खतरा आखिर किस ओर बढ़ रहा है
भारत और चीन के बीच एक बार फिर तनाव बढ़ गया है। दोनों देशों की सीमा पर यह विवाद अप्रैल में तीसरे हफ्ते से शुरू हुआ। विवाद को खत्म करने के लिए बातचीत का सहारा लिया जाने लगा लेकिन कोई उपलब्धि नहीं हुई और विवाद ने हिंसक रूप ले लिया। अगर इस पूरे विवाद का बारीकी से विश्लेषण करेंगे तो इसके पीछे एक पूरा पैटर्न दिखाई पड़ेगा। सोमवार की रात जो हुआ उससे स्पष्ट हो गया कि सीमा विवाद का हल निकालने की जो कोशिश चल रही थी वह नाकाफी है और दोनों देशों को कुछ नए रास्ते अपनाने होंगे। जहां तक पैटर्न की बात है तो गौर से देखें पिछले साल चीन ने घुसपैठ की 650 कोशिशें की थी। यानी, चीन की तरफ से घुसपैठ की कोशिशें लगातार बढ़ रही हैं। यही नहीं चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब एक अच्छी सड़क बना ली है। इस सड़क के माध्यम से वह सारा सामान, हथियार और सैनिक जल्द से जल्द वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पहुंचा सकता है। इसके कारण चीनी सेना काईगो बढ़ा है और उसके प्रदर्शन में आक्रामकता बढ़ती गई है। जरा देखें , दोनों देशों में जब भी झड़पें हुई हैं हाथापाई तक ही सीमित रही हैं बंदूकों का उपयोग नहीं हुआ। यही नहीं, चीन की तरफ से घुसपैठ की कोशिशें एक जगह से नहीं कई जगहों से हो रही हैं। यही कारण है दोनों देशों में स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो गई कि उसने हिंसा का रूप ले लिया। दिलचस्प बात यह है कि ऐसा तब हुआ जब दोनों देश अपनी सीमाओं पर से सेना को हटा रहे थे। 1962 की जंग के बाद दोनों देशों ने यह कोशिश की कि सीमा पर शांति और स्थिरता कायम रहे। विगत 2 वर्षों में दोनों देशों में अनौपचारिक शिखर वार्ता भी हुई। इस दौरान दोनों देशों के नेताओं ने आश्वासन दिया कि वह अपने अपनी सेना को शांति बनाए रखने का निर्देश देंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। फिलहाल, चीन के प्रति दुनिया में काफी आक्रोश है इसलिए चीन नहीं चाहेगा की परिस्थिति युद्ध वाली बने। उसके पास भारत से संबंधों को बिगाड़ने का कोई विकल्प नहीं है। यह वक्त दोनों देशों को सीखने और सबक लेने का वक्त है। अगर सीमा विवाद को सुलझा दिया जाए तो दोनों देशों की सेना के बीच जो कंफ्यूजन है वह खत्म हो जाएगा। लेकिन प्रश्न है कि दोनों देश इस विवाद को सुलझाएं कैसे? विवाद जिस जगह को लेकर है इस पर दोनों दावा कर रहे हैं। इसके कई तरीके हैं। पहला कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह का दबाव बनाए कि चीन भी भारत की बात को मानने के लिए मजबूर हो जाए। दूसरा तरीका है कि दोनों देशों की पेट्रोलिंग टीम जब निकले इसके रूट की सूचना दे दे। इस तरह की सूचना का पहले से आदान-प्रदान से संघर्ष की स्थिति नहीं आएगी और अगर आती हुई है कम आएगी। तीसरा तरीका है कि दोनों देशों की जब फ्लैग मीटिंग हो तो दोनों देश अपने-अपने दावे वाली जगहों के नक्शों का आदान प्रदान करें। जहां तक खबर है उसके अनुसार दोनों देशों के बीच सेंट्रल सेक्टर के नक्शों का आदान-प्रदान हुआ है लेकिन पूर्वी और पश्चिमी इलाके का नहीं।
चीन की शिकायत है कि भारत ने जबरदस्ती वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सरखेज यादी बनाई है जो द्विपक्षीय समझौतों को भंग करता है। ग्लोबल टाइम्स ने बहुत ही कठोर शब्दों में लिखा है के नई दिल्ली ने सीमा मसले पर बहुत ही कड़ा रुख इसके लिए दो गलतफहमियां जिम्मेदार हैं। भारत को यह मुगालता है कि अमेरिका के बढ़ते दबाव के कारण चीन संबंध नहीं करना चाहता है इसलिए वह उकसावे की कार्रवाई का जवाब नहीं देगा। हालांकि अखबार ने स्वीकार किया है दोनों देश बहुत बड़े देश है और सीमा पर शांति बनाए रखना चाहते हैं। इसलिए चीन सीमा मामले को युद्ध में नहीं बदलना चाहता।
वैसे आज का सबसे बड़ा हथियार अर्थव्यवस्था है और अर्थव्यवस्था के लिए बाजार जरूरी है। भारत चीन के लिए एक बहुत बड़ा बाजार है। दोनों देशों के बीच कारोबार में वृद्धि बहुत तेजी से हुई है। सन 2000 में दोनों देशों के बीच का कारोबार केवल 3 अरब डालर था और केवल 8 वर्षों में यह बढ़कर 51. 8 अरब डालर हो गया। भारत और चीन दोनों बहुत बड़े व्यापारिक साझेदार हैं । 2018 में दोनों देशों के बीच 95. 54 अरब डालर का व्यापार हुआ इसका मतलब है दोनों देश एक दूसरे की आर्थिक जरूरत हैं। लेकिन 2019 से व्यापार करने लगा और इस समय यह 92.7 अरब डालर है। भारतीय विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार 2018 में भारत ने जो सामान का निर्यात किया उसकी कीमत18.84 अरब डॉलर थी। अगर वार्ता के माध्यम से रिश्ते नहीं सुधरे तो इसका असर सीधे निवेश पर पड़ेगा और कोविड-19 के इस दौर में कोई भी इस जोखिम को उठाना नहीं चाहेगा। चीन को अगर बड़ी आर्थिक ताकत बना रहना है तो उसे भारत से रिश्ते सुधार नहीं होंगे और इसका राजनीतिक असर यह पड़ेगा कि अगर रिश्ते नहीं सुधरे तो जिनपिंग की सत्ता को भी खतरा है। जिनपिंग जानते हैं कि अगर उनकी पार्टी को पावर में रहना है तो भारत के साथ बिगाड़ महंगा पड़ेगा। दूसरी तरफ वर्तमान स्थिति है उसमें पड़ोसी देशों से रिश्ते खराब कर युद्ध जैसी स्थिति बनाना भारत भी नहीं चाहेगा। लेकिन, इस पूरे मामले में चीन की मंशा साफ दिखती है कि वह भारत को हड़काते रहना चाहता है ताकि भारत अमेरिकी पक्ष में ना चला जाए और उसका एक मजबूत बाजार खत्म हो जाए। सामरिक स्तर पर चीन की इस दोगली नीति से भारत को सतर्क रहना होगा । वैसे हमारे देशवासियों को भी हर चुनौती से मुकाबले के लिए तैयार रहना होगा। ऐसे कठिन समय पर अपनी निजी मान्यताओं और एजेंडो को अलग रखकर केवल देश के बारे में सोचना होगा। ….सतर्क रहना पड़ेगा इस खतरा किस ओर बढ़ रहा है।
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