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Saturday, June 27, 2020

चीन ने जमीन हथियाने के लिए हमला नहीं किया



चीन ने जमीन हथियाने के लिए हमला नहीं किया





वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गलवान घाटी के संघर्ष बिंदु से भारत और  अपनी फौजें पीछे हटने लगी हैं लेकिन जैसी की खबर मिल रही है कि चीन ने इस बार देपसांग में तंबू गाड़ दिया है और घुसपैठ की कोशिश में है। चीन इस इलाके में काराकोरम दर्रे के पास वाले इलाकों में कब्जा करना चाहता है भारत में चीन के राजदूत ने कहा इस समय और संघर्ष तनाव का रास्ता है और गलत है। राजदूत में भारत से कहा है कि वह ऐसी कार्रवाई ना करें जिससे हालात और जटिल हो जाएं। दरअसल, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थित रणनीति का उद्देश्य सामरिक है जोकि स्वाभाविक है। किसी भी संघर्ष का अंतिम लक्ष्य अपनी शर्तों पर टिकाऊ शांति ही होता है। यद्यपि यह केवल कहने के लिए ही है। जहां कहीं भी दो राष्ट्रों के बीच प्रतिस्पर्धा होती है और उसके चलते संघर्ष होता है तो स्थाई शांति केवल यूटोपिया है। उधर चीन काराकोरम दर्रा के आसपास के इलाकों पर कब्जा करना चाहता है इसमें उसका स्वार्थ है। जब से भारत ने अधिकृत कश्मीर के आतंकी अड्डों को खत्म कर दिया है तब से पाकिस्तान को खतरा पैदा हो गया है कि हो न हो एक दिन भारत इस क्षेत्र पर कब्जा कर लेगा। इस क्षेत्र में जहां पाकिस्तान का अंदरूनी राजनीतिक स्वार्थ है वहीं चीन का आर्थिक स्वार्थ भी है। यही कारण है कि लद्दाख से काराकोरम तक जहां चीन ने मोर्चा खोला हुआ है वही पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध कूटनीतिक और आतंकवादी मोर्चा खोल दिया है। इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो जहां परेशानी होगी वही आज पूरे देश में एक सुलझे हुए आदमी के खिलाफ वातावरण बनेगा। जहां भारतीय राजनयिकों को पाकिस्तान से निकाला जा रहा है और उन के साथ दुर्व्यवहार हो रहा है वही अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी भारत के खिलाफ बयानबाजी करने से पाकिस्तान चूक नहीं रहा है। अभी हाल में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरेशी ने स्पष्ट कहा कि ” चीन ने भारत के खिलाफ कार्रवाई कर ठीक किया है क्योंकि भारत ने विवादित इलाके में निर्माण शुरू कर दिया था।” यह सब 2019 के फरवरी में पुलवामा पुलवामा हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच शुरू हुए तनाव को और बढ़ाता है और यह उम्मीद करना कि तनाव जल्दी दूर हो जाएगा ठीक उसी तरह है जिस तरह यह उम्मीद करना हमारी जिंदगी कोरोनावायरस से मुक्त हो गई है। पाकिस्तानी लोग खुश हैं कि भारत कूटनीतिक तौर पर अलग-थलग पड़ गया है और नरेंद्र मोदी परेशान हैं।


भारत की संप्रभुता और भौगोलिक अखंडता दांव पर है। सैन्य नजरिए से देखें लगता है कि भारत में चीन का हमला और अतिक्रमण रोक दिया है और किसी भी स्थिति के लिए सेना चौकस है। 15 और 16 जून के बीच की रात दोनों प्रतिद्वंद्वियों को स्थिति के नए सिरे से आकलन के लिए बाध्य कर दिया है। क्योंकि चीन को यह एहसास हो गया है कि जब घूसों और डडों की लड़ाईऔर बर्बर हो सकती है तो फिर आज के भारत की सेना के साथ हथियारबंद जंग कैसी होगी। चीन इसी कारण से गलवान घाटी से पीछे लौटने और कूटनीतिक वार्ता को आगे बढ़ाने पर तैयार हो गया। जो खबरें मिल रही हैं उससे तो ऐसा लगता है अब घाटी में चीनी सेना मौजूद नहीं है। वार्ताओं के पहले दौर में इन बातों पर सहमति हुई और 22 जून को दूसरे दौरे की बातचीत के बाद पूर्ववर्ती वार्ताओं में हुई सहमति में क्या बदलाव लाया गया किसी को मालूम नहीं है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों सेना कहां रहेगी यह भी नहीं मालूम है। पहाड़ी इलाकों में संघर्ष ऊंचे ठिकानों पर नियंत्रण के लिए होते हैं और उस इलाके की घाटियां रसद के भंडारण और वाहनों के आने-जाने के काम आती है। इसलिए, अभी जो गलवान घाटी में हुआ वह केवल झलकियां हैं। भारत को चोटियों पर नियंत्रण करना चाहिए क्योंकि बिना उसके घाटियों पर नजर नहीं रखी जा सकती। उपग्रह चित्रों के मुताबिक फिंगर 4 और फिंगर आठ के बीच का इलाका अभी भी चीन के कब्जे में है। यह क्षेत्र काफी ऊंचाई वाला है और उन जगहों पर छीनने संजय सुविधाओं निर्माण किया है इस तरह करीब 40 वर्ग किलोमीटर का अपना इलाका अब चीन के कब्जे में है इस इलाके में अप्रैल तक भारतीय सेना मुस्तैदी से गश्त लगाती थी। पूरी लड़ाई समग्र रूप से देखें कार्रवाई सामरिक प्रभाव वाली है और उसे रणनीतिक रूप दिया गया है। इसका उद्देश्य है कि भारत के लिए एक अप्रिय स्थिति पैदा कर जवाबी कार्रवाई की ललकारना। जिससे पहले से परेशान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ज्यादा परेशान हो जाए तथा उनकी प्रतिक्रिया युद्धक हो जाए तथा सारी दुनिया में इसे इस्तेमाल करना आरंभ कर दे।





1959 में भारत द्वारा दलाई लामा को शरण देना और इसके बाद सीआईए के साथ मिलकर कथित तिब्बती विद्रोहियों को ट्रेनिंग दिया जाना 1962 के युद्ध के प्रमुख कार्यों में शामिल था। क्योंकि तिब्बत की निर्वासित सरकार और तिब्बती सैनिकों की उपस्थिति को चीन अपनी संप्रभुता पर खतरा मानता था और तिब्बत की आजादी के लिए भारत द्वारा मदद को वह प्रमुख मानता था अब भी चीन मानता है कि अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ मिलकर भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और विशेष रूप से दक्षिण चीन सागर तथा हिंद प्रशांत क्षेत्र में उसके सामरिक हितों को कमजोर कर रहा है। कुल मिलाकर देखें तो चीन चाहता है कि भारत क्षेत्रीय और वैश्विक स्तरों पर उसे “बड़ा भाई” मान ले। जबकि भारत चाहता है एक सीमित संघर्ष में हिना को झटका लगने पर भारत को अपने राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करना संभव हो जाएगा। हमारे पास चीन के मुकाबले के लिए पर्याप्त सैनिक क्षमता है लेकिन अभी हम जिस आर्थिक मोड़ से गुजर रहे हैं उस मोड़ पर चीन से संघर्ष के फलस्वरूप हम पीछे चले जाएंगे। शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने राजनीतिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए अपने कूटनीतिक और सैन्य साधनों का कुशल प्रबंधन किया है ।

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