चीन ने क्यों बनाया युद्ध का माहौल
लद्दाख में चीन ने बड़ी संख्या में फौजों को तैनात कर दिया है।उधर भारत ने भी 3 डिवीजन सेना को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तैनात कर दिया है। यही नहीं भारत में आकाश मिसाइलें भी तैनात की हैं। चीन के खिलाफ 10 देश खड़े हो गए आसियान ने तो यहां तक कहा है चीन 1982 के संधि के आधार पर समुद्री सीमा को तय करे।अब सवाल है कि भारत इस सब का किस तरह जवाब दे। यह एक बड़ी गुत्थी है और इसका उत्तर खोजना जरूरी है। हमारी तो सबसे बड़ी कमजोरी है वह है हम अभी भी नवाब वाजिद अली शाह के शतरंज की बिसात में उलझे हुए हैं। हमारे रणनीतिकार या कथित विशेषज्ञ या नहीं समझ पाते की अब वह जमाना चला गया जब इसी युद्ध में राजा को घेरा जाता था और अगर राजा तो फिर विजय हो जाती थी। आज जमाना है कि दुश्मन को कई तरह की बाधाओं से इस तरह घेर लिया जाता है कि वह घुटने टेक देता है। चीन ने यही रणनीति अपनाई है। आज सोशल मीडिया को दुनिया भर में ज्ञान की बहती हुई नदी मान लिया गया है और तब जबकि अभी तक वायरस विशेषज्ञ बने बैठे विद्वान कीट विशेषज्ञ हो गए और सुशांत सिंह खुदकुशी करते ही मनोविज्ञानी हो गए और अब जबकि चीन ने हमला किया सब के सब रणनीतिकार बन गए। आज भारत और चीन ऐसी व्यवस्थाओं में बदल गए जो नई पेचीदगियों में उलझे हुए हैं और इस उलझन को इतनी आसानी से नहीं समझा जा सकता है। यहां फिर सवाल उठता है कि चीन लद्दाख में चाहता क्या है? 20 साल अतीत में जाएं और और देखें भारत किस तरह बल प्रयोग की कूटनीति के माध्यम से पाकिस्तान से निपट रहा है। भारतीय संसद पर 2001 में हमले के बाद भारत में ऑपरेशन पराक्रम शुरू किया था और इसी के माध्यम से बल प्रयोग की रणनीति आरंभ हुई थी जो बाद में बल प्रयोग की कूटनीति बन गई। इसके तहत भारत ने पाकिस्तान की सीमा पर सैनिक साजो सामान और सेना का इतना बड़ा जमावड़ा कर लिया कि मानों अभी युद्ध होने वाला है। आज लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की ओर से ऐसा ही कुछ किया जा रहा है। यह दिखावा इतना बड़ा है कि अमेरिकी विदेश सचिव माइक पॉम्पियो के अनुसार “अमेरिका ने इस तनाव को देखते हुए यूरोप से अपनी फौज हटाकर भारत के किनारे तैनात करने की सोच रहा है।” आज ऐसा लग रहा है लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पूरब की ओर से भारत पर हमला होने वाला है। ऐसा लगता है कि चीनियों ने सुन जू या कन्फ्यूशियस ज्ञान के बदले यह हमीं से सीखा हो। अगर ऐसा होगा इसके जवाब में किस परिणाम की वे अपेक्षा कर रहे हैं? क्षण भर के लिए मान भी लें कि वह बल प्रयोग की कूटनीति कर रहा है यानी अगर भारत चाहता है कि वह उसके सिर पर से हट जाए भारत यह करें यह मत करें या फिर चुपचाप रहे या तीनों बातें करें। अब सवाल है कि चाहता क्या क्या है? और भारत इसका कैसे जवाब दे? इतिहास से पता चलता है कि सीमाएं कोई स्वार्थ तथ्य नहीं बल्कि गड़ी हुई वास्तविकता है सीमाओं को बेमानी बनाकर जमीन पर झाइयां बंद करने का जो हसीन सपना इन दिनों में मनमोहन सिंह देखते हैं उसे एक ऐसी दुनिया में साकार कर पाना मुश्किल होता जा रहा है जिसमें आक्रमणों पर संस्थागत संयम कमजोर पड़ता जा रहा है और सत्ता का बेबाक खेल नया चलन बन गया है। अगर संदर्भों को देखें इस बात का पता चल सकता है कि भारत में बल प्रयोग की अपनी खूबी से क्या हासिल किया था? तब उसके लक्ष्य क्या थे?... और पाकिस्तानियों ने इसका कैसे जवाब दिया था? लेकिन ऐसा लगता है उस प्रकरण को उदाहरण के तौर पर लेने में खतरे हैं, क्योंकि भारत पाकिस्तान नहीं है। नरेंद्र मोदी के साथ युद्ध का खेल खेलना खतरनाक हो सकता है। उस समय भी भारत में कभी भी युद्ध छेड़ने का इरादा नहीं किया था क्योंकि बल प्रयोग की कूटनीति तब तक कारगर नहीं हो सकती जब तक उससे युद्ध का खतरा न दिखने लगे। यह एक मजबूत देश हे जवाब की चाल थे आज जब हम वास्तविक नियंत्रण रेखा के पूरब की ओर देखते हैं ऐसा कुछ आभास नहीं होता। भारत को उस चाल से काफी कुछ हासिल हुआ और नहीं कई सालों तक अमन कायम रहा। लेकिन यहां यह बात नहीं है दोनों देश ताकतवर है और जंग की सूरत में कुछ भी हो सकता है अब ऐसे में अगर चीन बल प्रयोग का खेल खेल रहा है तो उसकी अपेक्षाएं अवास्तविक हैं। भारत ने भी कुछ ऐसी ही नीति अपनाई है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पूरी तैयारी के साथ डटे रहो और सामने वाले को थका डालो। यहां यह याद रखना होगा दो घटनाएं एक समान नहीं होतीं। प्रेम हो या युद्ध इनमें कोई दो एक जैसे नहीं होते। इसलिए धमकी अगर हाथापाई में बदलती है तो हमें इसके लिए भी तैयार रहना पड़ेगा। क्योंकि प्रयोग की कूटनीति इतनी असली दिखनी चाहिए कभी-कभी हमें भी लगेगी जान का खतरा है। चीन की इस चाल का जवाब यही है दूसरे पक्ष की ओर से युद्ध की आशंका को इतना वास्तविक माना जाए कि वह इस पर यकीन करने लगे।
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