पहली बार नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय सेना ने पाक अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल हमला किया। 3 किलोमीटर अंदर घुसकर 5 सेक्टर में 7 ठिकाने तबाह किए। दुश्मन के 38 आतंकियों को मार गिराया। इसकी पूरी योजना दिल्ली में बैठ कर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने बनायी। हमला कुल 4 घंटे में निपट गया। हमला खत्म करने के बाद सेना ने अपने बयान में कहा कि सभी जवान सुरक्षित लौट आए। हलांकि इसे पहला हमला कहा जा रहा है पर इससे भी पहले फौज ने सर्जिकल हमले किये हैं। खासकर बर्मा और भूटान में। पाकिस्तान पर भी इसके पहले इस तरह के हमले हुये हैं। डीजीएमओ रणवीर सिंह ने कहा, 'बुधवार को बहुत ही भरोसेमंद और पक्की जानकारी मिली थी कि कुछ आतंकी एलओसी के समीप ‘लॉन्च पैड्स’ के अंदर इकट्ठा हुए हैं। वे इस इरादे के साथ इकट्ठा हुए थे कि घुसपैठ कर सीमा के इस तरफ जम्मू-कश्मीर के अंदर या भारत के अहम शहरों में आतंकी हमले कर सकें। यह खबर मिलने के बाद भारतीय सेना ने बुधवार की रात आतंकियों के लॉन्च पैड्स पर सर्जिकल हमले किए। इसका मकसद आतंकियों के नापाक मंसूबों को नाकाम करना था जो हमारे देश के लोगों को नुकसान पहुंचाना चाहते थे। हमारे सर्जिकल हमला में कई आतंकी मारे गए। एलओसी पार उन्हें भारी नुकसान पहुंचा। यह ऑपरेशन अभी खत्म हो गया है। इसका मकसद आतंकियों से निपटना था। हमारा तुरंत ऐसा कोई ऑपरेशन दोबारा चलाने का इरादा नहीं है। लेकिन भारतीय सेना किसी भी आपात स्थिति का जवाब देने को पूरी तरह तैयार है। उन्होंने कहा कि उन्होंने पाक के डीजीएमओ से बात कर उन्हें कल रात के ऑपरेशन की जानकारी दी। हम किसी भी सूरत में आतंकियों को एलओसी के पार बेझिझक हरकत नहीं करने दे सकते। हमें यह मंजूर नहीं होगा कि आतंकी हमारे देश के अंदर किसी भी नागरिक को नुकसान पहुंचाएं। पाक ने जनवरी 2004 में भरोसा दिलाया था कि वे अपनी सरजमीं का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवाद के लिए नहीं होने देंगे। हम उम्मीद करते हैं कि पाकिस्तान अपने वादे पर कायम रहेगा और सहयोग करेगा।" लेकिन यहां एक अहम बात यह है कि सेना ने हमला आतंकियों को मारने के लिये किया या उड़ी का बदला लिया यह फौज स्पष्ट नहीं कर पा रही है। एक तरफ प्रधानमंत्री इसे मीडिया में इस तरह दे रहे हैं कि यह उड़ी का बदला है दूसरी तरफ फौज का कहना है कि यह हमला आतंकियों के सफाये कि लिये था ताकि हमारे जान माल की और हानि ना हो सके। सर्जिकल हमला से बदले हालात पर चर्चा के लिए सरकार ने गुरुवार शाम नॉर्थ ब्लॉक में सर्वदलीय बैठक की। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, सुरक्षा अजीत डोभाल, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर, डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और बाकी राजनीतिक दलों के सभी प्रमुख नेता शामिल हुए। बैठक में रक्षा मंत्री पर्रिकर ने राजनीतिक दलों को सर्जिकल हमला की जानकारी दी। सभी नेताओं ने इस कदम के लिए सरकार का समर्थन किया।
