चाणक्य का कहना था कि राजनीति में वाचालता सर्वदा घातक होती है।लेकिन एन डी ए सरकार के सभी मंत्रयों की खूबी ही वाचालता है। अभी पिछले हफ्ते के आखिर में गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में दलित मामले में सरकार का बचाव करते हुये कहा कि सरकार दीलतों पर जुल्म ढाने वालो के सख्त खिलाफ है और राज्यों को कहा गया है कि ऐसा करने वालों से कठोरता निपटें। यहां तक कि गौरक्षकों को भी ना छोड़ें जो दलितों पर अत्या चार कर रहे हैं। यहां तक तो बात ठीक थी पर इसके बात वे कह गये कि एन डी ए सरकार के काल में दलितों पर अत्याचार की घटनाओं में कमी हुई है। यही बात बतंगड़ बन गयी। खासकर ऐसे मौके पर जब प्रधानमंत्री जी अपना 56 इंच का सीना आगे कर रहे हों कि दलितों के बदले उन्हें गोली मार दो। हालांकि प्रधानमंत्री जी ने स्वयंभू गौरक्षकों पर कार्रवाई के बारे में कुछ ठोस वायदे करना बंद कर दिया है। अगर प्रधानमंत्री के भाषण के निहितार्थ के आलोक में राजनाथ सिंह जी के भाषण को देखा जय तो यह उनके उच्च जातीय मतदाता वर्ग को एक संदेश सा दिखता है। वे इस मामले में कठोर बात कह भी नहीं सकते हैं क्योंकि इससे उनका अपना वोट बैंक नाराज हो जायेगा। अब इन दोनो बयानात से पार्टी में गंभी विभ्रम पैदा हो गया हे। लोग यह नहीं समझ रहे हैं कि कौन सा रुख अपनाएं। जो मोदी जी ने अपनाया या जो गृहमंत्री जी ने। यही नहीं लोग राजनाथ जी से स्पष्टीकरण मांग रहे हैं कि यदि उनकी बात सही है तो प्रधानमंत्री कार्रवायी की बात क्यों कही? प्रधानमंत्री ने राजनीतिक पटुता दिखाते हुये बयान दिया था ताकि दलित वोट बैंक में सेंध लगायी जा सके। लेकिन गृहमंत्री के बयान ने सब चौपट कर दिया। उधर विगत साल भर से मोदी जी और संघ दोनो अपने अपने ढंग से अम्बेडकर की विरासत दखल करने के प्रयास में लगे थे पर राजनाथ जी के बयान ने सबकुछ बिगाड़ दिया। अब जो ताजा हालात बनते दिख रहे हैं उसमें देश के दलित समुदाय का गुस्सा साफ नजर आ रहा है। आज हालात ये हैं कि अगर पार्टी इक को पकड़ती है तो दूसरा छूट जा रहा है। मायावती वाले मसले में दयाशंकर सिंह को निलमिबत कर दिया गया ताकि दलितों को खुश रखा जा सके , पर यू पी की ठाकुर लॉबी नाराज हो गयी। अगर ऊंची जाति को खुश करने की कोशिश की जाती है तो दलित वर्ग नाराज हो जायेगा, जो अगले साल यू पी के चुनाव में बहुत बड़ा अर्थ रखता है। दलितों को पटाने के लिये ही मोदी जी अपने हर भाषण में अम्बेडकर का संदर्भ देते थे, जबकि वीर सावरकर का उतना जिक्र नहीं करते हैं। यहां तक कि स्वाधीनता दिवस के अपने भने भाषण में भी उन्होंने जबरन अम्बडकर का जिक्र किया। गुजरात , महाराष्ट्र , यू पी और पंजाब में दलित एकजुट हैं और इन राज्यों में जमने के लिये दलितों का समर्थन जरूरी है। लेकिन गौरक्षा के नाम पर दलितों पर जो शरीरिक और मानसिक आाघत पहुंचाया गया है वह जख्म कोरी बातों से नहीं भरेगा। दलितों की यह नाराजगी संभवत: भाजपा को महंगी पड़ सकती है। पहले दलितों को आरक्षण वगैरह दे कर सरकार जो मना लेती थी वह तकनीक अब पुरानी पड़ गयी है। भाजपा के पास इस मसले पर कोई नई सोच है नहीं। गौर से देखों तो पता चलेगा कि देश भर एक खास किस्म का दलित रेनेसां आ गया है। रोहित वेमुला से दक्षिण में दलित छात्रों का आंदोलन उभर उसके बाद मायावती जी को अपशब्द कह देने से दलित आंदोलन के बारूद में चिंगारी लग गयी। गुजरात में मृत पशुओं का चमड़ा हटाने से बात ने जोर पकड़ लिया। एक नयी दलित एकजुटता दिख रही है। दलितों को विश्वास में लेने के लिये सरकार तरह तरह के हथकंडे अपना रही है।कहीं अमित शाह दलितों के साथ खाना खा रहे हैं तो कहीं मोदी गौरक्षकों के गोरख धंधे की बात कर रहे हैं। लेकिन दलितों में यह भरोसा नहीं पैदा कर पा रहे हैं।
Friday, August 19, 2016
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