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Wednesday, June 17, 2020

कोरोना के बाद अब बारिश का रोना



कोरोना के बाद अब बारिश का रोना





मौसम की भविष्यवाणी है कि शुक्रवार से बरसात शुरू हो जाएगी। सोमवार को वर्षा की पहली फुहार ने कोलकाता से दक्षिणेश्वर के बीच मौसम को गीला कर दिया लोग परेशान। कोविड-19 और उसी दौर में अम्फान के कहर अभी तटवर्ती क्षेत्र के लोग उबरे नहीं थे की बारिश का मौसम शुरू हो गया। कलकत्ते की बारिश और मुंबई की बारिश वैसे भी काफी दुखदाई होती है इस बार तो दुख का एक अलग अध्याय भी जुड़ गया। मौसम विज्ञानियों का मानना है कि मौसम की पहली बारिश मैं ही देश के कई भाग डूब जाएंगे। आने वाले दिनों में एक नई तस्वीर देखने के लिए तैयार रहिए। हो सकता है यह बात कुछ लोगों को कपोल कल्पित लेकिन विश्व पर्यावरण दिवस के ठीक पहले केंद्रीय जल आयोग द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि देश के 123 बांधों या जल संग्रहण क्षेत्रों में पिछले 10 वर्षों में औसत 165% ज्यादा जलजमाव हो गया है। हालांकि इस वर्ष मानसून औसत दर्जे का होगा लेकिन बांधों में जो पानी जमा है यदि उनका ठीक से नहीं प्रबंधन हो सका तो काफी मुश्किलें आएंगी खासकर बंगाल और उड़ीसा में। जिन राज्यों में पिछले साल भी बेहतर जल प्रबंधन था वह राज्य हैं राजस्थान, झारखंड, उड़ीसा, बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तेलंगना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु। लेकिन कई बार अच्छाई भी बुराई बन जाती है और मानसून के ठीक पहले बेहतर जल प्रबंधन बांध प्रबंधन अधिकारियों के लिए गंभीर समस्या बन जाएगा। हिमालय में भारी हिमपात भी उत्तर भारत की नदियों के लिए समस्या पैदा कर सकता है। भाखड़ा, व्यास प्रबंधन बोर्ड ने तो नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र में भारी हिमपात की चेतावनी पहले ही दे रखी है। खबर है कि केरल में 12 जनरेटर पहले से ही खराब है जो बिजली बनाने के लिए पानी को नियंत्रित करते हैं। मानसून के पहले बांधों में बढ़ा हुआ जलस्तर सही नहीं है। यहां एक संभावित प्रश्न है कि जब इन बांधों में इतना पानी भरा हुआ है तो जहां पानी की जरूरत है वहां यह उपलब्ध क्यों नहीं है। केंद्रीय जल आयोग के पास इस प्रश्न की सारे तकनीकी जवाब हैं और नतीजा यह हैकी इन बांधों से पानी निकल नहीं रहा है और सिंचाई एवं दूसरी जरूरतों के लिए पानी मिल नहीं रहा है।





हर साल की तरह इस साल भी गर्मियों में देश के कई हिस्सों में पानी दुर्लभ था और यह तब हुआ है जब मौसम विभाग में पहले ही कह दिया है इस साल मानसून अच्छा रहेगा। लॉक डाउन के चलते नदियों में औद्योगिक कचरा कम हो गया है लेकिन उनमें बहाव की कमी साफ दिख रही है। पहली बारिश के साथ ही बांधों में पानी और लबालब हो जाएगा और नदियों का भाव भी चाहिए ऐसी स्थिति में बांधों की सुरक्षा के लिए उनके गेट खोल दिए जाएंगे। नतीजा यह होगा नदियों का बहाव और बढ़ जाएगा और देखते ही देखते देश के कई हिस्से पानी में डूब जाएंगे या तकनीकी तौर पर कहें तो बाढ़ की चपेट में आ जाएंगे। हमारे देश में हर दूसरे तीसरे साल ऐसा होता है।





जरूरत से ज्यादा भरे बांधों से अभी अगर पानी छोड़ा जाता तो इसका फायदा यह होता की नदियां खुद को साफ कर ले और मन में बहाव होने से मछलियों उत्पादकता बढ़ जाती। बहुतों को याद होगा कि कोलकाता के किनारे बहने वाली गंगा या हुगली नदी में लॉक डाउन के पहले मछलियां नहीं दिखती थी लेकिन लॉक डाउन के दौरान उसमें कई दुर्लभ मछलियां दिखीं। ऐसा केवल कोलकाता में नहीं देश के अन्य स्थानों पर भी पाया गया है। गंगा का बहाव कायम रहा और मछलियां पकड़ने की तर्कसंगत नियमों को लागू किया गया तो लाखों लोगों को रोजगार मिल सकेगा। अभी 2 दिन से देखा जा रहा है कि नदियों में लोग बारीक जाल लेकर उतर गए हैं और बेतरतीब ढंग से मछलियों को मार रहे हैं। यही समय है जब इस पर नियंत्रण किया जाए। यही नहीं अगर बांधों के गेट खोल दिए जाएं तो मानसून में नहीं खोलना पड़ेगा और शहरों के जल प्लावन का खतरा कम हो जाएगा। लेकिन सब कुछ जानते हुए भी ऐसा नहीं किया जा रहा है उल्टे चेतावनी दी जा रही है सावधान रहें। इसके पीछे लालफीताशाही की सोच यह है कि नदियों का पानी समुद्र में बेकार चला जाता है इसलिए पानी को रोककर उसका समुचित उपयोग किया जाना चाहिए। कोविड-19 संकट भी अफसरों सामान्य सबक नहीं दे पाया कि नदियों का समुद्र में मिलना प्राकृतिक और उसे रोकने की कोशिश पर्यावरण की समस्याओं को जन्म देती है। फरक्का बांध के बाद सागर सुंदरबन और हल्दिया तक में घुस आया और जमीन की उर्वरता खत्म हो गई। जो जमीन तीन फसल देती थी वह नमकीन पानी से भर गई है और एक फसल भी नहीं हो पाती। यही हाल गोदावरी कृष्णा नर्मदा यह किसी भी नदी का है। उन नदियों के मुहाने पर देखें तो बांध बनाकर जिन्हें रोका गया वहां समुद्र आगे बढ़ गया और जमीन खराब हो गई। मानसून दो-चार दिनों में आएगी जाएगा और बाढ़ की विभीषिका की तस्वीरें हमारे सामने आएंगी। कोविड-19 के कारण बिगड़ी अर्थव्यवस्था और भुखमरी की तस्वीरें गौण हो जाएंगी।

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