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Tuesday, August 30, 2016

बिहार में भयानक बाढ़ : नेताओं की अदूरदर्शिता का नतीजा

बिहार में भयानक बाढ़ आयी हुई है। गंगा और उसकी सहयोगी नदियां उफन गयीं हैं और समस्त जलनिकासी व्यवस्था ठप हो गयी है। गंगा के तटवर्ती इलाके डूब गये हैं। लोगों का कहना है कि 1975 के बाद ऐसी बाढ़ नहीं आयी थी। वह भी बिना बारिश के। हालांकि बाढ़ जिन इलाकों में आयी है वहां के लिये यह कोई बड़ी बात नहीं हैं। यहां तक कि बच्चे भी उससे नहीं डरते हैं। बिहार में आयी इस बार की बाढ़ गंगा की जलवाही नदियों में आये उफान के कारण है। गंगा में कोशी, गंडक, बूढ़ी गंडक , घाघरा नदियां गंगा में मिलती हैं इस बार ये नदियां उफन रहीं हैं। गंगा ने तो पटना में रिकार्ड तोड़ दिया है। यहां, रविवटार को गांधी घाट में जल स्तर 50.52 मीटर था। राज्य के 12 जिले बाढ़ से बुरी तरह ग्रस्त हैं और इससे राज्य की 60 लाख आबादी प्रभावित हुई है और रविवार तक 127 लोग मारे गये हैं। हालांकि बिहार में बाढ़ कोई नयी बात नहीं है पर इस बार की विभीषिका सचमुच त्रासद है। जहां तक बारिश का सवाल है इस बार बिहार में औसत से 14 प्रतिशत कम बारिश हुई है। अतएव कम से कम बाढ़ के लिये कुदरत को इसबार दोषी नहीं कहा जा सकता है। यह हमारी अदूरदर्शिता का नतीजा है। पर्यावरण की चिंता किये बगैर गंगा में कई बांध बना दिये गये। इससे गंगा की जल वाही प्रणाली गड़बड़ा गयी है और गांगेय क्षेत्र में बाढ़ आ गयी। सोन गंगा से बिहार में मिलती है। बिहार आने से पहले वह मध्य प्रदेश से गुजरती है जहां रीवां में उसपर बांध बना दिया गया है। यह बांध 2006 में बना और जबसे बांध बना बाढ़ आने लगी। उधर बिहार के अलावा अन्य राज्यों में काफी बारिश हुई है। सोन का यह बांध जहां है वहां सामान्य से 30 प्रतिशत अधिक  वर्षा रिकार्ड की गयी है। इस वर्शा के कारण अगस्त के पहले हफ्ते में बांध के जलागार बंद रहे। लेकिन जब यह खबर आयी कि अभी और बारिश होगी तो जलागारों के दरवाजे थोड़े से खोल दिये गये ताकि वर्षा से आने वाला पानी यहां समा सके। रपटों के मुताबिक जब जलागार 95 पतिशत भर गये थे तो उसे खाली करने के लिये 19 अगस्त को बांध के 18 दरवाजे खोल दिये गये। यह पानी सोन में गया और वह चूंकि जाकर गंगा में मिलती है तो यह सारा पानी गंगा में जा गिरा और परिणामस्वरूप बाढ़ आ गयी। एक तरफ तो यह बांध समस्या है तो दूसरी तरफ नदियों के तल में जमने वाला कूड़ा भी एक बड़ा कारण है। पिछले 23 अगस्त को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट कर अनुरोध किया कि वे नदियों की सफाई की योजना को तेजी क्रियान्वित करें। नदियों के तल में जमा कचड़े से उनके जल प्रवाह क्षमता को कम हो गयी है और जरा भी ज्यादा पानी आया नहीं कि बाढ़ आ जा रही है। नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री को बताया कि गंगा के इस कोप का कारण क्या है। उन्होंने इसके लिये फरक्का बांध को भी जिम्मेदार बताया। नीतीश कुमार के मुताबिक गंगा जब फरक्का से आगे बंगलादेश में प्रवेश करती है तो पद्मा हो जाती है। इधर बंगाल में बंगाल की खाड़ी में मिलने से पहले  इसके दो भाग बन जाते हैं एक भागीरथी और दूसरा हुगली। कोलकाता शहर हुगली के मुहाने पर बसा है और कलकत्ता बंदरगाह व्यापार का अच्छा केंद्र है। सन 1960 से ही नदी की तलहटी जमा कचड़ा कलकत्ता बंदरगाह के लिये समस्या हो रहा था। इससे बंदरगाह में पानी का पहुंचना कम हो गया था और जलपोतों का आवागमन बाधित होने लगा था। इस समस्या के समाधान के लिये 1975 में फरक्का बांध बनाया गया। उस समय यह कहा गया था कि इससे पानी पद्मा में जाने के बजाय हुगली में प्रवाहित होगा और हुगली की तलहटी में जमा कचड़ा बह जायेगा। लेकिन उस समय गंगा बेसिन पर पड़ने वाले प्रभावों का आकलन नहीं किया गया। जिन लोगों ने इसके विरोध में कुछ कहा उनको नजर अंदाज कर दिया गया। विख्यात इंजीनियर कपिल भट्टाचार्य के मुताबिक उन्होंने उस समय ही कहा था कि इससे हुगली में कचड़ा और बढ़ेगा और गंगा के आस पास के इलाकों में बाढ़ आयेगी।  उनकी बात नहीं मानी गयी और नतीजा सामने है।  इस समस्या से मुकाबले के लिये अब कहा गया कि कोलकाता बंदरगाह के तल में जमा कचड़े को साफ किया जाय। लेकिन यह प्रज्वधि इतनी मंहंगी थी कि सरकार के आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम ने पश्चिम बंगाल सरकार को सलाह दी कि बंदरगाह बंद कर दिया जाय और इसकी जमीन का दूसरे काम के लिये उपयोग किया जाय। इसी सलाह के बाद पोर्ट ट्रस्ट ने अपनी जमीन बेचने का फैसला किया है। यही नहीं , सरकार नदियों को जोड़ने की जो योजना बना रही है उसके परिणामों के बारे में भी सोचना होगा। अगर सरकार ने इस समस्या पर अभी ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दिनों में समस्या और बिगड़ेगी।  कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि यह मानवीय अदूरदर्शिता का परिणाम है।

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