सर्व दलीय बैठक से पहले सोनिया गांधी ने कहा- ' देश की सुरक्षा के लिए सरकार की तरफ से उठाए गए कदम में हम उसके साथ हैं। सर्जिकल हमला से सेना ने पाकिस्तान को सख्त संदेश दिया है। हमें उम्मीद है कि पाकिस्तान को इस बात का अहसास होगा कि उसने भारत के खिलाफ सीमा पार से आतंकवाद जारी रख भारी भूल की है।' उड़ी हमले के बाद से ही भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव और बयानबाजी जारी है। पाक के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने परमाणु हमले को लेकर डराने की कोशिश की है। उन्होंने कहा- “टैक्टिकल वेपन्स जो हैं, जो हमने यह प्रोग्राम डेवलप किया हुआ है। यह अपनी हिफाजत के लिए डेवलप किया हुआ है। हमारी डिवाइसेस जो हैं 'जस्ट एज शो-पीस' तो नहीं रखे हुए। लेकिन अगर हमारी सलामती को खतरा हुआ तो हम नेस्तनाबूद कर देंगे उनको।” इस धमकी के बाद पंजाब में सरहद के 10 किलोमीटर के अंदर तक 200 गांव खाली कराने के लिए कहा गया है। पाकिस्तान की तरफ आतंकी ठिकानों पर भारतीय सर्जिकल हमला के दावे को पड़ोसी मुल्क की सेना ने खारिज किया है। पाकिस्तान की सेना की मीडिया विंग ने कहा, 'इंडिया की ओर से कोई सर्जिकल हमला नहीं हुआ है। इसके बजाए भारत की ओर से क्रॉस बॉर्डर फायरिंग की गई, जोकि होता आया है। कायदों के मुताबिक पाकिस्तानी सेना की ओर से इस फायरिंग का कड़ा जवाब दिया गया।' माना जा रहा है कि किसी किस्म की शर्मिंदगी से बचने के लिए पाकिस्तान की ओर से यह बयान दिया गया है। ऐसा न करने पर पाकिस्तानी हुकूमत को देश की जनता को समझा पाना मुश्किल होता और उन पर भी कार्रवाई करने का दबाव होता। पाकिस्तानी सेना का यह बयान इसलिए भी संदिग्ध है क्योंकि पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ ने हमले की खबर आते ही इसकी कड़ी निंदा की। उधर विषेशज्ञों का कहना है कि भारतीय सेना द्वारा सर्जिकल हमला उड़ी में आतंकी हमले के बाद देश की जनता में उमड़े 'व्यापक गुस्से' को शांत करने के लिए किया गया। प्रधानमंत्री ने चेतावनी दी थी कि उड़ी में हुए आतंकी हमले का बदला लिया जाएगा, और सही समय आने पर सेना कार्रवाई करेगी। इस हमले के बाद की कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी मिला है। अमरीका के सुरक्षा सलाहकार सुजैन राइस ने फोन करके भारतीय सुरक्षा सलाहकार से बातें की हैं। लेकिन अगर जंग होती है तो इसका भारत पर गंभी असर पड़ सकता है। खासकर अर्थ व्यवस्था और रोजगार पर।
Friday, September 30, 2016
मुंहतोड़ जवाब
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Thursday, September 29, 2016
उड़ी हमले के बाद नदी जल समझौता
उड़ी हमले के बाद नदी जल समझौता
उड़ी हमले के बाद पाकिस्तान को दंडित करने के लिये देश भर में तरह तरह की बातें हो रहीं हैं। आम आदमी ओर विश्लेषक सभी तरह तरह के विकल्प सुझा रहे हैं। पाकिस्तान की मुश्कें कसने के अनेक उपायों में से एक है सिंधु जल समझौते की समीक्षा। यह समीक्षा पाकिस्तान के युद्धों, युद्ध की तरह के हालात, आतंकवाद की चरम स्थिति और ऐसे ही कई मौकों के बावजूद यह समझौता अपनी जगह कायम रहा। उड़ी हमले के बाद मोदी जी ने इस समीक्षा की ओर लोगों काध्यान यह कह कर आकर्षित कर दिया कि ‘खून और पानी साथ- साथ नहीं बह सकता है। ’ उड़ी हमले के बाद अचानक नदी जल समझौते के विशेषज्ञ उभर आये। कुछ लोगों ने समझौते की समीक्षा की बात कही जबकि कुछ ने तो