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Wednesday, April 5, 2017

शेख हसीना की भारत यात्रा

शेख हसीना की भारत यात्रा 
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद काल से तीन दिवसीय भारत यात्रा पर आ रहीं  हैं। इस यात्रा के अबसे पहले भी दो बार कार्यक्रम बन चुके थे पर भारत सरकार की घरेलू उलझनों के कारण सफर मुअत्तल कर दिया गया था । उम्मीद की जाती है कि इस यात्रा से द्वी पक्षीय संबंध और सुधरेंगे। दोनों देशों कैद लोगों और सरकारों में बढ़ते संबंध का दक्षिण एशिया के देशों पर प्रशंसात्मक प्रभाव पड़ा है । सबसे बड़ी खूबी है कि इस रिश्ते में कहीं भी तू तो- मैं मैं नहीं है उल्टे दोनों के बीच ऐसे द्विपक्षीय संबंध हैं जो अपने लोगों के हितों के मामले में दूसरे देशों के लिए अनुकरणीय है। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि बंगला देश के प्रधान मंत्री को राष्ट्रपति भवन में ठहरने किए लिए आमंत्रित किया गया है।राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने केवल शेख हसीना के मित्र हैं बल्कि दोनों के परिवारों में भी मित्रता है। ढक में भारत के राजदूत हर्ष वर्धन श्रृंगला ने  ढाका में मीडिया को यह सही बताया है कि " भारत प्रधानमंत्री हसीना की यात्रा को बहुत महत्व दे रहा है।" इस एक वाक्य में ही राजदूत ने भारत की भावना को अभिव्यक्त कर दिया। दोनों देशों के बीच कई मसले थे जिन्हें झाल के वर्षों में सुलझा लिया गया। शेख हसीना के नेतृत्व वाली आवामी लीग सरकार उन मामलों को सुलझाने में बहुत कारगर कारक बनी। 1974 का इंदिरा - मुजीब भूमि सीमा संझुता पिछले साल संसद द्वारा पारित किया गया।यदि 15 अगस्त 1975 को शेख मुजीब की हत्या नही हो गई होती तो इस समझौते में इतना वक्त नहीं लगता। तबसे बंगला देश की स्वतंत्रता को खत्म करने की कई कोशिशें हुई जो आज भी क़याम हैं। भारत के साथ समुद्री सीमा विवाद शेख हसीना ने सुलझाया। बहुपक्षीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए निर्मित बे ऑफ बेंगाल इनिशिएटिव भी प्रगति पर है पर उसकी गति बहुत धीमी है।इस इनिशिएटिव में 7 क्षेत्रीय समूह शामिल हैं जिसमें भारत का अवदान ज्यादा है। इस इनिशिएटिव के मसाएल हैं इस में शामिल सदस्यों की समान चुनौतियों का मुकाबला, पारंपरिक और गैर पारंपरिक सुरक्षा की चुनौतियां एवं आर्थिक विकास। बंगला देश में बिजली का घोर अभाव है और वह भारत से बिजली खरीद रहा है। साथ ही भारत बंगला देश में विद्युत परियोजनाएं बनाने में मदद कर रहा है।लेकिन कुछ लोग हैं जो रामफल परियोजना को अवरूद्ध कर रहे हैं। उनका मानना है कि इसके बन जाने से सुंदर बन के पर्यावरण को खतरा है। यही नहीं बंगला देश नेपाल और भूटान से भी बिजली खरीद रहा है और भारत नै अपनी जमीन से ट्रांसमिशन लाइन ले जाने की छोटी दे रखी है। अगर इन सब प्रोजेक्ट्स को एक साथ मिला दिया जाय तो बंगला देश के विकास को काफी प्रोत्साहन मिलेगा।इसके अलावा दोनों देशों के बीच और भी कई परियोजनाएं चल रहीं हैं , जैसे बंगला देशी छात्रों के उच्च एवं तकनीकी  शिक्षा के लिए  छात्रवृत्ति , काम व्याज दर पर ऋण और दोनों देशों में सीमा के आर पार व्यापार वृद्धि के अवसर।इनके अलावा कई ऐसी भी सहूलियतें हैं जो दिखती नहीं हैं जैसे बंगला देशियों की चिकित्सा सुविधा खास कर कोलकाता में।