बुलेट से नहीं वैलेट से हारेगा ड्रैगन
चीन भारत को लगातार परेशान कर रहा है और भारत ने भी उसके मुकाबले के लिए कमरकस ली है। ऐसे में कोविड-19 महामारी ने भारत की ताकत को थोड़ा कम किया है। परंतु हम भारतीयों को गाइड करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके मुकाबले के लिए एक लंबी रणनीति बनाई है और वह है आत्मनिर्भर भारत। चाणक्य का कहना था कि हर नीति का एक दर्शन होना जरूरी है। महात्मा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी पहले नेता हमारे सामने आए हैं जिन्होंने आत्मनिर्भर भारत की बात कही। यह एक तरह से भारत छोड़ो आंदोलन का दूसरा अध्याय है। गांधी जी ने भी पहले देश को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की और उसके बाद आंदोलन का शंख फूंका।इसके बाद धीरे धीरे हालात यह हुए अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। भारत के विभाजन पर अत्यंत विख्यात पुस्तक सी एच फिलिप्स की “पार्टीशन ऑफ इंडिया” मैं कहा गया है कि अंग्रेजों ने भारत आंदोलनों और क्रांतियों के कारण नहीं छोड़ा बल्कि उसकी पूंजी को बढ़ रहे खतरे के कारण उसे भारत छोड़ना पड़ा। आत्मनिर्भर भारत के आह्वान से मोदी ने आंदोलन के लिए कदम बढ़ा दिया है और आज नहीं तो कल हम अपना उद्देश्य प्राप्त कर लेंगे। हां तो बात हो रही थी चीन की। चीन का मुकाबला बुलेट से नहीं हो सकता बल्कि वैलेट से हो सकता है। चीन सारी दुनिया की इसलिए परवाह नहीं करता कि उसके पास दौलत है और उस के बल पर वह चाहे जो कुछ कर सकता है। चीन हमारी सीमा पर खड़ा है और कई क्षेत्रों में कुछ किलोमीटर तक कब्जा भी कर रखा है। सीमा पर हमें डर नहीं है हमारी सेना उससे निपट लेगी लेकिन उसने जो हमारी अर्थव्यवस्था पर घुसपैठ कर रखी है उसे तो आम जनता के सहयोग से ही निपटा जा सकता है। मोदी हमारे नेता हैं और वह रास्ता दिखा सकते हैं उस राह पर चलना और मंजिल तक पहुंचना तो जनता का काम है। हम भारतीयों को स्वदेशी अपनाना होगा। लेकिन चीनी सामान का बहिष्कार इतना आसान नहीं है। भारत को भी चीन के सामान की लत पड़ गई है। यह केवल भारत की बात नहीं है दुनिया का शायद ही कोई ऐसा मुल्क होगा जहां मेड इन चाइना नहीं चलता हो। छोटे-छोटे सामान सुई, कपड़े, टीवी फ्रिज और अन्य घरेलू सामान यहां तक कि हमारे देवी देवताओं की मूर्तियां भी चीन की ही बनी है। सस्ते चीनी सामान का नशा देश की जेब खाली कर रहा है और ड्रैगन की ताकत बढ़ा रहा है आंखें तरेर रहा है।
चीन के बढ़ते प्रभाव के लिए उसकी ऊर्जा, और चीन की दूरदर्शिता को मानना पड़ेगा। चीन ने सबसे पहले सीखा कि जनता भूखी रहेगी तो क्रांति होगी और और जेब भरी हो तो क्रांति की सुध किसी को नहीं होती। वहां वेस्टमिंस्टर टाइप लोकतंत्र है नहीं इसलिए नियम कायदे जनता की राय के बन भी सकते हैं और लागू भी हो सकते हैं। चीन ने कम कीमत पर सस्ते माल बनाने का गुर अपनाया और साथ ही बाजार में किस चीज की मांग उस पर नजर रखना और सस्ती कीमत पर सप्लाई करना चीन का हुनर बन गया। अब होली के रंग हो यह दिवाली की रोशनी सब मेड इन चाइना ही है। जरा सोचें कि फूलों से बने रंग और पीतल की पिचकारी से होली का मजा कम थोड़े ही होता था लेकिन चीनी रंग और प्लास्टिक की पिचकारिया उनकी जगह आ गईं। रोजाना उपयोग के छोटे-छोटे सामानों से बाजार को कब्जा करने का सबसे बड़ा कारण वहां की सरकार द्वारा उद्योगों को पूर्ण किया जाना और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना है। हमारे देश में विगत 70 वर्षों में बनी सरकारों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और नतीजा हुआ हमारे बाजार चीनी सामान से भर गए। संकट काल में मोदी जी ने आत्मनिर्भर भारत का नारा दिया है वह तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक हमारा सामाजिक सोच ना बदले। हमारे देश के उद्योगपति भी अपना सामान बनाने चीन पहुंच गये। चाहे वह उषा के पंखे हों या रेड्डीस की दवाइयां। भारत में अब तक विकास एजेंडे पर नहीं था और अगर था भी तो हमारी सोच के कारण और माइंडसेट के कारण वह कामयाब नहीं हो सका। मोदी जी ने एक नारा दिया वोकल अबाउट लोकल और सेना की कैंटीन में 1000 से ज्यादा आइटम की लिस्ट आई पर उसे वापस लेना क्योंकि इसमें शामिल भारतीय कंपनियां विदेशी माल को अपनी पैकेजिंग में दें रही थी। यह एक संकेत है कि हमारी मैन्युफैक्चरिंग की स्थिति क्या है। कई योजनाएं बनती है और स्थानीय सरकारों के कारण असफल हो जाती हैं अगर इससे पार भी पाए तो सारी योजना लालफीताशाही में उलझ जाती है। श्रम कानूनों में सुधार के रास्ते में समाजवादी सोच का रोड़ा आ जाता है। श्रम कानूनों में सुधार के लिए सरकार कभी भी कड़े फैसले नहीं दे सकती क्योंकि विपक्षी दल झंडे उठाए उसकी मुखालफत करने में जुट जाएंगे।
कोविड-19 की महामारी के बाद कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां बाहर निकलना चाहती है और भारत उनको अपने देश में आकर्षित करना चाहता है। अभी दुनिया भर में चीन के खिलाफ जो सेंटीमेंट है उसका भारत फायदा उठा सकता है। वह मेक इन इंडिया की ओर आकर्षित कर सकता है। कहावत है जब लोहा गरम हो तो वार करना चाहिए। वार करने की इसी कोशिश के तहत प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत और वोकल अबाउट लोकल का नारा दिया। यहां गौर करने लायक बात है चीन का विरोध ना हो बल्कि चीनी सामानों का विरोध हो। यही चीन की ताकत हैं। भारत ने जेब पर मार कर ब्रिटिश शासन को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था वही तरीका आज क्यों ना बनाया जाए ताकि हमारे देश की कोरोना आहत अर्थ व्यवस्था फिर से स्वस्थ हो सके। अब समय आ गया है भारत छोड़ो आंदोलन का दूसरा अध्याय पढ़ा जाए। इस महामारी ने हमें मौका दिया है स्वावलंबित बनने का क्या हम इसके लिए तैयार हैं?
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