क्या हम अपने बच्चों को यही भारत देंगे
इधर चंद महीनों से भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच बढ़ती असहिष्णुता को लेकर अनेक बातें की जा रहीं हैं।ऐसे वाकये बयान किये जा रहे हैकि लगता दोनों संप्रडाय एक दूसरे के खून के प्यासे हैं, खासकर हिंदुओं को कुछ ऐसा चित्रित किया जा रहा कि वे देश की पूरी मुस्लिम आबादी को खत्म कर देने के लिए आमादा हैं। कुछ ऐसा ही भयावह वहम टैब पैदा किया गया था जब भारत बंटवारा हुआ।ठीक वैसे ही आज भारत में सदियों से राह रहे दोनों संप्रदायों के रिश्तों के बयान कुछ ऐसी भाषा , कुछ ऐसे जुमले या मुहावरे प्रयोग किये जा रहे हैं मानों खून की नदी बहने वाली है। आबादी के मानस पर शोध करने वालीसंस्था पिऊ रिसर्च सेंटर ने आंकड़े पेश किए हैं कि भारत 198 देशों की सूची में सबसे नीचे के उन चार देशों में शुमार है जहां सबसे ज्यादा धार्मिक असहिष्णुता है। शोध में बताया गया है कि 130 करोड़ की आबादी वाले इस देश में सीरिया, नाइजीरिया और इराक़ की मानिंद हैं। पिऊ ने देश सामूहिक संघर्षों , साम्प्रदायिक हिंसा, धर्म संबंधी आतंक , धार्मिक रस्म अदायगी को बलात रोकने की कोशिशें धर्मानुकूल वस्त्र नहीं पहनने वाली महिलाओं से बदसलूकी इत्यादि की घटनाओं का विश्लेषण किया है। गो रक्षकों द्वारा गो भक्षकों से मारपीट का उस विश्लेषण में खास ज़िक्र है।इसमें दलितों से होने वाले आचरण का भी उल्लेख है।
भारत में संविधान के अनुसार धार्मिक आज़ादी है पर, पिऊ का विश्लेषण है कि , व्यावहारिक तौर पर सरकार भेदभाव करती है।" भा ज पा के पदाधिकारी इसे हिन्दू राष्ट्र कहते हैं।" पिऊ का विश्लेषण की आंकड़ों पर आधारित है यह नही बताया गया है।
इतने बड़े देश में पारस्परिक वैमनस्य की घटनाओं या किसी खास उत्तेजना पूर्ण क्षण को रेखांकित कर दुनिया भर में प्रचारित करने की इस क्रिया से गलत इरादों से की जाने वाली तीखी साज़िश की बू आती है। ऐसी ही साज़िशों को भावुक खबरों में ढाल कर भारत का बंटवारा करवा दिया गया। इसमें कुछ दोष तो हमारा भी है। हैम क्यों भरोसा करते हैं इन खबरों पर? चाणक्य का कहना था कि " जिन लोगों पर हम ज्यादा भरोसा करते हैं उनकी गलत बातों पर भी हैम भरोसा कर लेते हैं और जिन पर अविश्वास करते हैं उनकी सच बात पर भी यकीन नही करते।" अरस्तू के मुताबिक " भरोसे के लोगों द्वारा द्धति गई गलत सूचनाओं के आधार पर हैम विचार बनाते हैं और फिर उन्ही विचारों की कसौटी पर हर सूचना को परखते हैं।" पिऊ जैसे संस्थान ऐसे ही भरोसे और आंकड़ों की आड़ में नफरत बढ़ाने और खतरनाक विश्लेषणों को विश्वसनीय बना कर समाज में डाल देते है और फिर मीडिया उसे प्रचारित कर चाक्षुष बना देती है। , उसे रूपाकार कर देती है। जैसे जैसे गौरक्षकों द्वारा एक आदमी की पिटाई और फिर उसकी मौत, वहां गौ माता की रक्षा के नारे लगाती भीड़ एक ऐसा रूपाकार क्रिएट करती जो विरोध काने वालों की बोलती बंद कर दे। बाद में पता चलता है कि वह कथित गौ हत्यारा मृत गाय के चमड़े निकालने का अपना पुश्तैनी काम कर रहा था। भारत हिन्दू बहुल राष्ट्र है लेकि लगभग 18 करोड़ मुसलमान भी हैं , कुछ करोड़ ईसाई भी रहते हैं , सिख और यहां तक कि कुछ सौ यहूदी भी रहते हैं। नीतियों कुछ खामियां हो सक्ट्री हैं , सामईन उत्तेजना भी फैल सकती है पर देश के आम नागरिक इसासे जुड़ते नहीं हैं।पूरा देश धर्मस्थलों और प्रार्थना स्थलों से भरा है पर कोई ध्यान नही देता। यही सच है तथा जब इस सच की गलत व्याख्या होती है तो हालात बिगड़ने लगते हैं। रुडयार्ड किपलिंग ने लिखा था ,
सभी अच्छे लोग मानते हैं
सभी अच्छे लोग कहते हैं
सभी अच्छे लोग पसंद करते हैं
ये सब हम हैं
और बाकी सब वे हैं
हमारे समाज का आधार गढ़ने वाले यही अच्छे लोग हैं। हमेशा ध्यान रखने की चीज है कि हमारे बच्चे अन्न खाते हैं पत्थर नहीं , हम उनके लिए पत्थर ना इकठ्ठे करें।
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