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Thursday, August 25, 2016

ऐसे कैसे मिलेगा गोल्ड मेडल

ओलंपिक खत्म हो गया। भारत को फकत दो मडल मिले और उनमें स्वर्ण नहीं था। 2012 में लंदन ओलंपिक में भारत को 6 मेडल मिले थे 20156 में रियो में केवल दो मिले। हाल ने अभिनव बिंद्रा ने रियो ओलंपिक की लंदन ओलंपिक से तुलना करते हुये कहा कि मेडल जीतने के लिये पैसों की जरूरत होती है। परफॉरमेंस को मेडल में बदलने के लिये रुपये की जरूरत होती है। अभिनव ब्रिंद्रा की इस बात के आाधार पर अगर देखा जाय तो खास तौर पर ओलंपिक पर और सामान्य तौर पर खेलों पर भारत जितना खर्च करता है इंगलैंड उससे चार गुना ज्यादा खर्च करता है इसी कारण उसे 67 मेडल मिले और भारत को महज दो। खेलों पर भारत में सरकारी खास कर केंद्रीय सरकार का व्यय लगातार घटता जा रहा है। भारत में सरकारी धन कई खेल फेडरेशनों में बंट जाता है और कई तरह के खेलों पर खर्च होता है। जबकि इंगलैंड में गिनेचुने खेलो और खिलाड़ियों पर यहां के कुल खर्चे से ज्यादा खर्च होता है। इंगलैंड में 15 साल से 35 साल की उम्र के एक करोड़ अससी लाख नौजवान हैं जबकि भारत में इसी उम्र के 4 करोड़ नौजवान हैं। गार्डियन अखबार के मुताबिक इंगलैंड मेडल पाने लायक एक खिलाड़ी तैयार करने के लिये 55लाख पौंड यानी 70 लाख डालर खर्च करता है। इसका खेलों पर कुल बजट 1.5 अरब डालर यानी 9000 करोड़ रुपये होता है इससे अलग ओलंपिक तैयारी में यह चार वर्षों में 35 करोड़ डालर खर्च करता है। जबकि इस मुकाबले में भारत केंद्रीय ओर राज्य बजट से मिलाकर प्रतिवर्ष खेलों पर मात्र 50 करोड़ डालर यानी 3200 करोड़ रुपये खर्च करता है। यह उससे एक तिहाई है। केंद्रीय बजट से ही युवा मामले एवं क्रीड़ा मंत्रालय के माध्यम से राष्ट्रीय क्रीड़ा फेडरेशन को भी धन दिया जाता है। यह फेडरेशन ही ओलंपिक के लिये खिलाड़ी तैयार करता है। इसे निजी संगठनों और सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा भी धन मिलता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2012-13 से 2015-16 के बीच चार वर्षों में क्रीड़ा प्रशिक्षण, खेल फेडरेशनों और कोच पर 750 करोड़ रुपये खर्च किये गये जबकि इसी अवधि में 109 खिलाड़ियों पर 22.7 करोड़ रुपये खर्च किये गये। यही नहीं 2016 को लक्ष्य कर ओलंपिक के लिये खिलाड़ी तैयार करने के उद्देश्य से 97 खिलाड़ियों पर 38 करोड़ रुपये खर्च किये गये। मान्यता प्राप्त खेल फेडरेशंस की तादाद 2016 में 57 से घट कर 49 हो गयी। साथ ही उनको मिलने वाली राशि में भी कटौती कर दी गयी। राष्ट्रीय क्रीड़ा विकास कोश द्वारा 109 खिलाड़ियों का चयन किया गया था ओर ओलंपिक जाने लायक केवल 30 हुये। ओलंपिक की तैयारी में भारत में प्रति खिलाड़ी प्रतिवर्ष 5.2 लाख रुपये खर्च किये गये। इसमें कोच और ढांचा विकास का व्यय भी शामिल है। जबकि इसी कार्य के लिये इंगलैंड ने अपने एक खिलाड़ी पर एक वर्ष में 10लाख डालर खर्च किये। यह तब जबकि इंगलैंड ने सन 2000 के ओलंपिक के लिये खिलाड़ियों को तैयार करने के उद्देश्य से अपना खर्च शुरू किया था। इन आंकड़ों से साफ जाहिर होता है कि खर्च और मेडल में सीधा संबंध है। इंगलैंड में सरकारी खर्चे के अलावा हर खिलाड़ी अपने लिये निजी तौर पर भी पैसे एकत्र करता है। कई खिलाड़ियों ने दान के लिये पोर्टल खोल रखा है। भारत में भी निजी फंडिंग हो सकती है पर यह कितनी होगी यह स्पष्ट नहीं है। भारत ने कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन पर खर्च किया था पर खिलाड़ियों पर खर्च नहीं कर पा रहा है। इसके चाहे जो कारण हों पर मेडल नहीं मिल पाने के कारण जो राष्ट्रीय अपमान होता है वह बहुत तीखा है। सरकार जब तक खेलों और खिलाड़ियों पर उचित तथा तुलनात्मक व्यय नहीं करेगी तब तक मेडल की आाशा बेकार है।

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