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Thursday, November 26, 2015

भाजपाई राजनीति में बदलाव जरूरी


12 नवम्बर 2015
बिहार के चुनाव परिणाम दिखाते हैं कि दिल्ली की हार से पार्टी ने कोई सबक नहीं सीखा है जिसमें ‘‘आप’ ने 70 विधानसभा सीटों में से 67 पर जीत हासिल कर भाजपा को जबरदस्त पटखनी दी थी, बिहार में हार के लिए सभी को इसलिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है ताकि किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराना पड़े। बिहार के चुनाव के नतीजों पर मंगलवार को भाजपा की बैठक हुई। इस बैठक में पार्टी का अंतर्कलह उस समय खुलकर सामने आ गयी, जब लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के साथ दो अन्य वरिष्ठ नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के खिलाफ असंतोष का बिगुल बजाते हुए कहा कि पिछले एक साल में पार्टी कमजोर हुई है और उसे कुछ मुट्ठीभर लोगों के अनुसार चलने पर मजबूर किया जा रहा है। इनके अलावा बेगूसराय के सांसद भाजपा सांसद भोला सिंह ने भी पराजय के लिए प्रधानमंत्री मोदी के साथ ही भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पर निशाना साधा। पार्टी के वरिष्ठ नेता सीपी ठाकुर ने भी हार पर सवाल उठाए हैं। पार्टी ने नेताओं से अपनी टिप्पणियों में संयम बरतने को कहा है। भाजपा में निर्विवाद नेता के तौर पर उभरने और मई में सरकार बनने के बाद मोदी को पहले बड़े असंतोष का सामना करना पड़ रहा है जिसमें शांता कुमार और यशवंत सिन्हा समेत दिग्गजों ने संक्षिप्त लेकिन कड़े शब्दों में एक बयान जारी कर बिहार की हार की संपूर्ण समीक्षा की मांग उठाई। बयान के अनुसार, ‘‘सबसे हालिया हार का मुख्य कारण पिछले एक साल में पार्टी का कमजोर होना है।’वरिष्ठ नेताओं के वक्तव्य के अनुसार, ‘‘हार के कारणों की पूरी तरह समीक्षा की जानी चाहिए और इस बात का भी अध्ययन होना चाहिए कि पार्टी कुछ मुट्ठीभर लोगों के अनुसार चलने पर मजबूर क्यों हो रही है और उसका आम-सहमति वाला चरित्र नष्ट कैसे हो गया।’भाजपा के पूर्व अध्यक्ष जोशी के आवास से बयान जारी किए जाने से पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व विचारक और पूर्व भाजपा नेता गोविंदाचार्य ने जोशी से बंद कमरे में गुफ्तगू की। यहां प्रमुख प्रश्न है कि मोदी के सहारे पार्टी कबतक चुनावी वैतरणी पार करेगी। प्रधानमंत्री होकर कैसे सीएम की लड़ाई लड़ेंगे। दिल्ली और बिहार में नेता को क्यों नहीं उभरने दिया गया। यही सवाल बिहार चुनाव में बीजेपी पर भारी पड़ गया। बिहार की जनता तो यही पूछ रही थी कि महागठबंधन के पास नीतीश हैं तो एनडीए के पास कौन है। इतनी बड़ी लड़ाई लेकिन बीजेपी के पास सीएम का कोई चेहरा नहीं था जबकि नीतीश और लालू बिहार में महागठबंधन बनाकर नरेन्द्र मोदी को चुनौती दे रहे थे। दूसरी बात ये थी कि नीतीश को काम दिखाने के लिए कानून व्यवस्था, सड़क, बिजली, लड़कियों को साइकिल देने की बात थी लेकिन वोटरों को मोदी का कोई काम सही नहीं दिख रहा था जो आम लोगों से जुड़ा हुआ हो। बीजेपी में ये भी आरोप लगा कि सही उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा गया बल्कि पैसे लेकर उम्मीदवार को उतारा गया। यही सवाल सांसद आरके सिंह उठा चुके थे। चौथी वजह पार्टी में अहंकार को माना गया जो सांसद नाराज थे, उन्हें नहीं पूछा गया बल्कि कुछ ऊपर के नेता रणनीति बनाते रह गये। ये आरोप लग रहा है कि बीजेपी स्कूटर की पार्टी हो गई है यानी तीन लोग ही पार्टी को चला रहे हैं। पांचवीं बात ये थी कि जातीय अंकगणित में एनडीए महागठबंधन से पीछे छूट गया था। बिहार में भ्रष्ट्रराचार और बेरोजगारी मुख्य समस्या थी लेकिन पार्टी के नेताओं ने नीतीश,लालू,जंगलराज,जंतर-मंतर को मुख्य मुद्दा बनाया। बीजेपी की सहयोगी पार्टियों का तो और बुरा हाल हुआ। अखलाक की मौत और साहित्यकारों के अवार्ड लौटाने के मुद्दे को पार्टी ठीक से हैंडल नहीं कर पाई। महंगाई की मार से जनता परेशान थी, प्याज 60 रुपये और दाल 200 रूपये ने लोगों के गुस्से को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। इससे तो यही साबित होता है कि बीजेपी जीतती बाजी हार गई और आत्मचिंतन के नाम पर ऊल जुलूल मुद्दे को उठा रही है। अब भाजपा और नरेंद्र मोदी से देश की हिंदू-मुस्लिम जनता को अपेक्षा है की भाजपा के नेता कांग्रेस जैसा बर्ताव न करके देश की प्रगति के लिए, हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए नयी पहल करेंगे ! देश की सभी मुस्लिम जनता को देशद्रोही ठहराना और जरा - जरा सी बात पर उन्हे पाकिस्तान जाने की सलाह देना गलत है! भाजपा के नेता जितनी जल्दी समझ जाएंगे उतना अच्छा होगा उनके लिए और पूरे देश के लिए भी ! भाजपा के नेता जल्दी से यह जमीनी सच्चाई जान लें और उनके मन से हिंदू-मुस्लिम धर्मीय जनता में फूट डालकर सत्ता के लिए राजनीती करने का भूत निकल जाए ! बिहार की हार संकेत है कि अगर रणनीति-राजनीति में बदलाव नहीं किया गया तो बीजेपी के लिए अच्छे दिन नहीं आने वाले हैं।

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