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Monday, August 22, 2016

अर्जित पटेल के समक्ष चुनौतियां

रिजर्व बैंक के गवर्नर के तौर पर अर्जित पटेल की नियुक्ति की खबर से संभवत: विदेशी निवेशको के मन को थोड़ी राहत पहुंची है कि भारत सरकार केंद्रीय बैंक की आजादी को कम करने का प्रयास कर रही है। 52 वर्षीय अर्जित पटेल को 2013 में रिजर्व बैंक का उप गवर्नर नियुक्त किया गया था। उन्हों एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था को मंदी की मार  से बचाने लिये रिजर्व बैंक की नीतियों में बदलाव करवाया। मौद्रिक नीति तय करने में उपभोक्ता मूल्यों के टार्गेट रेंज पर नजर रखने  के नियम का उन्होंने ही प्रतिपादन किया। इसके पहले रिजर्व बैंक मौद्रिक नीतियां तय करने के लिये कई तरह के सूचकांकों का विश्लषण करता था। मसलन, रोजगार के सूचकांक, मुद्रा स्फीति और विनिमय दर इत्यादि। इसके कारण निवेशकों में अनिश्चयता बनी रहती थी। पटेल के रिजर्व बैंक के गवर्नर बनाये जाने के बाद विदेशी निवेशकों के मन में यह भाव कायम है कि बैंक निम्नतम मुद्रा स्फीति को ही अपने आकलन में शामिल करेगा। वरना, इसके पहले उनतें विभ्रम कायम रहता था। वित्त विश्लेषकों का मत है कि अर्जित पटेल की नियुक्ति से निवेशकों में यह संदेश जायेगा कि रिजर्व बैंक वर्तमान नीतियों पर कम से कम तीन साल तक कायम रहेगा। साथ ही वह ब्याज दर भी कम करेगा। विशेषज्ञों का मत है कि मुद्रास्फीति के लिहाज से पटेल थोड़े कठोर व्यक्ति हैं। भारत के रिजर्व बैंका का गवर्नर पद पर आसीन होना एक तरह से कांटों का ताज पहनना है। अर्जित पटेल के सामने भी कई प्रमुख चुनौतियां हैं। मसलन उन्हें ब्याज दर ाटाने के लिये अकेले नहीं एक कमेटी के साथ काम करना होगा। वे नयी प्रणाली के लागू किये जाने के मसले पर नजर रखेंगे और इस दौरान आने वाली मुश्किलों को दूर करना होगा। भारत जैसे अस्थिर बाजारान्मुखी अर्थ व्यवस्था में यह बहुत चुनौतीभरा काम है। भारत की मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की बड़ी प्रशंसा हुई। लेकिन इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल के गिरते मूल्य असली कारक ततव थे। अब तेलों की कीमत का गिरना रुक गया है और मुद्रा स्फीति की देश की पुरानी बीमारी के लौट आने का खतरा बढ़ गया है। जुलाई थोक मूल्य सूचकांक लगातार चौथे महीने बढ़ा है जिसके कारण खाद्यान्न के मूल्यों में इजाफा हुआ है। इसी दौरान उपभोक्ता मूल्य वृद्धि भी रिजर्व बैंक की 6 पतिशत की सीलिंग को लांघ कर 6.07 प्रतिशत हो गयी। पटेल के सामने एक बड़ी चुनौती अगले महीने ही आने वाली है जब लगभग 20 अरब डालर के मूल्य के विदेशी बांड को भुनाने के लिये पेश किया जायेगा। इन बाड्स को विदेशी आकर्षित करने की गरज से विभिन्न बैंकों द्वारा जारी किया गया था। विशेषज्ञों का मानना है कि बांड्स की पूरी रकम का बहुत मामूली हिस्सा ही नहीं भुनाया जा सकता है। इसलिये अगले तीन महीने में रिजर्व बैंक को भारी परिमाण में विदेशी मुद्रा का बंदोबस्त करना होगा। इसके अलावा पटेल के समक्ष एक और बड़ी चुनौती होगी कि देश के सरकारी बैंकों के डूब रहे कर्जे का क्या किया जाय। उनकी वसूली कैसे हो और अगर वसूली नहीं हो पाती है तो बैंकों का घटा कैसे पूरा किया जाय। पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने बैंकों को निर्देश दिया था कि वे मार्च 2017 तक अपनी बैलेंस शीट बराबर कर लें। बैंकों की इस कोशिश में  जिन कर्जों पर निगाह नहीं पड़ी थी वे कर्जे भी सामने आ रहे हैं। अब नये गवर्नर के सामने यह बहुत बड़ा काम होगा कि वे सम्पूर्ण बैंकिंग प्रणाली को दुरुस्त करे ताकि बैंक अपना कारोबार ठीक से कर सकें और नये ऋण दे सकें। साथ ही, पूरी प्रणाली में स्थायीत्व आये। सबके बाद जो सबसे बड़ा काम होगा वह है कि उन्हें यह प्रमाणित करना होगा कि उनका कद रघुराम राजन के समतुल्य है। राजन को इसलिये दुबारा मौका नहीं दिया गया कि वे तीखा बोलते थे और सरकार की आर्थिक नीतियों से बहुत ज्यादा सहयोग नहीं करते थे। वित्त विभाग का कहना है कि राजन मूल्य वृद्धि पर बहुत ध्यान देते थे और विकास को नजर अंदाज कर दे रहे थे। लेकिन यदि पटेल बहुत ज्यादा सहयोग करेंगे सरकार से तो निवेशकों के मन में यह धरणा घर कर जायेगी कि रिजर्व बैंक कम स्वायत्त है और इससे उसकी साख घटेगी। पटेल को इस स्थिति से भी निपटना होगा।

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