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Tuesday, April 11, 2017

तीसरे विश्वयुद्ध का आगाज़ ?

तीसरे विश्वयुद्ध का आगाज़?
सीरिया पर अमरीका ने मिसाइलों से हमला शुरू कर दिया है और अमरीकी मीडिया इसे तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत कह रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि " चिल्ड्रन ऑफ गॉड " को रासायनिक हथियारों से बचाने के लिए यह आक्रमण किया गया लेकिन अमरीकी मीडिया का कहना है कि इस दुखद व्याख्या पर भरोसा नही होता। विश्व युद्ध के शुरुआत की आशंका क्यों ज़ाहिर की जा रही है इसका संकेत राष्ट्र संघ में अमरीकी राजदूत निकी हेली की बातों से मिलता है। हेली ने पिछले हफ्ते कहा कि , विगत 6 वर्षों से चल रहे गृह युद्ध में असद की फौजों ने जो कहर बरपा किया है उसमें 2 लाख से ज्यादा  मारे गए। दुनिया के कई नेताओं ने इसका विरोध भी किया । हेली ने कहा कि असद और उसके सहयोगी रशिया और ईरान को यह बताने का सही वक्त है कि " अमरीकी राष्ट्र पति की प्राथमिकता है कि वे चुप चाप बैठे नहीं देख सकते कि कब असद को गद्दी से हटाया जा रहा है या वे गद्दी छोड़ रहे हैं।" अमरीकी विदेश सचिव रेक्स टिलरसन ने इसका समर्थन किया है और वाइट हाउस के प्रवक्ता सिआन स्पाइसर ने कहा है कि " यह मामूली राजनीतिक सच्चाई" है। इन सारे तथ्यों पर विचार के बाद ऐसा लगता है कि विश्व सब्सेव खराब सैन्य या मानवीय अराजकता के संदर्भ में अमरीकी नीतियों नाटकीय परिवर्तन हुआ है। अमरीका के इस कदम का नतीजा यह हो सकता है कि सीरिया की बर्बरता और बढ़ जय तथा वह रासायनिक हथियारों का खुल कर उपयोग करने लगे।इसके बाद अमरीका भी और ताकतवर तौर पर मुकाबले में उतार सकता है। इसी आशंका को भांप कर विख्यात अमरीकी युद्ध विशेषज्ञ कर्नल सर्जी संगराई और डॉक्टर टेड ब्रॉअर ने इसे विश्व युद्ध की शुरुआत कहा है। इन सब बातों से महसूस होता है कि अमरीकी नीति खास कर सीरिया के संदर्भ में , बदलने वाली नही है। सबसे बड़ी बात तो यह लग रही है कि अमरीका में वह राजनैतिक इच्छाशक्ति नहीं है कि वह सीरिया के खिलाफ पूर्ण युद्ध में उतार जाय और वहां के शासक को बदल डाले। अब इसका दूसरा किफायती विकल्प है कि असद विरोधी गुटों को हथियार दे और खुद विमानों से बमबारी करता रहे। इसका नतीजा होगा कि सीरिया के बेकसूर लोग अमरीका के हाथों भी मारे जाएंगे। कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि अमरीका नैतिकता से संचालित सत्ता है और सदा एक नैतिक सीमा रेखा के भीत रहता है पर दुनिया को इसपर भरोसा नही है । सबका मानना है कि किसी वृहद मानवीय संकट के समाधान में अमरीकी हस्तक्षेप के दौरान वह आदर्श की अपनी छवि को बनाये नहीं रख सकता है। इसी के कारण कई देशों को सीरियाई शरणार्थियों की बाढ़ का भय सता रहा है। दुनिया के सामने इराक़ और लीबिया में अमरीकी हस्तक्षेप का उदाहरण है और दुनिया भर के लोग मानवीयता के नकाब में दखलंदाजी से डरने लगे हैं।दूसरी तरफ रशिया और चीन ऐसी किसी अमरीकी दखलंदाजी के खिलाफ यह कह कर विश्व जनमत तैयार कर रहे हैं कि " अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के सारे कानून अमरीका नहीं बना सकता।" इसासे एक साधारण सच्चाई का पता चल रहा है कि दुनिया अमरीका का भाव घाट रहा है। सकने जो एक आत्म छवि बना रखी है कि यह नैतिकता द्वारा संचालित सत्ता है तथा मानवीय सहायताओं के बाद कि स्थिति को सही करने की उसकी काबिलियत के बीच दूरी बढ़ती जा रही है। सीरिया में बदलाव के लिए ओबामा ने बम गिराए थे और ट्रम्प ने मिसाइलों से हमला किया। इसासे पता चलता है कि अमरीकी नीतियों में बदलाव नही आया है उल्टे वे असफल रहीं हैं। दुनिया डरी हुई है । उत्तर कोरिया से यमन होते हुए हालात को देखें की महल कितना खौफनाक है। सम्पूर्ण विश्व व्यवस्था आतंकित है क्योंकि महाशक्तियों की कार्रवाई स्पष्ट नहीं है। वे एक तरह से वहां से वसूली में लगे हैं कि क्या कुछ मिल सकता है। छोटी ताकतें भी कुछ खींच लेने के चक्कर में हैं। यहां दो सवाल आते हैं पहला की क्या अमरीका सचमुच सहयोग करेगा ? लगता नहीं है। क्योंकि महाशक्तियों के लिए सीरिया, उत्तर कोरिया और अन्य छोटे छोटे देश इस्तेमाल की वस्तु हैं। इसलिए वे खतरों को दूर नही करना चाहते हैं। दूसरी बात यह है कि अमरीका सीरिया से क्या चाहता है ? वास्तविकता तो यह है कि उसे खुद मालूम नहीं कि वह चाहता क्या है। जहां तक भारत पर खतरे का प्रश्न है तो पाकिस्तान से मध्यस्थता को ले कर अमरीका भारत - पाक के मध्य खड़ा होना चाहता है। यह एक खतरनाक कदम हो सकता है।

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