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Sunday, August 7, 2016

मोदी जी को जब गुस्सा आता है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को अपने बहुप्रचारित भाषण में कहा कि ‘गऊ रक्षा के नाम पर कुछ लोग दुकानदारी करते है। मैंने ऐसे बहुत लोगों को देखा है जो दिन में गौ रक्षा का ढोंग करते हैंऔर रात में समाज विरोधी कार्य। उन्होंने गायों के मरने का कारण कि वे प्लास्टिक खाती हैं इसलिये मर जाती हैं।’ उन्होंने अपील की कि सड़क पर प्लास्टिक ना फेंकें। इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में लोगों के प्रश्नों का जवाब देते हुये उन्होंने यह बात कही। यही नहीं, उन्होंने कहा कि ‘वोट देने के बाद जनता का अधिकार नहीं समाप्त हो जाता। उन्होंने कहा कि विकास और सुशासन में संतुलन होना चाहिये। उन्होंने कहा कि मैं एक मसला उठाता हूं  लेकिन सम्बोधित सारे विभागों को करता हूं। ’  विगत कुछ दिनों से गौरक्षा को लेकर देश में दलितों और अल्पसंख्यकों पर हमलों की घटना सुनने में आ रही है। गुजरात में हालात बेकाबू होते दिखे हैं और इस आग को बुझाने के लिये आनंदी बेन पटेल को ‘इस्तीफा’ देना पड़ा। इस पृष्ठभूमि में मोदी जी के भाषण की समीक्षा जरूरी है। सब जानते हैं कि गो सम्पद की रक्षा के लिये जरूरी है खेती। खेती सिकुड़ती जा रही है। बहस गो रक्षा पर चल रही है। गाएं रखी जायेंगी तो उन्हें खिलायेंगे क्या? बहस विकास पर हो रही है लेकिन उसकी दिशा क्या होगी? भारत की सबसे बड़ी कमजोरी विकास की दिशा ही है। जिससे असंतुलित विकास को बल मिलता है। शहरों के विकास के नाम पर खेतों को रिहायशी प्लॉट में बदल दिया गया। सबसे ज्यादा कृ​षि योग्य भूमि राजस्थान में थी। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2002- 03 से 2013-2014 की अवधि में 12.25 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि खत्म हो गयी। सबसे ज्यादा खेती राजस्थान में होती थी 10वीं योजना काल में वहां 18.29 करोड़ हेक्टेयर कृ​षि बूमि थी जो 11 वीं योजना काल में घट कर 18.22 करोड़ हेक्टेयर हो गयी और 13- 14 में यह और सिकुड़ कर 18.17 करोड़ हेक्टेयर हो गयी। यही हालत देश के अन्य राज्यों में भी है। कहने का मतलब कि खेती सिकुड़ती जा रही है और कृषि आधारित कार्यो, खास कर कृषि निर्भर जीवों के अनुरक्षण पर बहस चल रही है। प्रधानमंत्री निर्देश दे रहे हैं। उन्होंने प्राथमिकता का वर्गीकरण नहीं किया। अपने देश के राजनीतिज्ञों की सबसे बड़ी कमजोरी है कि वे आत्मनिर्भरता और विकास को अलग अलग करके नहीं देखते। विकास की बात आते ही तर्क वितर्क होने लगते हैं। अब पी एम ने जब ब्पालेट ट्रेन का प्रस्ताव दिया तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांदा ने कहा कि यह पी एम के सुटेड बुटेड लोगों के लिये है। यह वाक्य खुद में कई बातें कहता है और भारतीय सोच को बताता है। हमारे देश के सियासत दां विकास को गरीब विरोधी समझाते हैं। चाहे वह जो भी मामला हो उनके दिमाग में रहता है कि इससे गरीब लोग अपना रोजगार गवां देंगे। वे यथास्थिति बनाये रखने के पक्ष में रहते हैं। आजादी के बाद के तीस वर्ष भारत ने आत्म निर्भरता और इलीट समाजवाद  की यूटोपिया में गवां दिये यही हालत चीन की भी माओ त्से तुंग के काल में तीस साल तक हुई। उस समय भारत और चीन की प्रति व्यक्ति आय बराबर  थी। उसके बाद चीन ने अपना नजरिया बदला और  आज वह कहां है यह सब देख रहे हैं। कांग्रेस ही क्यों भाजपा के वर्तमान शासन काल में बहस गो रक्षा पर होती है गरीबी उन्मूलन  पर नहीं। अंतरराष्ट्रीय खाद्य अनुसंधान संस्थान की वैश्विक भूख सूचकांक भारत वैश्विक भूख सूचकांक में 65 वें स्थान पर है। मूलत: सामाजिक और रनितिक असमानता ही आर्थिक गैर बराबरी का कारण बनती है। जबतक किसी परिवार , समूह सम्प्रदाय या   जाति को व्यवस्था में हिस्सेदारी नहीं मिलती तो वह धी धीर आर्थिक तौर पर कमजोर हाने लगता हे और बाद में गरीबी की चपेट में आ जाता है। मोदी जी ने यह बात तो कह दी​ कि वोट डालने के बाद ही मतदाता का हक नहीं खत्म हो जाता। यानी उन्होने व्यवस्था में भागीदारी का इशारा तो किया है पर उसके तरीके क्या होंग यह नहीं बताया। कुल मिला कर यह डैमेज कंट्रोल और जन लुभावन का विज्ञापनी प्रयास कहा जा सकता है।

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