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Monday, June 8, 2020

भारत चीन सीमा विवाद पर बैठक



भारत चीन सीमा विवाद पर बैठक


लद्दाख के पूर्वी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन में विवाद को समझाने के लिए शनिवार को लद्दाख की सीमा पर दोनों देशों के सेना अधिकारियों की बैठक हुई। भारत की ओर से भारतीय सेना की 14 वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और चीन की ओर से मेजर जनरल लियु लिन के नेतृत्व में एक एक दल शामिल हुआ। बैठक में क्या तय हुआ या उसका क्या नतीजा निकला इस संबंध में अभी तक कोई विशेष खबर नहीं है। वार्ता 11:00 बजे आरंभ हुई और 3 घंटे तक चली। वैसे कुछ हलकों में चर्चा है कि वार्ता सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रही है और दोनों देश पहले जैसी स्थिति कायम करने के लिए तैयार हैं। अगर इसे सही माना जाए तो पेगोंग झील , गोगरा हॉट स्प्रिंग इलाका और गलवान घाटी क्षेत्र से दोनों देश अपनी सेना हटा सकते हैं। यद्यपि, इसे लिखे जाने तक सेना की ओर से कोई बयान नहीं आया है। दोनों देशों के बीच लगभग 1 महीने से सीमा विवाद चल रहा है।


यह विवाद मुख्य तौर पर लद्दाख के पेंगाॅग झील और पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी के संवेदनशील इलाकों को लेकर है। शनिवार को जो वार्ता हुई वह भारत की पहल पर हुई। इसके पहले भारतीय सेना की उत्तरी कमान के कमांडिंग ऑफीसर लेफ्टिनेंट जनरल वीके जोशी ने लेह का दौरा किया था। इस दौरे का मकसद जमीनी स्तर पर लगातार बदलते विस्तार से समीक्षा करना। भारत चीन अक्सर अलग-अलग इलाकों में इस तरह के विवादों में उलझ जाते हैं, इसकी वजह क्या है?


यह सालों पुराना विवाद है। भारत और चीन के बीच 3488 किलोमीटर लंबी सीमा है। यह सीमा जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश रोककर गुजरती है। यह तीन सेक्टरों में बंटी है। पहला सेक्टर पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू और कश्मीर, मध्य क्षेत्र यानी मिडिल सेक्टर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड तथा पूर्वी सेक्टर सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश का है। चीन का मानना है कि दोनों देशों के बीच अब तक पूरी तरह सीमांकन नहीं हुआ है। इसीलिए विवाद चल रहा है। चीन पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चिन तक अपना दावा करता है जो फिलहाल चीन के नियंत्रण में है। बासठ के युद्ध के बाद फिननेस पर कब्जा कर लिया था। उधर, पूर्वी सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश पर चीन दावा करता है। उसका कहना है कि यह दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है। चीन तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच मैक महोन रेखा को भी नहीं मानता। विख्यात इतिहासकार डॉक्टर बी बी मिश्र ने अपनी पुस्तक” इंडिया हर यूनिट इन डिवीजन” मैं लिखा है कि “चीन मैक महोन रेखा को नहीं मानता। उसका कहना है कि 1914 में जब ब्रिटिश भारत से समझौता हुआ था उसमें बेशक तिब्बत के प्रतिनिधि थे लेकिन चीन का कोई नहीं था। उसका कहना है कि क्योंकि तिब्बत उसका है इसलिए वह( तिब्बत ) अकेले कोई फैसला नहीं कर सकता। “ इन्हीं विवादों के चलते दोनों देशों के बीच कभी सीमा का निर्धारण नहीं हो सका और यथास्थिति बनाए रखने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी नामक व्यवस्था की गई। यही कारण है की विवादित क्षेत्र में कई बार दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प हो जाती है क्योंकि दोनों को यह महसूस होता है सामने वाले देश की सेना उसके क्षेत्र में प्रवेश कर गई है सबसे ज्यादा विवाद पेंगाॅग त्सो झील के आसपास है । रणनीतिक तौर पर इस झील का काफी महत्व है क्योंकि यह झील चुशुल घाटी कि रास्ते में है और 1962 में चीन ने यहीं से भारत पर आक्रमण किया था। पिछले कुछ वर्षों में उसने झील अपनी और वाले इलाके में सड़कें बनाई थी। जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार एसडी मुनि के अनुसार क्षेत्र भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह चीन के शिन जियांग, और लद्दाख तथा पाकिस्तान की सीमा से मिलता है। चीन क्षेत्र में भारत के किसी भी निर्माण को अवैध बताता है हालांकि वह पहले ही वहां जरूरी निर्माण कर रखा है और अब अगर भारत वहां निर्माण करना चाहता है तो उसकी भृकुटी तन जाती है। हालांकि, लगभग 6 साल पहले भारत और चीन के बीच गतिरोध पैदा हुआ था लेकिन सेना और कूटनीतिक वार्ताओं से यह शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त हो गया। वह गतिरोध बड़े ही नाटकीय ढंग से आरंभ हुआ था। उस दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आए और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अमदाबाद में साबरमती के तट पर बैठे उस समय लगभग 1000 चीनी सैनिक भारतीय क्षेत्र के चुमार में घुस आए। चुमार तिब्बत से सटे दक्षिणी क्षेत्र में है। यह क्षेत्र लगभग 18000 जहां भारत की सड़क भी है और नक्शे के अनुसार एक बड़े नाले के दोनों ओर दोनों देशों की सीमाएं हैं। यहां मेरी सड़क बना रखी है लेकिन उसमें बड़े तीखे मोड़ हैं और भारी चीनी वाहन नहीं पहुंच सकते।





खबरों के मुताबिक शनिवार की बैठक में भारत ने 1993, 1996, 2012 और 2013 में जो समझौते हुए थे वैसे ही स्थिति बनाए रखें । लेकिन, अगर अभी समझौता हो भी जाता है तो यह गतिरोध बताता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा हमेशा एक कांटा बनी रहेगी।शनिवार की बैठक चुनौतियों के बारे में कोई भी अधिकृत खबर नहीं है लेकिन चीन के मनोविज्ञान और परंपरा को देखते हुए कहा जा सकता है के भारत की बात वह सहमत हो गया होगा। तनाव को बढ़ाना और बीच में ही उसे छोड़ देना उसकी पुरानी आदत है और इस बार भी उसने ऐसा ही किया है। क्योंकि वह भी जानता है कि वर्तमान परिस्थितियों में युद्ध का अर्थ क्या होता है इसलिए वह पूर्णांग युद्ध का बिगुल नहीं बजाएगा। दोनों देश इस मौके पर यथास्थिति बनाए रखें और सीमा पर पुरानी चौकियों पर लौट जाए इसी में चीन का भी भला है। लेकिन हमें चीन के इस आचरण को हल्के तौर पर नहीं लेना चाहिए और पूरी तरह सचेत रहना चाहिए।

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