चीन को घेरना जरूरी
जो हुआ वह होना था लेकिन इतना दुखद था उससे कहीं ज्यादा विकट स्थिति हो सकती थी यदि भारत अभी स्पष्ट और उद्देश्य पूर्ण जवाब देने में हिचक दिखाता। चीन ने अब तक कई बार कई ऐसी कार्रवाई की है जिससे संकेत मिलते हैं कि वह भारत के खिलाफ प्रतिरोधात्मक कार्रवाई कर रहा है और नई दिल्ली इसे नजरअंदाज करती आई है। आज जब मामला बिगड़ा तो सब लोग लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ उंगली उठा रहे हैं लेकिन कोविड-19 से दो-दो हाथ करने से लेकर मजदूरों के पलायन उनकी दुर्गति , अर्थव्यवस्था की निम्न गति और उस पर से चीन का हमला आखिर एक नेता कितनी मुश्किलों से उलझे। इसके लिए और भी लोग हैं और उन्होंने इस ओर शायद गंभीरता से इशारा नहीं किया। हां एक बात रेखांकित की जा सकती है कि भारत ने इस पर भी जोर दिया है कि वह चीन की घेराबंदी के किसी प्रयास में शामिल नहीं होगा। लेकिन, चीन अपनी बदतमीजियों से बाज नहीं आने वाला। उसके बताओ ना बिल्कुल स्पष्ट संकेत दिया है कि उसका उद्देश्य और उसके मंशा इस क्षेत्र में एकाधिकार कायम करने की है। इसी की उपलब्धि के लिए वह अपनी पूरी ताकत झोंक रहा है। एक निहायत अविश्वसनीय पड़ोसी है और आप सब कुछ कर सकते हैं पड़ोसी नहीं बदल सकते। चीन एक ऐसी ताकत है जिसके साथ भारत कभी भी शांति से नहीं रह सकता। उसका इरादा स्पष्ट है कि वह आगे रहने की होड़ में किसी की परवाह नहीं करता। इस बार हमला कर भारत के सामने यह स्पष्ट तौर पर विकल्प रख दिया है कि वह मैत्री और शत्रुता वैसे कुछ भी चुन ले। आज नहीं तो कल भारत को एक विकल्प चुनना ही होगा। चीन के बढ़ते कदम के आगे रोड़े अटकाना इसलिए जरूरी नहीं कि उसने भारतीय सैनिकों को मार डाला या वह विभिन्न तरीकों से भारत को घेरता रहा। उसे घेरना और रोकना इसलिए जरूरी है कि वह ऐसी कोई चीज नहीं छोड़ेगा जो आज तक करता आया है। वह पड़ोसियों पर हमले से बाज नहीं आएगा और ना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव घटाने की कार्रवाई में शामिल नहीं होगा। चीन का विरोध करना अब हमारी मजबूरी बन गया है। हालांकि, यह सरल नहीं होगा। भारत प्रशांत क्षेत्र में सबसे अमीर देश है और इसकी सैनिक क्षमता भी अन्य देशों की तुलना में कहीं ज्यादा है और बर्बर है। सैनिक क्षमता के बारे में केवल भारत ही इसके सामने टिक पाएगा।
युद्ध की संभावना से डरे सब देश सुन ले
यहां युद्ध भी है बुद्ध भी है जिसे चाहे चुन लें
यहां चीन की ताकत को ही हथियार बनाना होगा। चीन ने अपनी ताकत के अहंकार में अधिकांश पड़ोसी देशों को दुश्मन बना लिया है। उसकी आक्रामक व्यापार नीति ना केवल चिंता बढ़ाती है बल्कि कई देशों में चीन की बाजार में पैठ के खिलाफ आंदोलन सुगबुगाने लगे हैं। अभी चीन दक्षिणी चीन सागर को हथियाने के यह कदम आगे बढ़ा रहा है। चीन कभी संयम नहीं बरतता है और ना व्यवहारिकता दर्शाता है। यह चीन की एक गंभीर खामी है जो क्षेत्र को प्रभावित करती है। चीन की भौगोलिक स्थिति भी उसकी कमजोरी है। यह सही है ही संचार की आंतरिक रेखा वाले एक बड़े देश के अपने कुछ फायदे हैं और यह भारत समेत आस्ट्रेलिया तथा जापान जैसे देशों के बीच समन्वित कार्रवाई में मुश्किलें पैदा करते हैं। चीन कुछ ऐसे चेकप्वाइंट्स से घिरा हुआ है जो इसकी कमजोरी बन गया है क्योंकि व्यापार पर निर्भर देश है। विभिन्न क्षेत्रीय ताकतों के बीच समन्वय इन चेकप्वाइंट्स पर नियंत्रण हासिल करने और उन्हें पूरी तरह काट देने में मददगार हो सकता है बशर्तें कभी इसकी जरूरत पड़े। आर्थिक और सैन्य क्षमता के मामले में भारत प्रशांत क्षेत्र के ताकतवर देशों में एक है और अगर भारत को इंची नहीं लेगा तथा अन्य छोटी ताकतों की इच्छा कम होगी तो चीन की यह मंशा कभी पूरी नहीं हो सकती। नई दिल्ली ने अब तक ही माना है दूसरों के संतुलन साधने के प्रयासों के बीच स्वतंत्र राह अपना कर चला जा सकता है। लेकिन ऐसा तभी होता है जब दूसरे भी अपना भार खुद ही वहन करने के लिए पूरी तरह तैयार हों। लेकिन इस रवैये में थोड़ा रिस्क है क्योंकि सभी हित धारक ऐसे ही किनारा करेंगे तो नुकसान सबका होगा। यदि भारत जैसा एक ताकतवर देश अलग राह पर चलता रहे इस तरह की घेराबंदी और मुश्किल हो जाएगी। इसलिए भारत को सबसे पहले चीन से आर्थिक रिश्तों को सीमित करना पड़ेगा। भारत के 5जी सिस्टम से हुआवेई को तुरंत प्रतिबंधित करना होगा। यह न केवल रणनीतिक रूप से रूट पहुंचाएगा बल्कि इसके जरिए समझो इस भी जा सकता है भारत की प्रतिबद्धता क्या है। भारत को पाक अधिकृत कश्मीर के माध्यम से चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे पर अपनी आपत्ति फिर से जाहिर करनी चाहिए और यही नहीं पाक अधिकृत कश्मीर को सैन्य बलबूते पर हासिल करने की योजना बनानी चाहिए। चीन को घेरने के लिए भारत को धुरी बनना होगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ओर कदम बढ़ा दिया है। क्योंकि इसके लिए इस तरह की छोटी लड़ाई जरूरी है लेकिन साथ ही ध्यान रखा जाना चाहिए यह एक क्षेत्र में ही सीमित रहे लेकिन यदि लड़ाई बड़ी हो गई इसके लिए भी तैयार रहा जाए। ध्यान रखा जाना चाहिए युद्ध हमारी पसंद के समय और स्थान पर हो। पर्वतीय क्षेत्रों में युद्ध में मौसम और जलवायु बड़ी भूमिका निभाते हैं। आज पूरा देश प्रधानमंत्री के पीछे खड़ा है और हमारी सेना लक्ष्य प्राप्त करने में किसी से पीछे नहीं है।
क्यों नहीं आसमान में सुराख हो सकता है
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों
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