दो दिन पहले खबर आयी कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह के सामने कश्मीर की नेता महबूबा मुफ्ती ने आपा खो दिया और राजनाथ सिंह को उन्हें शांत कराना पड़ा। खबर है कि वहां पैलेट गन की जगह भीड़ को भगाने के लिये मिर्च वाले गोले दिये जायेंगे। यह एक तरह का रासायनिक अस्त्र है जिसे रसायन शास्त्र की भाषा में नोविएमाइड कहते हैं। कहने को तो यह सुरक्षित रसायन है पर उपयोग के बाद की स्थिति अभी परखी नहीं गयी है और फिलहाल इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलोजी में इसका परीक्षण चल रहा है। लेकिन क्या इससे समस्या का समाधान हो सकेगा? इसे लिखे जाने तक कश्मीर में उपद्रव में 70 लोग मारे गये जिनमें दो पुलिसकर्मी भी शामिल थे साथ ही लगभग 4 हजार लोग आहत हो गये। गत 8 जुलाई को हिजबुल मोजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी को मारे जाने के बाद यह उपद्रव आरंभ हुआ था। कई इलाकों में अभी भी कर्फ्यू है। यह उपद्रव पाकिस्तान कुख्यात आतंकी गिरोह लश्कर- ए – तैयबा की शह पर हो रहा है। एन आई ए द्वारा गिरफ्तार किया गया लश्कर का एक सदस्य बहादुर अली ने इस आशय का बयान भी दिया है। अन्य सबूतों से भी ऐसा ही प्रमाणित होता है। इस समस्या की जड़ वह नहीं है जो दिख रही है। सबसे पहले तो राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने पूरे मामले को नासूर बनने दिया। मौजूदा राज्य सरकार की मुखिया महबूबा मुफ्ती , जो आज आग बबूला हो रहीं हैं, ने सियासी फायदे के लिये मामले को बिगड़ने दिया। उन्होंने सत्ता संभालते ही कश्मीर में त्रिस्तरीय (थ्री टीयर) सुरक्षा व्यवस्था को भंग कर दिया। पहले सेना, अर्द्धसैनिक बल और कश्मीर पुलिस ने घाटी में सुरक्षा व्यवस्था संभाल रखी थी। बाद में सेना को वहां से हटा लिया गया। नतीजा यह हुआ कि घाटी में खुफियागीरी का नेटवर्क पूरी तरह ध्वस्त हो गया। इसके बाद जब हालात बिगड़े और इसके सबूत मिलने लगे कि उन्हें सीमा पार से शह दी जा रही है तब भी सुरक्षा बलों को उसके अनुरूप कार्रवाई करने की इजाजत देने की बजाय केंद्र और राज्य सरकारों ने ज्यादा से ज्यादा संयम बरतने का आदेश दिया। यहां तक कि पथराव करती भीड़ के सामने वे चुपचाप खड़े रहते थे। तब भी ज्यादतियों के आरोप लगते थे। नतीजा यह हुआ कि अनुभवविहीन और आसूचनाहीन प्रशासन ने सुरक्षा कार्रवाइयों को बुरी तरह बाधित किया। इसके बाद भी यानी 9 जुलाई को सड़कों पर प्रदर्शन की शुरुआत के बाद अभीतक एक भी ऐसी कार्रवाई नहीं की गयी जिससे लगे कि विद्रोह को दबाने का काम चल रहा है। केवल 15 अगस्त को श्रीनगर में आतंकियों या कहें प्रदर्शन कारियों से सुरक्षा बलों की मुठभेड़ हुई जिसमें प्रमोद कुमार सहित सुरक्षा बल के दो जवान शहीद हो गये। इस शहादत से सबक लेने के बदले राज्य सरकार ने कार्रवाई रोक दी। उसे खौफ था कि वहां प्रदर्शन उग्र हो सकते हैं। इससे अलगाववादियों के हौसले बढ़ गये। सुरक्षा बलों के जवान लाचार हो फकत दर्शक बने रहते हैं लेकिन अलगावादी 9 जुलाई से अब तक 19 हमले कर चुके हैं। जिसमें सुरक्षा बलों के तीन जवान और 8 नागरिक खेत रहे। उधर नियंत्रण रेखा पर सेना और बी एस एफ के जवान तैनात हैं। उन्होंने अपनी मुस्तैदी कायम रखी है और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अबतक सीमापार से घुसपैठ के 52 प्रयास विफल कर चुके हैं। मौजूदा संकट पाकिस्तान की करतूत है। वह कश्मीर में शांति नहीं होने देना चाहता है। हमारे सुरक्षा बलों के जवान अपनी कूव्वत और मौजूदगी की हनक के बल पर वहां अभी भी हालात को सुधारने में लगे हैं। लेकिन संकट का स्थाई या स्पष्ट समाधान के लिये प्रभावशाली नेतृत्व की जरूरत है। बुधवार को महबूबा मुफ्ती ने थोड़ा गुस्सा दिखाया है और कार्रवाई की चेतावनी दी है लेकिन अनुभव बताता है कि यह गीदड़ भभकी है। क्योंकि गत 10 अगस्त को गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में कहा कि सरकार वहां के राजनीतिक दलों एवं अन्य उदार संगठनों से बात करने को तैयार है। यह दिल्ली की भीरुता की निशानी है। गृहमंत्री को यह मालूम है कि वहां के राजनीतिक दल और अन्य उदार संगठन इस मामले में कुछ नहीं कर सकते हैं। इन लोगों से वार्ता के बारे में बातें करना एकदम मूर्खता है। लेकिन उस सरकार को क्या कहा जा सकता है जो उचित मौके पर कान में तेल डाले सो रही थी।
Monday, August 29, 2016
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