लाल किले की प्राचीर से भाषण देते हुये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश नीति के मामले इक बड़ी महत्वपूर्ण बात कह डाली। उनहोंने बलोचियों को धन्यवाद देते हुये अधिकृत कश्मीर का जिक्र किया। इसके साथ ही उन्होंने भारत की पाकिस्तान नीति में बलोचिस्तान को शामिल कर लिया। उनके इस भाषण के बाद ही विदेश मंत्रालय में जो लोग ‘हॉट परस्यूट ’ के तरफदार थे वे पाक अधिकृत कश्मीर को आजाद कराने के लिये खुल कर सामने आ गये। अपने इस भाषण के हफ्ते भर पहले प्रधानमंत्री ने कश्मीर पर सर्वदलीय बैठक में कहा था कि ‘अब समय आ गया है कि पाकिस्तान दुनिया को बताये कि वह क्यों कश्मीर के एक हिस्से (अधिकृत कश्मीर) और बलोचिस्तान के लोगो पर अत्याचार कर है।’ मोदी जी द्वारा अधिकृत कश्मीर , बलोचिस्तान ओर गिलगित- बाल्टिस्तान का हवाला दिया जाना भारत की विदेश नीति में भारी अक्रामक परिवर्तन है। संभवत: कश्मीर में बदली ताजा स्थिति के कारण ऐसा हुआ है। यही नहीं अगर गंभीरता से सोचें तो साफ पता चलेगा कि पाकिस्तान वार्ता के आमंत्रण के ठीक पहले प्रधानमंत्री का यह कथन कश्मीर में गड़बड़ी करने वाले देश को स्पष्ट संकेत है कि किसी भी वार्ता के पूर्व यह गड़बड़ी बंद होनी चाहिये। कुछ साल पहले मिस्र के एक जॉर्ट पर भारत और पाकिस्तान के ततकालीन प्रधानमंत्रियों के बीच शार्म अल शेख पर वार्ता हुई थी यह भी एक तरह से अबिव्यंजना में बलोचिस्तान पर ही चिंता जाहिर किया जाना था। उस समय के बाद अब सीधा लाल किले से उसी संदर्भ में बात कहने का अर्थ है कि बलोचिस्तान भारत की विदेश नीति की चिंतन प्रक्रिया में अरसे से शामिल है। लेकिन जटिल भूराजनीतिक कारणों और असके संभावित परिणामों के कारण अब तक भारत चुप था। बलोचियों की पीड़ा मध्य पूर्व के कुर्दों की पीड़ा के समतुल्य है। हो सकता है भारत के इस कदम का अफगानिस्तान और ईरान विरोध करे क्योंकि वह बलोच मानवाधिकार और आकांक्षाओं का समर्थन करता है। बलोचिस्तान का आंदोलन एक तरह से अलगाववादी आंदोलन है ओर ईरान पर दबाव देने के लिये समय समय पर इसराइल, सऊदी अरब और अमरीका इसका उपयोग करते रहे हैं। बलोचिस्तान में भारत की दिलचस्पी हो सकता है कि चाबहर को लेकर हो। क्योंकि इससे अंततोगत्वो एक बलोच शक्ति केंद्र का सृजन हो सकता है। इसके अलावा बलोचिस्तान में एक राष्ट्रीय आंदोलन के अभाव में कबाइली नेताओं की बहुतायत , तालिबान समेत अफगानियों की मौजूदगी ओर पाकिस्तानी अत्याचार बलेचिस्तान को गलत राह पर ले जा सकते हैं। लेकिन अब वह इस नयी राह पर चल पड़ा है। हो सकता है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर खुल कर बलोचिस्तान से समर्थन में आना पड़े। इसके लिये भारत को अपनी भुजाएं फड़कानी पडेंगी और दिखाना पड़ेगा कि उसमें दम खम है। ऐसा करने के लिये अब सबसे अच्छा समय आ गया है। आज राजनीतिक ओर आर्थिक तौर पर पाकिस्तान जितनी खराब स्थिति में है उतनी कभी नहीं रहा। अगर उसे खुद को सुधारना है तो यही समय है। मध्यपूर्व में जो पाकिस्तान के समर्थक हैं वे इस समय इस्लामी खतरे से ग्रस्त हैं। सऊदी अरब यमन के लड़ाकों ओर दुनिया में तेल की गिरती कीमतों से परेशान है और तुर्की अंदरूनी चुनौतियों से घिरा है। इरान कभी दूसरों के झगड़े में नहीं पड़ता ओर अफगानिस्तान को मालूम नहीं कि उसकी समस्या क्या है। इधर पूरी दुनिया आर्थिक परेशानियों, आतंकवाद ओर प्रवासियों के संकट से जूझ रही है। ऐसे में किसे वक्त है मूर्ख पाकिस्तानियों के पचड़े में पड़े। पाकिस्तानी सेना अलग सरदर्द है। अमरीका ने उसे धन और हथियार देना बंद कर दिया है और अब वह चीन से वैसी ही मदद लेना चाहती है। अब भारत को चाहिये कि जो आई एस आई हमारे देश में करवा रहा है वही वह रॉ से पाकिस्तान में करवाये। जाली नोट और ड्रग्स वहां भेजे। जब तक उसी की भाषा में उसे जवाब ना दिया जाय वह सुधरने वाला नहीं। मोदी जी का यह कदम न केवल साहस पूर्ण बल्कि दूरदर्शिता पूर्ण भी है।
Wednesday, August 17, 2016
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