18 नवम्बर 2015
अगर मोदी की यात्रा फ्रांस हमले के एक दिन बाद हुई होती तो इतनी सफल नहीं होती। क्योंकि ऐसी यात्राओं का उद्देश्य होता है शुद्ध प्रचार। यदि फ्रांस हमले के बाद यह यात्रा होती तो इतना प्रचार नहीं मिलता जितना अब मिला है। लंदन के टाइम्स अखबार की अगर मानें तो वेम्बले थियेटर में मोदी की सभा में 60 हजार लोग मौजूद थे। किसी भी ब्रिटिश प्रधानमंत्री की सभा में उतने लोग एकत्र नहीं हुए थे। ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड केमरन उस सभा में बैठे थे। खबरों के मुताबिक वे हतप्रभ लग रहे थे। इस जश्न ने अपने पंख ब्रिटेन के साथ−साथ भारत में भी फैला दिए थे। यह मोर का नाच बिहार के कौओं की कांव−कांव को ढक देनेवाला था। वेंबले की रौनक के आगे बिहार की हार फीकी पड़ गई। एक क्या, कई बिहार भी हार जाएं तो कोई परवाह नहीं। विदेशों में बसे भारतीय ऐसा सोचें तो कोई बात नहीं लेकिन डर यही है कि हमारे नेताजी भी कहीं इसी तरह न सोचने लगें? नाचता हुआ मोर देखनेवालों को तो अच्छा लगता ही है लेकिन मोर स्वयं भी परम मुग्ध हो जाता है । इसी मुग्धावस्था में मोदी जी20 सम्मेलन में भाग लेने तुर्की गये। वहां विश्व नेताओं ने कहा है कि इस्लामिक स्टेट को हराने के लिए एकजुट सोच की जरूरत है। उन्होंने एक बयान जारी कर कहा कि वे 'आतंकवाद को मिलने वाली आर्थिक मदद से निपटने के लिए प्रतिबद्ध हैं’ और इसके लिए सरकारों के बीच सूचनाओं का आदान- प्रदान बढ़ाया जाएगा। बयान के मुताबिक चरमपंथियों को मिलने वाली आर्थिक मदद को प्रतिबंधों के जरिए भी रोका जाएगा। आम तौर पर विश्व अर्थव्यवस्था पर केंद्रित रहने वाले जी20 सम्मेलन में इस बार पेरिस हमलों का मुद्दा छाया रहा। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि रूस की कुछ सीरियाई विपक्षी गुटों के साथ सहमति बनी है कि उनके नियंत्रण वाले इलाकों में हवाई हमले न किए जाएं। लेकिन ऐसी बहसें हर बार उस समय होती हैं जब इस तरह के हमले होते हैं और कुछ दिनों के बाद मामला खत्म हो जाता है। हमारी भावुकता बदल जाती है। याद कीजिए इसी साल एक सितंबर की एक तस्वीर ने पूरी दुनिया खासकर यूरोप को झकझोर दिया था। समंदर के किनारे तीन साल के बच्चे आयलन का एक शव पड़ा था। सीरिया से ग्रीस भागते वक्त तुर्की के पास नाव पलट गई और सब कुछ खत्म हो गया । इस तस्वीर ने शरणार्थी की समस्या को लेकर पूरे यूरोप में सनसनी पैदा कर दी थी। यूरोप पर आरोप लगा कि वो शरणार्थियों के प्रति संवेदनशील नहीं है। फ्रांस ने कहा था कि यूरोप को आपात स्तर पर इस समस्या के प्रति कदम उठाने होंगे। फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड, ब्रिटेन में बहस होने लगी। सीरिया से भागने वाले शरणार्थियों को शरण दी जाए या नहीं। चार साल से सीरिया युद्ध ग्रस्त है। वहां अनगिनत लोग मारे गए और घायल हुए हैं। युद्ध से आजिज आकर लाखों लोग पलायन करने लगे। उन्हीं देशों में जिनकी सेना उनके घरों पर बम बरसा रही है। अब उन्हीं शरणार्थियों के खिलाफ आवाज उठने लगी है। फ्रांस ने हमले का बदला लेने के लिए इस्लामिक स्टेट के गढ़ माने जाने वाले रक्का पर हवाई हमला बोल दिया है। कभी यह सोचने का प्रयास नहीं किया गया कि अलकायदा खत्म होता है तो कैसे आई एस आई एस आ जाता है। आई एस आई एस धर्म की गोद से पैदा हुआ या कुछ मुल्कों की सोच से यह जानने की कोशिश नहीं की गयी। दावे किए गए हैं कि सीरिया की बागी सेना के लोग इसमें गए हैं। सद्दाम हुसैन की बची- खुची सेना के लोगों ने इसके आधार को मजबूत किया है। अमरीका और सीआईए का भी नाम आता है। अब सवाल है कि क्या यह जाने बगैर कि आई एस आई एस को किसने पैदा किया, उससे लड़ा जा सकता है। इसके पास हथियार और धन कहां से आ रहा है। आतंकवाद हमसे लड़ रहा है। हम उससे नहीं लड़ पा रहे हैं। फ्रांस ने कहा था कि यूरोप को आपात स्तर पर इस समस्या के प्रति कदम उठाने होंगे। फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड, ब्रिटेन में बहस होने लगी है कि सीरिया से भागने वाले शरणार्थियों को शरण दी जाए या नहीं। चार साल से सीरियायुद्ध ग्रस्त है। वहां अनगिनत लोग मारे गए और घायल हुए हैं। युद्ध से आजिज आकर लाखों लोग पलायन करने लगे। उन्हीं देशों में जिनकी सेना उनके घरों पर बम बरसा रही है। अब उन्हीं शरणार्थियों के खिलाफ आवाज उठने लगी है। विमान से आतंकी ठिकानों पर हमला करने के साथ-साथ दुनिया को बताया जाना चाहिए कि तालिबान को किसने पैदा किया। अलकायदा के पीछे कौन था और आई एस आई एस के पीछे कौन है। कैसे एक साल के भीतर आई एस आई एस उभर आता है और पूरी दुनिया के लिए खतरा बन जाता है। यहीं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात लाना चाहता हूं। वे अपनी कई यात्राओं में कह रहे हैं कि आतंकवाद को परिभाषित करने की जरूरत है। साथ ही यह जानना जरूरी है कि आतंकवाद खतरा है या हथियारों के सौदागरों के लिए बिजनेस।
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