नए शीत युद्ध के संकेत
आरंभिक काल से ही चीन सीमाओं को लेकर भारत के प्रति बेहद हठधर्मिता रहा है। चाहे वह मैक महोन लाइन को मान्यता देने की बात हो या सिल्क रूट की। चीन ने 1962 में पंचशील का ढिंढोरा पीटते हुए हिंदी चीनी भाई भाई का राग अलापते हुए भारत पर हमला कर दिया था। आज फिर भारत के साथ विवाद शुरू हुआ है। पाकिस्तान दूतावास के दो अफसरों को निकाले जाने के अलावा नेपाल का नक्शा विवाद यह सब चीन की शह पर हो रहा है। हांगकांग से लेकर काठमांडू तक कई विवाद में चीन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में शरीक है। हांगकांग में चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। चीन के प्रस्तावित राष्ट्रगान विजय के खिलाफ आवाजें फिर उठने लगी हैं। इस विधेयक के पारित हो जाने पर चीन के राष्ट्रगान का अपमान करना अपराध में हो जाएगा। चीन ने हांगकांग के लोगों की बुनियादी आजादी केकई अधिकारों को छीनने के लिए कानून बना रहा है। हांगकांग में चीन विरोधी प्रदर्शनों का यह दूसरा दौर है।
इधर भारत में वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब चीन ने पक्की सड़क बना ली है। इस सड़क के जरिए भारी वाहनों का आना जाना हो सकता है। यह सड़क भारत के गोगरा पोस्ट के करीब है और खबर है कि यहां पर सोने की खान हो सकती है। 3 सप्ताह में बनाई गई 4 किलोमीटर लंबी सड़क आगे जाकर चीन की और सड़कों से मिल जाती है।
हजारों सैनिक चीन से सटी 646 किमी लंबी सीमा व वास्तिक नियंत्रण रेखा पर तैनात हैं, जहां अभी तक इक्का-दुक्का जवान ही नजर आता था। इनकी तैनाती को रक्षात्मक रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है।चीन सीमा पर खतरे से निपटने की खातिर जवानों की तैनाती और सैनिक साजो-सामान ही नहीं, बल्कि सेना व वायुसेना चीन सीमा पर अधिक से अधिक हवाई पट्टियों और एयर बेसों को सक्रिय करने में भी जुटे हैं। पहले ही दौलत बेग ओल्डी व फुकचे हवाई पट्टियों को खोला जा चुका है तथा खोली गई कुछेक स्थानीय हवाई पट्टियों को एडवांस लैंडिंग ग्राऊंड में बदलने का काम चल रहा है। रक्षाधिकारियों के बकौल दोनों सेनाएं एक-दूसरे के सामने खड़ी हैं। कहीं पर दोनों के बीच फासला कुछ मीटर का है। भारतीय पक्ष इस बार आक्रामक मूड दर्शा रहा है। हालांकि उच्च स्तर पर कोशिश टकराव टालने की हो रही है, पर बावजूद इसके माहौल ठंडा नहीं हुआ है। मामला पूरी तरह निपटने तक भारतीय सेना अपने तोपखानों को पीछे नहीं हटाएगी।
मई के शुरुआती दिनों से ही पूर्वी लद्दाख में तनाव कायम है और इस बीच उसने वास्तविक नियंत्रण रेखा के समीप एक अस्थाई सड़क निर्माण कर लिया जो सड़क प्राकृतिक संसाधनों से भरे पहाड़ों तक जा सकती है।
यह पहाड़ वास्तविक नियंत्रण रेखा के इस पार भारत में है और इससे हम आसानी से चीन की नियत का अंदाजा लगा सकते हैं। भारत के पास इन पहाड़ों तक पहुंचने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है। गोल्ड माउंटेन के नाम से विचार इन पहाड़ों के समीप ही चीन ने बनकर भी बनाए हैं। चीन हमेशा इस क्षेत्र में अपना दावा करता है हालांकि भारत दोनों के सैनिकों की पेट्रोलिंग जारी है और गलवान यह समीप चीनी फौजियों के कारण तनाव भी।
भारत को परेशान करने और भारत से नेपाल का अति प्राचीन संबंध बिगड़ने के लिहाज से चीन ने भारत नेपाल सीमा विवाद पर नेपाल की पीठ ठोक दी है। नेपाल की संसद में बहुत ही महत्वपूर्ण है संविधान संशोधन विधेयक पेश हुआ है। हालांकि मधेसी पार्टी में इस विजय विरोध किया है। जरा गौर करें 6 महीने पहले भारत ने एक नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था जिसमें जम्मू और कश्मीर राज्य को 2 केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख के रूप में दिखाया गया है। इस नक्शे में लिंम्पियाथुरा, काला पानी और लिपुलेख को भारत ने अपना हिस्सा बताया है। अब नया विधायक आने वाला है और इसके बाद दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हो जाएंगे। भारत के दरवाजे पर नेपाल चीन के साथ मिलकर एक नया दुश्मन खड़ा हो जाएगा। भारत में हाल में मानसरोवर जाने के लिए लिपुलेख से होकर एक नई सड़क का उद्घाटन किया था। नेपाल इससे नाराज है।
उधर, पाकिस्तान ने भारत में फिर से जासूसी का खेल शुरू कर दिया है। उसके दो राजनयिकों को भारत की पुलिस ने सुरक्षा सूचनाएं जुटाने के आरोप में पकड़ा और सरकार ने उन्हें देश छोड़ने का हुक्म दिया। डिप्लोमेटिक इम्यूनिटी के अंतर्गत इससे ज्यादा कुछ किया भी नहीं जा सकता। जवाब में पाकिस्तान ने भी भारत के दो राजनयिकों को विदेश मंत्रालय में बुलाकर अपना विरोध दर्ज किया और देश छोड़ने का आदेश दिया। हांगकांग से लेकर इस्लामाबाद तक अशांत क्षेत्र कायम हो चुके हैं और किसी न किसी रूप में भारत पर इसका प्रभाव पड़ रहा है। आज के दौर में जब कोरोनावायरस से निपटने में लापरवाही को लेकर पूरी दुनिया में भारत चीन की किरकिरी हो रही है उस पर तमाम दबाव डाल रहे हैं वैसे में भारत के खिलाफ एक नई अशांति पैदा कर चीन ने इस दबाव को कम करने की कोशिश की है। पहले चीन की हरकत हांगकांग में देखें। यहां जो विरोध के स्वर उठ रहे हैं वह चीन की हठधर्मिता के बारे में स्पष्ट बता रहे हैं। इस मामले को लेकर कई देशों ने अपनी चिंताएं जाहिर की हैं और अमेरिका ने तो सख्त कदम उठाने का संकेत दिया है। स्पष्टतया वैश्विक रुझान हिंद- प्रशांत और उससे आगे क्षेत्रों में अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए प्रयासरत चीन के शांतिपूर्ण उभार से प्रतिद्वंद्विता में वृद्धि और नए शीत युद्ध की शुरुआत के संकेत मिलते हैं। भारत को स्थिति पर नजर रखने की जरूरत है और सावधान रहने की भी जरूरत है।
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