इसे सिरे से रद्द करने की बात कह दी। खबर है कि इस समझौते की समीक्षा के बारे में सर्वोच्च स्तर पर बात चल रही है। इस बात के बाद तीन बातें दिमाग में आतीं हैं। पहली कि हालांकि इस समझौते को विश्व बैंक ने लागू किया था परंतु वह इसका गारंटर नहीं है। इसलिये इसे एकतरफा रद्द करने से दुनिया भर में देश की हंसाई होगी। दूसरी कि भारत ने ऐसी कोई ढांचागत तैयारी नहीं कर रखी है जिससे वह तीन नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब – के पानी को रोक सके या उसकी धारा की दिशा बदल सके। इसका उपयोग निषेधक की तरह हो सकता है जो परमाणु बम से ज्यादा घातक हो सकता है। तीसरी बात कि, पाकिस्तान में पश्चिम की नदियों का पानी ग्लेशियर के पिघलने पर निर्भर है और उपलब्धता खुद खतरनाक पर पहुंच चुकी है। अब अगर इसमें कमी गयी तो बलोचिस्तान और सिंध में पानी का अभाव हो जायेगा और वहां विपदजनक स्थिति पैदा हो जायेगी। लगभग तीन साल पहले का वाकया है जब भारत ने पाकिस्तान की ओर जाने वाली नदियों पर बांध बनाने का काम आरंभ हुआ था। इसके विरोध में वहां काफी तनाव हो गया था और वहां कहा जाने लगा था कि ये नदियां पाकिस्तान के लिये हैं और यह जल समझौते को तोड़े जाने के करीब है। इससे जंग हो सकती है। यह कोई नयी बात नहीं है। 1960 में नदी जल समझौता हुआ था और उस समय वहां सोहरावर्दी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने साफ चेतावनी दी कि जल के लिये एकदम जंग हो सकती है। इस तरह कीि धमकियां इतनी बार दी जा चुकी हैं कि खुद अपना अर्थ खो चुकी हैं। वहां तो पाकिस्तान में मीडिया में भी अक्सर कहा जाता है कि जल के लिये परमाणु युद्ध हो सकता है। अप्रैल 2008 में पाकिस्तान में सिंधु जल समझौते के कमिश्नर जमात अली शाह ने एक इंटरव्यू में साफ कहा था कि भारत की नदी परियोजना से जल समझौते पर कोई असर नहीं पड़ता है। लेकिन , पाकिस्तान में बहुत ऊंचे स्तर पर भी लोग यह उत्तेजना फैला रहे हैं कि ‘भारत पाकिस्तान का पानी चुरा रहा है।’ सन 2004-2005 में जब बगलीहार परियोजना पर विवाद हुआ था तो पाकिस्तान ने हरचंद कोशिश की थी कि इस समझौते पर फिर से समझौता हो। इसका मतलब कि कम पानी के मौसम में भी जल का बंटवारा। दुख की बात यह है कि इस समझौते के इतिहास को जाने बगैर हमारे देश के कुछ कथित विश्लेषकों ने इस समझौते की समीक्षा की बात उठानी शुरू कर दी है। एक विश्लेषक ने यहां तक कह दिया कि दुबारा समझौते से दौनों देों में विश्वास बढ़ेगा । व्यवहारिक तौर पर यह एक सपना है जो नामुमकिन है। उन्हें यह समझना चाहिये कि सिंधु जल समझौता अपने आप में अकेला है। इसमें जल का बंटवारा नहीं हुआ है बल्कि नदियों का बंटवारा हुआ है। इस समझौते से कई मुश्किलें और विवाद खत्म हो गये। कुल मिला कर अगर कहें तो यह समझौता दोनो तरफ से कुछ लेने और कुछ देने के आधार पर हुआ है। इसके लिये सहमति पूर्ण वातावरण और पारस्पिरिक विश्वास जरूरी है जो दोनो देशों के बाच पूरी तरह अभाव में है।
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Wednesday, September 28, 2016
जनता का उफनता गुस्सा
जनता का उफनता गुस्सा और सरकार के समक्ष विकल्प
