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Friday, November 27, 2015

कैसे कैसे मंजर सामने आने लगे हैं


27 नवम्बर 2015
संसद का शीतकालीन सत्र के पहले दिन लोकसभा में देश में गुरुवार को मनाए जा रहे पहले संविधान दिवस पर चर्चा हुई। चर्चा की शुरुआत करते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि हम संविधान की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए काम कर रहे हैं। तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी इशारो-इशारों में सरकार पर निशाना साधा। राजनाथ सिंह ने कहा कि संविधान ने देश को एक दिशा दिखाई। इस संविधान के निर्माण में तमाम लोगों ने अपनी भूमिका निभाई और एक संतुलित समाज दिया। राजनाथ सिंह ने कहा कि डॉ. भीम राव अंबेडकर सच्चे अर्थों में एक राष्ट्र ऋषि थे। राजनाथ सिंह ने कहा कि बाबा साहब हमेशा देश हित की सोचते थे। सामाजिक तिरस्कार के बावजूद उन्होंने परिस्थितियों को बदलने के लिए लगातार काम किया और संविधान का संतुलन इसका उदाहरण है। उन्होंने कहा, 'उपेक्षा के बावजूद बाबा साहेब ने देश छोड़ने की बात कभी नहीं की और अपमान के बावजूद कभी कड़वाहट नहीं दिखाई।' सेकुलर शब्द को लेकर लगातार हो रहे विवाद पर उन्होंने कहा कि संविधान में सेकुलर शब्द का इस्तेमाल किया गया है लेकिन इसका मतलब धर्म निरपेक्ष नहीं होता। इस साफ मतलब है पंथ निरपेक्ष और इसी का इस्तेमाल होना चाहिए। सेकुलर शब्द का सबसे अधिक दुरुपयोग किया गया है। सोनिया गांधी ने मौजूदा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘हमने पिछले महीनों में जो कुछ भी देखा वो पूरी तरह उन मूल्यों के खिलाफ है जिसको संविधान द्वारा सुनिश्चित किया गया है। वह जिनकी संविधान में आस्था नही रही है, न इसके निर्माण में कोई भूमिका रही है वो आज इसका नाम जप रहे हैं, वह आज इसके अगुवा बनना चाहते हैं।‘ अपनी बात पूरी करते हुए सोनिया ने कहा कि ‘जिनकी संविधान में आस्था नहीं है ऐसे लोग आज संविधान की बहस कर रहे हैं, इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है।' मनोवैज्ञानिक तौर पर देखें तो ऐसा लगता है कि देश में असहिष्णुता के बवंडर के मध्य संविधान की आड़ में सेकुलर शब्द के अर्थ को नये संदर्भ में पेश करने को एक बहुत लम्बे राजनीतिक प्रयास के तौर पर देखा जा सकता है। सबसे पहले यहां बता देना जरूरी है कि राष्ट्रपति के, एक के बाद एक ‘‘बहुलता’ और ‘‘सहनशीलता’ को भारतीय मूल्य बताने वाले दो वक्तव्य उस दबंगई की भाषा पर भारी पड़े जो असहिष्णु बयानों से बनाई गई थी। अगर कोई शोधार्थी पिछले महीनों में आई ‘‘असहिष्णुता’ संबंधी समस्त खबरों को एकत्र करे और उनका आंकड़ा बनाए तो मालूम पड़ेगा कि असहिष्णुता कुल मिलाकर एक नया वातावरण ही बन गई और इसका असर हमारे वातावरण की असहिष्णुता को ठोस बनाता गया।इसी के बरअक्स यह देखना आवश्यक है कि पिछले एक साल से अब तक जानी हुई तिथियों को नई-नई राष्ट्रीय तिथियों से बदलने की भी एक कवायद क्यों हो रही है। जिन दिवसों को हिलाया नहीं जा सकता उनसे जुड़े संदेश को पूरी तरह परिवर्तित कर देने की कोशिश तो साफ दिख रही है। गांधी जयंती को स्वच्छता दिवस में तब्दील कर गांधी की राजनीति और जीवन के मूल संप्रदायवाद विरोधी विचार को सार्वजनिक स्मृति से मिटा देने का षड्यंत्र पूरी तरह सफल नहीं हो पाया है, भले ही गांधी को सरकार का स्वच्छता अभियान का ‘ब्रांड एंबेसडर’ क्यों न बना दिया गया हो।जो चश्मा गांधी के चेहरे से छिटककर बिड़ला भवन की जमीन पर तब गिर गया था, जब नाथूराम गोडसे ने मुसलमानों का पक्षधर होने के अपराध की सजा देने के लिए उन्हें गोली मारी थी, उसे उठाकर संघ की सरकार ने सरकारी विज्ञापन में सजा दिया है।उसी तरह शिक्षक दिवस को शिक्षकों से छीनकर प्रधानमंत्री का उपदेश दिवस बना दिया गया है जिसमें शिक्षकों की उपस्थिति उनका उपदेश सुनाने के लिए इंतजाम करने वाले भर की रह गई है। राष्ट्र दरअसल कल्पना का खास ढंग का संगठन ही है। इसलिए प्रतीकों का काफी महत्व होता है. जिन प्रतीकों के माध्यम से हम अपनी राष्ट्र की कल्पना को मूर्त करते हैं, उनकी जगह नए प्रतीक प्रस्तुत करके एक नई कल्पना को यथार्थ करने का प्रयास होता है।एक तरफ जबरन मतदान, दूसरी ओर मतदान रहित ग्राम-पंचायत चुनाव, तीसरी तरफ जन प्रतिनिधि बनने के रास्ते में रोड़े अटकाना, यह सब उस भारतीय जनता पार्टी की सरकारें कर रही हैं जो आज धूमधाम से संविधान का उत्सव मनाना चाहती है।इसी सरकार के वित्त मंत्री राज्यसभा को गैरजरूरी ठहरा रहे हैं क्योंकि वह उनकी हर पेशकश पर अपनी मुहर नहीं लगा रही है।भाजपा की ही सरकार ने राजस्थान में उच्च न्यायालय के सामने मनु की प्रतिमा भी लगवा दी है। एक है वर्तमान की मजबूरी, यानी संविधान की रक्षा के लिए बना न्यायालय और दूसरा है भविष्य का लक्ष्य, यानी मनुस्मृति का भारत। गौर करें अभी भारत में असहिष्णुता का सबसे बड़ा बवंडर उठा हुआ है। ऐसे में भारत के संविधान की बुनियादी प्रतिज्ञा के शब्दों के नये प्रतिमान के तौर पर पेश करने का प्रयास।

ऐसे ऐसे मंजर सामने आने लगे हैं

गाते गाते लोग चिल्लाने लगे हैं

संविधान आज उनके हाथों में है जो बरसों भारत को हिंदू राष्ट्र में बदल देने का सपना देखते रहे थे। वे जब संविधान का जश्न मनाएं, तो जश्न दर असल उस पर कब्जे का है।

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