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Thursday, August 18, 2016

खाली होती गरीब की थाली

प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से अपने भाषण में कहा कि महंगाई नहीं बढ़ी है और वे गरीब की थाली का हमेशा ख्याल रखते हैं।

 कहां तो तय था चरागां हर एक घर के लिए
कहां चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।

 

 गरीब की थाली के जेरे बहस मोदी जी की सरकार के  ही आंकड़े कुछ और बोलते हैं। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य से महज हफ्ते भर पहले सरकार ने लोकसभा को बताया कि महज मई से जुलाई के बीच टमाटर की कीमत 48 प्रतिशत बढ़ी है और आलू 25 प्रतिशत महंगा हो गया है। सरकार ने पांच फलों और सब्जियों की अखिल भारतीय औसत सूची जारी की है। अलबत्ता उस सूची के नीचे लिखा हुआ है कि कीमतें अलग अलग जगहों की अलग अलग हो सकतीं हैं जो आपूर्ति और मांग पर निर्भर करती है। उसी सूची में बताया गया है कि प्याज की कीमत 13 प्रतिशत और केला तथा सेव की कीमत क्रमश: 6 प्रतिशत और 7 प्रतिशत बढ़ी है। कृषि राज्य और किसान कल्याण मंत्री एस एस अहलूवालिया ने लोकसभा को बताया कि आलू और प्याज की पैदावार अच्छा हुई है तथा मांग और आपूर्ति में कोई अवरोध नहीं है। हालांकि साल की कुछ खास  अवधि में मांग और आपूर्ति के बीच मामूली गड़बड़ी से कीमते थोड़ी बढ़ गयीं हैं। कृषि क्षेत्र का अनुमान है कि सितम्बर में जबतक नयी फसलें बाजार में नहीं आ जातीं हैं तब तक शायद ही कीमतें घटें।

रहनुमाओं की अदाओं पर फिदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यार

गौर करने लायक तथ्य   है कि आम आदमी अपनी आमदनी का करीब 65 प्रतिशत  हिस्सा खाने-पीने पर खर्च करता है। लोगों की आमदनी की तुलना में महंगाई तेजी से बढ़ी है। परिणामस्वरूप लोगों को भोजन से जुड़ी हुई आवश्यक वस्तुओं की खपत में भी कमी करना पड़ी है। बढ़ती खुदरा महंगाई ने लोगों को दाल और फल से लेकर सब्जियों जैसी बुनियादी वस्तुओं पर भी अपना खर्च घटाने पर विवश कर दिया है। मौजूदा कीमत स्तर पर जहां गरीब परिवार खपत के स्तर को बरकरार नहीं रख पा रहे हैं, वहीं मध्यमवर्गीय परिवारों की भी खरीद क्षमता घट गई।

आज सड़कों पर लिखे हैं सैकड़ों नारे न देख,
घर अंधेरा देख तू आकाश के तारे न देख।

कीमतों के बढ़ने का एक कारण और भी है वह है अनाज और फल-सब्जियों के भंडारण में नुकसान। गद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा पेश आंकड़े बताते हैं कि खेती के दौरान और खेती के बाद केवल भंडारण की गड़बड़ी से हर साल 92 हजार 651 करोड़ रुपयों का कृषि अत्पाद बर्बाद हो जाता है। सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिये 2016- 17 में 35 हजार 984 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया है और यह नुकसान इससे लगभग तीन गुना ज्यादा है। सेंट्रल इंस्टीच्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट लुधियाना द्वारा किये गये कृषि उत्पादन के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2012 से 2014 के बीच 40 हजार 811 करोड़ रुपयों के मूल्य के फलों और सब्जियों का नुकसान हुआ। फलों और सब्जियों के अनुरक्षण के लिये सन 2007 से 2014 के बीच 4 केंद्रीय कार्यक्रमों के तहत 7000 कोल्ड स्टोर बनाये गये और 2014 से 2016 के बीच उनहें 660 करोड़ रुपयों की सब्सीडी दी गयी। आंकड़े बताते हैं कि कोल्ड स्टोर्स पर जरूरत से ज्यादा खर्च किया गया है तब भी भारी नुकसान हो रहा है। बड़े बड़े भाषणों के चक्रव्यूह से बाहर निकल कर देश में महंगाई को काबू करने के लिये जरूरी उपाय करने चाहिये। इसके लिये जरूरी है कि कृषि उत्पादन को बढ़ाया जाय और उसका उचित भंडारण हो , साथ ही मौसम पर निर्बरतना कम करने का प्रयास हो। आज भी हमारे देश में मानसून एक अदृश्य अर्थव्यवस्था तथा अदृश्य वित्तमंत्री की भूमिका निभाता हे। अच्छी बारिश हुई तो मुद्रा स्फीति की दर थम गयी ओर भाव काबू में आ गये। बाढ़ आयी और सूखा पड़ा तो वही हाय हाय। मानसून का जुआ खत्म करना होगा तथा महंगाई से निपटने के लिये आदमी की प्रतिव्यक्ति आय बढ़ानी होगी जिसके लिये रोजगार बढ़ाने होंगे।

मैं बेपनाह अंधेरों को सुबह कैसे कहूं
मैं इन नजारों का अंधा तमाशबीन नहीं

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