उड़ी में सोये हुये भारतीय फौजियों पर हमले कर उन्हें मौत के घाट उतार देने की कार्रवाई से भारतीय समाज में उफन आया गुस्सा खुद में सामाजिक जीवन में आवेग का गुणक है। अतएव इस हालात का बहुत सावधानी पूर्वक विश्लेषण किया जाना जरूरी है। यह विश्लेषण इस लिये नहीं जरूरी है कि जो हुआ वह गलत हुआ और अति कायरता का सबूत है। हमें इस गुस्से का बड़े ठंडे दिमाग से विश्लेषण करना होगा क्योंकि यह एक ऐसा गुणक है इतिहास को प्रभावित करेगा और युद्ध जैसी घटनाओं पर भी असर डालेगा। अतएव विस्तृत सैन्य सिद्धांतों के वर्णपट पर इसके विभिन्न पहलुओं को देखना होगा। इस मामले में मानवीय भावनाओं का उपयोग बड़ा सिनिकल सा लगेगा इसलिये जरूरी है कि इससे होने वाले लाभ और हानि का लेखा जोखा किया जाय ताकि निकट भविष्य में और सुदूर भविष्य में दोनों मौकों पर इसका उपयोग हो सके। भारतीय मीडिया तो लगातार मुंहतोड़ जवाब देने की बात कर रहा है और पाकिस्तानी मीडिया वहां की सरकार को कोस रहा है कि वह जंग की ओर कदम बड़ा रही है तथा वह जो दलील दे रही है उसपर दुनिया को यकीन नहीं है। अब अगर हम दोनों की बातों पर विचार करते हुये अगर युद्ध की दिशा में सोचते हैं कि आगे चल कर सरकारों पर इसका क्या असर होगा तो भारतीय मीडिया इस बाजी को जीत लेगी। अब बात आती है कि यह सरकार के लिये क्यों परेशानी का विषय है? इसलिये कि मोदी सरकार और उसके मंत्रियों ने विगत दो वर्षों से ऐसी विचारधारा को जन्म दिया है जो पिछली सरकारों की नीतियों से बिल्कुल भिन्न है। वह विचारधारा है कि ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाना चाहिये। अब ऐसे में जनता की उम्मीदों के वजन को संभालना और फिर हालात का मूल्यांकन करना एक वास्तविक समस्या बन जाती है। भारत और पाकिस्तान के रिश्ते खास कर कश्मीर के संदर्भ में एक इेसा मसला है जो अखबारों की खबरों और टेलीविजन की बहसों से नहीं तय होगा। लेकिन अभी जो हाल है कि ‘घर के भीतर’ लोगों में गुस्सा उफन रहा है जो अपने आप में एक शस्त्र है। जनता के गुस्से का इजहार दानों तरफ के लोगों में एक विचार कायम करने का जरिया बनता जा रहा है। इस विचार मीडिया के वर्तमान प्रसार युग में कितनी भी कोशिश की जाय रोकना मुमकिन नहीं है। मिसाल की तौर पर देखें कि सीमा के उस पार एक आम पाकिस्तानी भारत में टेलीविजन पर होने वाली बहसों को ना देख सकता है ना उसका जवाब दे सकता है। लेकिन रावलपि।डी में बैठे नेता और इसपर इस पर जरूर निगाह रख रहे होंगे और इसका जवाब भी तैयार कर रहे होंगे दूसरी तरफ भारत को लगे कि वे भी तैयार हैं। अब ऐसे में कोई यह पूछता है कि देश के भीतर उफनता गुस्सा एक कारण कैसे बन सकता है तो उसे सबसे पहले ऐसी हालत में सरकार के पास उपलब्ध विकल्पों का जायजा भी लेना होगा। एक खास ऊंचे स्तर पर जनता शुद्ध सैनिक या सामरिक तथ कूटनीतिक उत्तर का अर्थ समझती है और उसे विकल्पों के आधार पर तौलती है। परंतु ऐसे समय में जैसा कि वर्तमान में है हम एक ऐसे युयुत्सु पड़ोसी के समक्ष खड़े हैं जो ऐतिहासिक विवाद का विषय भी है। ऐसे में सामरिक या कूटनीतिक विकल्प अकेले कुछ नहीं कर सकते। ऐसे मौको पर हमें विकल्प के सेट्स को तैयार करना होगा। अगर उर्जा की विज्ञान की भाषा में कहें तो हमें काइनेटिक और ननकाइनेटिक जवाबों के विकल्प देखने होंगे। काइनेटिक विकल्प का अर्थ समझें