यह सच है कि जितनी पूंजी चीन लगा सकता है पर यह भी सच है कि भारत जो कर रहा वह भी कम नहीं है। यहां विस्का यह अर्थ नही समाझ्ने चहिए कि चीन - बंगलादेश सहयोग का भारत विरोधी है।मूल समस्या है वहां बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्ट्री द्वारा लगातार भारत के खिलाफ फैलाई जा रही नफरत। हर कदम पर अवरोध से बांग्लादेश की जनता का कल्याण नहीं होने वाला।बेशक तीस्ता जल समझौते पर हस्ताक्षर मैं विलंब दुखद है। सब कुछ तैयार है बस हस्ताक्षर रुका पड़ा है।  शेख हसीना की इस यात्रा के दौरान भी हस्ताक्षर सम्भव नहीं लगता बशर्ते कोई चमत्कार ना हो जाये। भारत को यह अच्छी तरही मालूम है कि बांग्लादेश की कृषि नदी आधारित है और तीस्ता जल संझुता भी नहीं होनेवाला। ऐसे में बी एन पी इसे असफल यात्रा कह कर प्रचारित करेगी। उसे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि भारत एक फ़ेडरल लोकतंत्र है और ऐसे में केंद्र राज्यों को नजर अंदाज कर के नहीं चल सकता। समस्त संबंध केवल एक मसले पर नहीं तौले जा सकते हैं। जिस समझौते से बी एन पी को पीड़ा हो रही है वह है द्वी पक्षीय सुरक्षा समझौता। बी एन पी के महा सचिव रहल कबीर रिजवी ने तो यहां तक कह दिया कि ' सुरक्षा समझौता बांग्लादेश की जनता से गद्दारी है और इसासे बांग्ला देश की संप्रभुता को खतरा है, जनता को यह समझौता नहीं होने देना चाहिए। "  दर है कि बी एन पी इस मसले को लेकर सड़कों पर ना उतर  आये। अब रिजवी से कोई पूछे कि किसने उसे अंतरराष्ट्रीय संबंधों की शिक्षा दी है। 2002 में रिजवी की ही पार्टी की प्रधान मंत्री बेगम खालिदा जिया ने चीन से रक्षा समझौता किया था तब कहां था उनका विरोध?  आज बंगला देश के पास  चीनी हथियार और साजो सामान है। क्या चीन ने बांग्लादेश की संप्रभहुता को कम किया जो भारत ऐसे समझौते के बाद काम कर देगा? रिजवी साहब को याद करना चाहिए कि 1971 में भारतीय सेना ने बांग्लादेश की कितनी मदद की थी।उस समय भारत पर अमरीका परमाणु हमले की तैयारी में था तब भी भारत ने जोखिम लिया और काम खत्म होने के बाद भारत की फौज वहां एक दिन भी नहीं रुकी।यहां यह बता देना ज़रूरी है कि प्रस्तावित सुरक्षा समझौता बाध्यतामूलक नहीं है और ना ही कोई गठबंधन है। इसमें दोनों पक्षों की संप्रभुता बनी रहेगी।  शेख साहिबा की इस यात्रा को लेकर बी एन पी  चुप चुप ही है पर इसका अर्थ नहीं समाझना  चाहिए कि  वह चुप बैठा है। वह अवसर की प्रतीक्षा में है।उसकी ताकत इस्लामी छात्र शिबिर और अन्य आतंकी गिरोह हैं। बांग्लादेश में चुनाव होने वाले हैं और जमाते इस्लामी  बी एन पी की शक्ति का केंद्र है। भारत उसका प्रथम शत्रु है। जमात ने इतिहास को विकृत कर दिया है, खास कर वहां के मुक्ति युद्ध में भारत की भूमिका वाले भाग को। बी एन पी और जमात ने मिल कर बंगला देश में हिन्दू विरोधी वतावरण तैयार कर दिया है। उन्होंने शेख साहिबा की हत्या के कई प्रयास किये। बंगला देश में अगले दो वर्ष भारी उथल पुथल कर होंगे। भारत की मज़बूरी है कि चाहे जो सरकार आये इसे उसके साथ काम करना होगा।  इसलिए इसे गंभीर कूटनीतिक तैयारी करनी होगी। शेख साहिबा की यात्रा इस तैयारी को बल दे सकती है।

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