जो लोग राजनीतिक समाज विज्ञान पर नजर रखते होंगे उन्हें विगत कुछ दिनों से महसूस होता होगा कि दुनिया सियासी तौर पर विभाजित हो रही है। … और यह टूटन की प्रक्रिया इनदिनों तेज हो गयी है। अभी वर्तमान के अमरीकी चुनाव को देखें वहां रिप्बलिकन और डेमोक्रेट अमरीका को वैचारिक रूप से दो भागों में बांटने की कोशिश में लगे हैं। एक भाग केवल अमरीकीकरण को हवा दे रहा है तो दूसरा भाग वैश्वीकरण की तरफदारी में लगा है। यूरोप टूट चुका हे। दुनिया के कई भागों में गंभीर वैचरिक और सामरिक उथल पुथल चल रहा है। राजनीतिज्ञों का इक समूह सोच रहा है कि दुनिया बड़ी जालम है इसलिये अपने मुल्क के चारो ओर विचारों की छोलदारियां खड़ी कर दें। इस तयह के विचारों के कारण हंगरी और पोलैंड में अतिराष्ट्रवादी सरकारें बन गयीं। यूरोप में लोकलुभावन और एकादिकारवादी वाम पंथी और दक्षिण पंथी पार्टियों को सन् 2000 के मुकाबले लगभग दोगुने वोट मिले हैं। यूरोपियन यूनियन दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र था। ब्रिटेन का उससे अलग होना अपने आप में एक संकेत है कि वहां संरक्षणवादी मतों के वोटरों का वर्चस्व हो गया है। हररोज विश्व बंधुत्व और वैश्वीकरण के विरोध की खबरें आ रहीं हैं अलबत्ता ये खबरे एक गूढ़ संकेत के रूप में आ रहीं हैं। दूर की बात छोडृ भी दें तो हाल में 26 जुलाई को एक फ्रांसिसी कैथोलिक इसाई पादरी की इस्लाम समर्थक आई एस द्वारा हत्या की जाने खबर अभी तक इस श्रृंखला की अंतिम खबर है। इन घटनाओं से अति उग्रराष्ट्रवाद के भाव को बढ़ावा मिलेगा और इसके समर्थक लोग चुनाव में इस भाव को बढ़ावा देने वाली पार्टी को वोट देंगे। लिहाजा वैश्वीकरणह और विश्व बंधुत्व को आघात लगेगा। कम्युनिज्म के बाद र्वश्वुकरणविरोधी सबसे बड़ी आशंका का संकेत है। हम या हमारा देश अपने दरवाजे जितनी ज्यादा सख्ती से बंद करेगा उतना ही जीवन स्तर गिरेगा। दूसरे विश्व युद्ध के बाद कंगाल हो चुकी दुनिया में सोवियत संघ को अंगूठा दिखा कर अमरीका ने वैश्वीकरण के सहारे गरीबी उन्मूलन का बहुत बड़ा काम किया। छोलदारियां खड़ी करने वाले देश यकीनन गरीब और खतरनाक होंगे। यूरोप में बिखराव शुरू हो चुका है और अमरीका ने पांव पीछे खींच लिये तो इससे जो शून्य उत्पनन होगा वहां क्रूर या अनुदार ताकतें प्रवेश करेंगी। अभी हाल में डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने भाषण में कहा भी था कि यही बल्टिक क्षेत्र के देशों पर रशिया हमला करता है या उन्हें आतंकित करता है तो अमरीका उसमें हस्तक्षेप नहीं भी कर सकता है। सोचिये , बिना चुनाव जीते ही ट्रम्प इन ताकतों को शह दे रहे हैं तो चुनाव जीतने पर क्या होगा, इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। ये विभाजक ताकतें पहले ही बहुत क्षति कर चुकी हैं। ब्रिटेन मंदी के शिकंजे फंस चुका है। यूरोपियन यूनियन छीज रहा है और अगर अगरे साल चुनाव में फ्रांस के राष्ट्रपति पद के लिये मरीन ल पेन चुन लिये गये और ब्रिटेन के नक्शे कदम पर चला तो यूरोपियन यूनियन तार तार हो जायेगा। इन सारी राजनीतिक दुरावस्थाओं में अमरीका सबसे ज्यादा दांव पर है। खास कर वहां का वर्तमान पार्टी संगठन। अगर हिलरी क्लिंटन जीत गयीं और रिपब्लिकन पार्टी ने वैश्वीकरण विरोधियों के खिलाफ इसी तरह मोर्चा बनाये रखा तो ठीक है वरना सियासी तौर पर दुनिया को विभाजित होने से रोका नहीं जा सकता है। यही नहीं अगर अमरीका में ऐसा होता है तो दुनिया के कई देश इस संकट के शिकार हो सकते हैं। अगर ट्रंप जीतते हैं तो पूरी दुनिया में खास कर एशिया और यूरोप में आर्थिक एवं भौगोलिक संकट के आसार साफ नजर आ रहे हैं।
Monday, August 1, 2016
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