कि सीधा फौज को झोंक दिया जाय और ननकाइनेटिक विकल्प है कि दूसरे तरीके बल प्रयोग किया जाय। मसलन उसका आर्थिक और अन्य प्रकार के वहिष्कार हों ताकि उसका ज्यादा समय तक प्रभाव हो। लेकिन अगर इसे सही ढंग से नहीं लागू किया गया तो परिणाम घातक भी हो सकते हैं। जैसा कि इराक के साथ हुआ। अब जैसा कि मानव स्वभाव है कोई भी नहीं चाहेगा कि पाकिस्तान का आम आदमी जंग का शिकार हो इसलिये परमाणु युद्ध जैसे भड़काउ तर्कों से ननकाइनेटिक विकल्प ज्यादा अक्लमंदी होगी। अगर दोनों तरफ औचित्यपूर्ण पृष्ठभूमि में जन आक्रोश उफनता है तो पाकिस्तान अपनी समरनीतियों पर विचार के लिये बाध्य हो जायेगा और दुनिया के सामने लाचार हो जायेगा। भारत को ऐसी ही कोशिशें करनी चाहिये।
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Tuesday, September 27, 2016
वज्रादपि कठोराणि
वज्रादपि कठोराणि मृदुणि कुसुमादपि
दुनिया के सबसे बड़े मंच संयुक्त राष्ट्र महासभा के 71वें सत्र में भारत के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 193 देशों के सामने कहा कि कुछ देश आतंकवाद पालने का शौक रखते हैं। उन्होंने पाकिस्तान को आइना ज्दिखाते हुये शुरुआत में मानवता, शांति और गरीबी पर अपनी बात कही और बाद में आतंकवाद पर उसे घेरा। 21 सितंबर 2016 को पाकिस्तानी पीएम नवाज शरीफ के भाषण पर सुषमा ने पलटवार करते हुए कहा कि जिनके घर शीशे के हों, वो दूसरे के घर पत्थर नहीं फेंकते। शरीफ के कश्मीर राग पर सुषमा जी ने स्पष्ट किया कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और कोई भी इसे हमसे नहीं छीन सकता। सुषमा जी का यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान बार-बार कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग करता रहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बलूचिस्तान पर पहले ही साफ कर चुके हैं कि भारत के लिए अब वह अछूता मुद्दा नहीं है। लेकिन सुषमा स्वराज इस मुद्दे को अब संयुक्त राष्ट्र में भी ले गई हैं। पिछले हफ्ते कश्मीर में भारत के खिलाफ मानवाधिकार हनन का आरोप लगा चुके शरीफ को सुषमा ने दो टूक कहा, उन्हें अपने घर में भी झांक कर देखना चाहिए कि बलूचिस्तान में क्या हो रहा है? बलूचियों पर होने वाला अत्याचार यातना की पराकाष्ठा है। सुषमा जी ने पाकिस्तान की तरफ इशारा करते हुए कहा, 'कुछ देशों के लिए आतंक को मदद करना शौक बन गया है। दुनिया में कुछ ऐसे देश हैं जो आतंकियों को बोते, उगाते और पालते हैं। आतंकवाद का निर्यात भी करते हैं। आतंकवाद के ऐसे शौकीन देशों की पहचान होनी चाहिए। और, उन्हें अलग-थलग कर देना चाहिए। आज आतंकवाद ने राक्षस का रूप धारण कर लिया है। उसके अनगिनत मुंह हैं, अनगिनत पैर हैं, अनगिनत हाथ हैं। नवाज शरीफ ने भारत-पाक वार्ता की नाकामी का ठीकरा नई दिल्ली पर थोपने की कोशिश की थी। इस पर सुषमा जीं बोलीं, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के मौके पर नवाज शरीफ को बिना शर्त आमंत्रित किया गया था। हमने हमेशा मित्रता की पहल की और हमें बदले में उड़ी मिला।' ''हमें अपने मतभेद भुलाकर आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होना होगा। हमें पुराने समीकरण तोड़ने होंगे और दृढ़ निश्चय के साथ आतंकवाद का सामना करने की रणनीति बनानी होगी।'' सुषमा स्वराज ने जोर देकर कहा कि, ''यदि कोई देश इस तरह की रणनीति में शामिल नहीं होना चाहता तो उसे अलग थलग किया जाए। सचमुच आतंकवाद के खिलाफ व्यापक वैश्विक संधि का प्रस्ताव 20 साल से लंबित है। 