदेश मंत्री वहां गए । पार्टी के नेता उनसे पूछ रहे हैं और उनके पास कोई उत्तर नहीं है यह अपनी स्थिति को स्पष्ट करें। ओली अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को बढ़ा चढ़ा कर बताने के लिए विख्यात है वह बहुत चालाक आदमी हैंऔर पार्टी में अपने विरोधियों की बोलती बंद कर सकते हैं तथा कुर्सी पर बने रह सकते हैं। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थाई समिति की विगत 6 महीने से कोई बैठक नहीं हुई और ओली इसे लगातार टाल रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है की बैठक में उनकी खिंचाई होगी और कुर्सी भी हाथ से जा सकती है। लेकिन, उनके पास कोई उपाय नहीं और गत 24 जून को बैठक में उन्होंने भाग लिया। इसके पहले उन्होंने 22 और 23 जून को पार्टी के सह चेयरमैन दहल से लगातार मुलाकात की ताकि संकट को टाला जा सके। वैसे भी 44 सदस्यीय सेक्रेटेरिएट में ओली को सिर्फ 14 सदस्यों का समर्थन प्राप्त है। वे इसके पहले कई माओवादी नेताओं को भी पटाने की कोशिश में थे लेकिन कामयाबी नहीं मिली। हालांकि जैसे तैसे सेक्रेटेरिएट की बैठक में वे खुद को बचा ले गए लेकिन कब तक? नेपाल में जो सबसे बड़ी गलती की वह कि ओली ने भारत का विश्वास खो दिया। जबकि नेपाल की जनता पूजा विश्वास है कि भारत उनके साथ खड़ा रहेगा। चीन के साथ जो उसका संबंध है वह चीन के फायदे ना कि नेपाल की आम जनता के लिए। गढ़ी हुई विदेश नीति क्या आधार पर देश के स्थायित्व को शक नहीं करना चाहिए। भारत और नेपाल के संबंध ना केवल दो दोस्तों के हैं या 2 देशों के हैं बल्कि उनके बीच रोटी बेटी का संबंध है। हर भारतीय खासकर उत्तर बिहार के लोगों में से बहुत लोग नेपाल को दूसरा देश मानते ही नहीं हैं। दोनों देशों के बीच आना जाना लेन देन और खाना पीना लगातार होता है। इधर से उधर रिश्तेदारी भी हैं। दोनों देशों का साझा बाजार लगता है लेकिन अब सब खत्म हो रहा है। चीन से जो रिश्ता बना है वह हो सकता है नेपाल के उच्च वर्ग के लिए फायदेमंद हो लेकिन आम नेपाली जनता के लिए बेहद हानिकारक होगा। डर है वहां फिर आंदोलन ना आरंभ हो जाए। वर्तमान समय के सबसे बड़े चिंतक और विदेश नीति के जानकार नरेंद्र मोदी का इस संपूर्ण मामले पर चुप रहना नेपाल में किसी बड़े खतरे का संकेत है।

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