कश्मीर की समस्या के बरअक्स आज का दिन बेहद खास है। वैसे तो झगड़े की नींव 1946 में ही पड़ चुकी थी पर लाहौर में मुहममद अली जिन्ना के आज के भाषण ने इस समस्या को इतना बिगाड़ दिया जो अब शायद ही सुधरे और अगर सुधार होता भी है तो ‘व्यापक सर्जरी की जरूरत है।’ जिन्ना 9 अगस्त 1947 को एक डकोटा विमान से दिल्ली से लाहौर रवाना हुये थे। 11 अगस्त को वहां कंस्टीट्वेंट असेम्बली में उनका भाषण था। यहां उनके भाषण के तीन अंश उद्धृत हैं। उनका भाषण ना नेहरू की तरह लयात्मक था ना अम्बेडकर की तरह विद्वतापूर्ण ना राधाकृष्णन की तरह दर्शनपूर्ण। उनका भाषण बेहद तनाव भरा और प्रसंग विहीन था। उनके भाषण का पहला अंश है ‘आज दुनिया हैरत मैं है। हमने इस उपमहाद्वीप में दो देश बना डाले और वह भी शांपिफूर्ण ढंग से। इसके सिवा कोई उपाय नहीं था।’ यह बोलते हुये जिनना 15 अगस्त 1946 भूल गये जब केवल एक शहर कोलकाता में सिर्फ 72 घंटे में लगभग 3000 लोग मारे गये थे और 40 हजार बेघरबार हो गये थे। जिन्ना इसे शांतिपूर्ण आंदोलन बता रहे थे। इसके आगे वे बोलते हैं कि ‘मेरे ख्याल में इसका कोई दूसरा समाधान नहीं था। मैं मुतमईन हूं कि आने वाला वक्त इसका इतिहास लिखेगा और फैसला हमारे हक में होगा। एक भारत संभव था ही नहीं और अगर होता तो उसका नतीजा भयानक होता।’ सोचिये जिनना का कथन कि इसका कोई दूसरा समाधान ही नहीं था। और इतिहास उनके हक में फैसला देगा। यानी दो मुल्क बनाने के लिये एक मुल्क का जिगर चीर कर खून का दरिया बहा दिया जाय और वह सही है। उस जमाने में जिनना के भाषण को टी एन टी (टू नेशन थ्योरी) की संज्ञा दी गयी थी। यहां यह बता देना उचित है कि द्वितीय विश्व युद्ध तक टी एन टी सबसे खतरनाक विस्फोटक हुआ करता था जैसा कि इन दिनों आर डी एक्स है। जिन्ना के अहं ने इतिहास के सर्वाधिक प्रलयंकारी घटना को अंजाम दिया। कहते हैं कि अहं जितना ऊंचा जायेगा उसका उतना ही ज्यादा पतन होगा। जिन्ना के अहं का पतन पूर्वी पाकिस्तान के विघटन के रूप में हुआ। उनके भाषण का तीसरा अंश है, जो नहरू की शैली से मिलता है और लगता है कि वे नेहरू की नकल कर रहे हों। जिन्ना कहते हैं , ‘ हो सकता है मैं गलत होऊं या सही होऊं यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। हम समय के दर्शक मात्र हैं।’ जिन्ना यहां अनिश्चय की स्थिति में दिखते हैं। आज कश्मीर की पूरी समस्या जिनना के उस अहंपूर्ण भाषण का एक्हटेंशन है जिसमें कहा था उनहोंने कि इसके सिवा कोई चारा नहीं था और इतिहास हमारे हक में फैसला देगा। जिस मारकाट को उन्होंने शांतिपूर्ण ढंग से अलगाव बताया वही मारकाट आज कश्मीर में चल रही है और पाकिस्तान की सरकार इसे आजादी का जज्बा बता रही है और उसके साथ सहानुभूति जता रही है। जिन्ना के ही भाषण से साफ पता चलता है कि पाकिस्तान ुद में कोई देश नहीं है बल्कि उनके अहं को देखते हुये और भारत पाकिस्तान को लड़ते रहने के लिये अंग्रेजों ने एक फर्जी इलाका तैयार किया ताकि एकीकृत भारत ताकतवर ना हो जाय और उसकी श्रेष्ठता को ठेंगा दिखाने लगे। टी एन टी का वह सिद्धंत अंग्रेजों ने जिनना के जरिये पाकिस्तान की साइकी में पेवस्त कर दिया। ‘हिस्ट्री इन द इम्पीरियलिज्म’ में डा. बी एन पाण्डेय ने लिखा है कि 1857 के गदर के बाद अंग्रेजों अपने एजेंटों के जरिये हिंदुओं और मुसलमानों में नफरत पैदा करवायी। 1940 में जिन्ना इसके मुफीद कैरियर मिल गये। आज सबसे जरूरी है कि इस इगो से जनमी मनोवैज्ञानिक समस्या का हल केवल इस बात से है कि कश्मीरी जनता के इगो को सही राह दिखायी जाय वरना हम इसी बात का शिकार होते रहेंगे कि ‘इसके सिवा कोई चारा नहीं था।’ दोनो तरफ से हथियार चलेंगे और जो भी मरेंगे वे हमारे अपने लोग होंगे। जिन्ना के टी एन टी से कश्मीर को और कहें तो अपने मुल्क को बचाने का एक मात्र तरीका है कि कश्मीरियों के जहन से इस बारूद को निकाला जाय।
Wednesday, August 10, 2016
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