1996 में इसे पेश किया गया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ। आतंकवाद के खिलाफ कोई अंतरराष्ट्रीय कानून नहीं बना जो आतंकवादियों को सजा दे सके। 1945 में कुछ ही देशों के हितों की रक्षा के लिए यह बना था। आज की वास्तविकता और परिस्थितियों के अनुसार इसमें बदलाव करना होगा। सुरक्षा परिषद की स्थायी और अस्थायी सदस्यता का विस्तार होना चाहिए। सुषमा जी ने जो बात राष्ट्र संघ में नहीं कहीं वह है कि आतंकवाद के इस पालक मुल्क की हर गतिविधि खास कर आतंकी गतिविधियों को हमारे देश में या दुनिया की मीडिया में प्रचार मिलता है जिससे शिकार देश या क्षेत्र के साथ साथ सभी पर एक मानसिक दबव पड़ता है और हमलावरों को साहस मिलता है। पहले कदम के तौर पर इस पर संयम बरतने की सलाह दी जानी चाहिये। विश्वमंच को इस पहलू पर भी विचार करना चाहिये। किसी राष्ट्र पोषित आतंकवाद तबतक खत्म नहीं हो सकता जबतक उस पर थर्थिक, कूटनीतिक तथा सांस्कृतिक पाबंदियां ना लगायीं जायें। पाकिस्तान पर भी ऐसी पाबंदियों लागू करने की वैश्विक पहल जहरूरी है। क्योंकि वह परमाणु शस्त्र से लैस देश है तथा अगर उत्तेजना ण्या आतंकवाद के समर्थक तत्वों के प्रभाव में आकर कभी इसका उपयोग कर लिया तो अंजाम क्या होगा यह सब सोच सकते हैं। किसी सिरफिरे के हाथ में परमाणु बम का ट्रेगर बटन का होना बेहद खतरनाक है क्योंकि इस पर दुनिया की एक बहुत बड़ी आबादी का भविष्य निर्भर है।
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Monday, September 26, 2016
विचित्र उत्तेजक अवसाद में फंसा देश
विगत हफ्ते भर से अपना देश एक अजीब स्थिति में अलझा हुआ है। जिन लोगों ने आज तक एक गोली भी नहीं चलायी वे लगातार सलाह देते हुये देखे - सुने-पढ़े जा रहे हैं कि पाकिस्तान पर हमला कर ही दिया जाय। कई लोग अदम्य शौर्य दिखाते देखे जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर मृत या घायल जवानों की तस्वीरे डाल कर भारत माता की जय कहने की बात कही जा रही है। पूरा देश एक खास किस्म के अवसाद भी उत्तेजना से ग्रस्त है। यहां तक कि रक्षा मंत्री ने भी कड़क आवाज में प्रतिक्रिया जाहिर की और उड़ी की घटना की भयानक चूकों को देखते हुये चुप हो गये। उन्होंने मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर छोड़ दिया। हमारे राजनयिकों ने जैसी बातें कहीं उनसे तो लगता है कि पाकिस्तान दुनिया में अकेला पड़ गया है। नवाज शरीफ के बॉडी लैंग्वेज के भारतीय मीडिया में जरूरत से ज्यादा विश्लेषण किया गया। जहां तक राष्ट्र संघ में पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करने के प्रस्ताव का सवाल है तो यह एक शातिर चालाकी है, एक तरह प्रेशर वाल्व की तरह, लोगों का गुस्सा थोड़ा कम करने की कोशिश। जो लोग देश की हिफाजत के लिये जिममेवार हैं वे लगातार हमें आश्वस्त करते आ रहे हैं कि किसी भी तरह के दुश्मन को सबक सिखा सकते हैं। यह सब खोखले बोलों की तरह लग रहे हैं। यहां