स्वाधीनता दिवस के 70वें मंगल प्रभात पर ऐतिहासिक लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हुये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान पर इशारों ही इशारों में हमला किया और बलोचियो की पीठ ठोंकी साथ ही पाक अधिकृत कश्मीर पर भी हक जताया पर उन्होंने कश्मीर की समस्या पर कुछ नहीं कहा। जबकि अभी कश्मीर की समस्या ही हमारे मुल्क की सबसे बड़ी समस्या है। जी हां, देश के लिये महंगाई से भी बड़ी। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वे कश्मीरियों के लिये अच्छे भविष्य की कामना करते हैं। यह वादा या कामना कुछ ऐसी है जैसी अबतक सभी नेता करते आये हैं पर कोई असर नहीं हुआ। पाकिस्तानी हाई कमिश्नर को साउथ ब्लॉक में बुला कर कहा सुना गया लेकिन क्या उससे पाकिस्तानी ‘डीप स्टेट’ (आतंकवादियों के साम्राज्य) पर कोई असर पड़ा? इसलिये जरूरी है कि कश्मीर के बारे व्यवहारिक नजरिया अपनाया जाय। बुरहान वानी की मृत्यु के बाद कश्मीर में ताजा संकट, मामले को नासमझी भरे तरीके से निपटाने का परिणाम है। कश्मीरियों के मन , उनके इगो और वहां की स्थिति को देख कर मामले को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिये थी। भारत विरोधी भावनाओं को हवा देकर सत्ता में आयी सरकार की सियासत के ‘साइड इफेक्ट’ के रूप में बुरहान वानी सृजित हुआ। जब बीमारी गंभीर हो गयी तो श्रीनगर में महबूबा मुफ्ती की सरकार और दिल्ली में तख्त पर बैठे उनके सहयोगी यह नहीं समझ पाये कि करना क्या है? पहले तो दिल्ली की हुकूमत ने श्रीनगर के सभी राजनीतिक नेताओं को इसमें शामिल कर मामले को सुलझने का प्रयास किया ओर जब बात हाथ से बाहर चली गयी तो श्रीनगर और दिल्ली के नेताओं- अफसरों ने हाथ खड़े कर दिये कि हम क्या करें। केंद्र सरकार को अपनी चुनावी महत्वाकांक्षा को त्याग कर पी डी पी से सख्ती से पेश आना चाहिये। साथ ही सोशलमीडिया के जरिये घाटी में एक अभियान चलाना चाहिये जिसमें घाटी के लोगों को यह बताने का प्रयास किया जाना चाहिये कि उनके ‘पाकिस्तानी मददगार’ ने राष्ट्रसंघ के चार्टर का पालन नहीं किया है। लेकिन साउथ ब्लॉक में बैठे अाला हुक्मरान डरते हैं कि कहीं मामला अंतरराष्ट्रीय स्वरूप ना ले ले। इसके साथ ही सरकार को चाहिये कि वहां के लिये जो वायदे हुये हैं उन्हें पूरा करने में जुट जाय। इससे आमने सामने वार्ता में बल मिलेगा। एक बार यह शुरू हो जाय तो नयी दिल्ली को एक और नया चैपटर खोलना चाहिये। उसे दुनिया को बताना चाहिये पाकिस्तान आतंकवादियों की मदद करने वाला देश है तथा यह कोशिश करनी चाहिये कि पाकिस्तान को दुनिया आतंकवाद का मददगार देश घोषित कर दे। मोदी दुनिया भर में भाषण देते चलते हैं पर शायद ही किसी को याद होगा कि उन्होंने अपने भाषण में कभी पाकिस्तान पर कोई सीधा आक्षेप किया हो, जब भी कुछ कहते हैं तो घुमाफिरा कर कहते हैं। सोमवार को लाल किले से उनहोंने पड़ोसी देश पर जुमले उछाले पर पाकिस्तान का नाम नहीं लिया। यही नहीं, साउथ ब्लॉक के कई ऐसे लोग हैं जो अभी भी नवाज शरीफ से बातें करना चाहते हैं यह जानते हुये भी कि वहां इस समय उनकी कुछ नहीं चलती। वे सेना के सामने पंगु हैं। दुनिया में तो यह भी कहा जा सकता है कि आज नहीं तो कल पाकिस्तान में सेना नवाज शरीफ का तख्ता पलट देगी। मोदी जी और उनके लोगों को यह मानना होगा कि पाकिस्तान में फौज अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिये भारत से दुश्मनी को हवा देती रहती है। कश्मीर की समस्या को बिगाड़ने में कई कारणों के साथ सरकार की सियासी अदूरदर्शिता भी एक कारक है। यह निहायत निराशाजनक है कि हर सरकार में जब कश्मीर का मामला बिगड़ता है तो फौज और पुलिस को चारे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। उनकी जान की कोई कीमत नहीं समझी जाती है। बेशक फौज और पुलिस ने अब तक बेहतरीन कार्य किया है , प्रशंसनीय कार्य किया है। समस्या राजनीतिक है ओर हमारी सरकार इसके प्रति सियासी फौजी नजरिया अपना रही है। भारत विरोधी तत्वों का खात्मा कर देने मात्र से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। फौज- पुलिस केवल समस्या को नियंत्रित कर सकती है। इसे मिटा नहीं सकती। नियंत्रण के दौरान जो शांति दिखती है असी अवधि में सरकार को ऐसे प्रयास करने चाहिये जिससे कश्मीरियों का दिल जीता जा सके। 1990 के बाद कम से कम तीन बार ऐसे मौके आये हैं जब वहां शांति हुई है। इस मौके का हमारे राजनीतिज्ञों ने कोई लाभ नहीं उठाया।
Monday, August 15, 2016
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