तक कि एक सफल जासूस के रूप में दुनिया भर में मशहूर हमारे नये सुरक्षा सलाहकार ने जब पदभार ग्रहण किया था तो उम्मीद जगी थी कि कुछ होगा। दबे ढंके कुछ किया भी गया जिससे पाकिस्तान की फौज और सुरक्षा एजेंसियों को यकीन हो गया कि भारत मुंहतोड़ उत्तर दे सकता है। भारत की जनता का अब धैर्य जवाब दे रहा है। इसके बावजूद सभी मानते हैं कि बदला सदा मामले को ढंडे होने के बाद लिया जाना चाहिये लेकिन इतन देर भी ना हो कि बदले का स्वरूप ही बदल जाय। बहुत उम्मीद है कि दुनिया इसे हमला समझ ले। हमने पठान कोट का हमला भुला दिया है। यह भूलना ही पाकिस्तान में इतनी हिममत भर गया है कि वह हमें कायर समझने लगा है। हमें इस धोखे में नहीं रहना चाहिये कि मोदी जी ने बलोचिस्तान का मामला उठा दिया है और पाकिस्तान चारो तरपफ हाय हाय करता फिर रहा है। बलोचिस्तान, गिलगित इत्यादि क्षेत्रों में जो हो रहा है वह होता रहेगा क्योंकि अब तक पाकिस्तान के दो दोस्त चीन और अमरीका ने उसके बारे में एक शब्द भी नहीं कहा है। यही नहीं , इस्लामी दुनिया भी इतनी जल्दी पाकिस्तान का साथ नहीं छोड़ने वाली है। अब हम क्या करें? यह एक बुनियादी सवाल है। यह सही है कि युद्ध आसान विकल्प नहीं है पर हमें यह भी नही भूलना चाहिये कि यह अपनी नीति को अन्य उपायों से बनाये रखने का तरीका भी है।
जंग रहमत है या लानत ,यह सवाल अब ना उठा
जंग जब आ ही गयी सर पे तो रहमत होगी
दूर से देख न भड़के हुये शोलों का जलाल
इसी दोजख के किसी कोने में जन्नत होगी
हर बार मेखा गया है कि जब जंग थोपी जा रही है तो फिर कोई विकल्प भी नहीं है। 1971 में क्या हुआ था? बहुत लोग इसे भूल चुके होंगे। जब इंदिरा जी ने बंगलादेश की आजादी की लड़ाई में हाथ बंटाने का फैसला किया उस समय तक हम बहुत कुछ गवां चुके थे। आज उससे अलग हालात नहीं हैं। पठानकोट से उड़ी तक घुसपैठ और हमले हुये और हमने अभी तक कुछ किया नहीं। इससे दुश्मन की हिममत बढ़ी है। हम तो केवल इसी व्यामोह और मुगालते में हैं कि शांति के लिये वार्ता जरूरी है।
हमने चाहा था लड़ाई न छिड़ी , जंग ना हो
वो समझ बैठे कमजोर हैं हम , लाचार हैं हम
हमने चाहा था मुहब्ब्त से सुलझा लें झगड़े
वे समझ बैठे मफलूज हैं हम बेकार हैं हम
इस मुगालते में हम अपने लोग चाहे वे फौजी हों या नागरिक उन्हें खोते जा रहे हैं। जब भी हमला होता है हम जैसी नींद से जागते हैं और चारो तरफ शोर शराबा होने लगता है। इसी बीच से धीरे धीरे राजनयिकों की भाषा निकलने लगती है। अब तो देखा जा रहा है कि फौजी अफसर भी सोच समझ कर काम करने की सिफारिश करते सुने जा रहे हैं। हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि ‘भय बिनु होत ना प्रीति।’ बातें समझदार लाशेगों से की जाती हैं। आतंकियों और गुंडों से नहीं। एक जान के बदले जान वाली बात कहने पर लगता है कि हम बर्बर युग में आ गये हैं। पर हकीकत यह है कि भारत और पाकिस्तान वक्त के एक दूसरे हिस्से में जी रहे हैं। अब बहुत हो गया। अब केवल फौजी विकल्प ही बाकी है।
हम अहिंसा के पुजारी सही , दीवाने सही
जंग होती है फकत जंग के ऐलान के बाद
हाथ भी उनसे मिले, दिल भी मिले, नजरें भी
अब ये अरमान हैं सब , फतह के अरमान के बाद
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