हिंदुत्व का आदर्श
इन दिनों मानव विकास के प्रति दृष्टिकोण और विकास के हिंदुत्व प्रारूप के बारे तीखी बहस चल रही है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्य नाथ की सरकार इन आरंभिक दिनों में दो तरह के कानून दो तरह की निर्णायक प्रक्रिया में कारक बन रहे हैं।ये किसी प्रगतिशील कानून की भांति विवेचनात्मक नहीं हैं लेकिन इनके अध्ययन से नई शासन व्यवस्था की चिंताएं धारा की रूप रेखा पता चलती है। पहला फैसला स्वभाव और संस्कृति की सीमा से परे है और वह गो हत्या से जुड़ी है। दूसरा " एंटी रोमियो " दस्तों की तैनाती से। ये दोनों जातीय और लैंगिक मसाएल की हदों से पर होते हैं। ये दोनों काम यह सवाल उठाते हैं कि क्या कानून और शासन देश में न्याय की ओर जाने वाली प्रगतिशील गतिविधि है या केवल ऐसे कथन जिससे मैन में कायम डर का पता चलता और उसे खत्म करना जरूरी है ताकि राष्ट्र और समाज विखंडित- विश्रृंखलित होने से बच जाए। जहां तक रोमियो का प्रश्न है तो जिन्होंने रोमियो को पढ़ा है वे बखूबी जानते हैं कि यह गलतफहमी से जुड़ी एक दुखद और मर्मस्डपरषि गाथा है। हमारा जो लोकल रोमियो है वह चार्ल्स लैम्ब के कथानक का सड़क छाप आवारा है। जैसा कि लैम्ब ने लिखा है कि वह कानून द्वारा निर्मित आवारों की स्मृति है। दर असल अंग्रेजों ने हमारे देश में कानून तोड़ने वालों के दो वर्ग बनाये जो वर्णपट को दो किनारों पर हैं। इसके सबसे ऊपरी सतह पर ठग और पिंडारी हैं जो लार्ड विलियम बेंटिक के निशाने पर थे और सबसे निचले छोर पर वे गुंडे हैं जो साथ के दशक के बम्बइया फिल्मों में गले में रूमाल बांधे सड़कों पर लड़कियों को छेड़ते दिखते हैं। आदित्य नाथ के रोमियो यही सड़क छाप गुंडे हैं जो लड़कियों को देख कर सिटी बजाते हैं। इसे साहित्य और रोमांस से कुछ लेना देना नही है। वस्तुतः एंटी रोमियो कार्रवाई यह बताती है कि कानून चयनात्मक है और दूसरे की यह आदित्यनाथ के डर को ज्यादा व्यक्त करता है और शहर की लड़कियों के भय को कम।
इसवकेव अलावा यह जो एन्टी रोमियो परियोजना है वह एक व्यापक कार्यक्रम का हिस्सा है। इसे घर वापसी और लव जिहाद के प्रिज्म से देखना होगा । एन्टी रोमियो कार्रवाई योगी जी के अभियान का हिस्सा है। ऊपर जो दो बातें कहीं गईं- घर वापसी और लव जिहाद- उनमें मुस्लिम विरोधी दुराग्रह दिखता है।लेकिन यह जो तीसरा है न " एन्टी रोमियो कार्रवाई " उसपर सेकुलरीटी का खोल चढ़ा है लेकिन इसमें एक वर्जना भी है कि हिन्दू और मुसलमान मुक्त रूप से नही मिल सकते। यह कानून और व्यवस्था का मसला नहीं बन सकता है और इसी की आड़ में राष्ट्रीय सवम सेवक संघ अपनी सियासी खुंदक निकाल रहा है। इसके औचित्य की दलील देते हुए स्थानीय नेता कहते हैं प्रेम प्यार घर के भीतर की बात है सड़कों पर नुमाइश की नहीं। इसके दो मायने निकलते हैं पहला कि रोमांस को मां - बाप की स्वीकृति चाहिए और दूसरा कि यह अपनी ही बिरादरी में हो। यही कारण है कि जब प्रशांत भोशन ने यह कहा कि कृष्ण खुश किस्मत तहे की उनके काल में योगी जी नही हुए थे। यह लतिफाई जुमला है और इसी पर बजरंग दल और अन्य हिंदुत्व दलों ने हंगामा खड़ा कर दिया। यह चकित कर देने वाला तथ्य है कि इस मसले के संदर्भ में बजरंग दल को कोई कानून और व्यवस्था की समस्या नही बता रहा है। यह रोजमर्रा की जिंदगी में बढ़ते संविभ्रम का द्योतक है। जिस तरह सुरक्षा एक ऐसा शब्द है जिसका आदर्श जिसका अर्थ देश की सीमा सेव् लेकर लोगों की जिंदगी की हदों तक कि हिफाजत है। यहां बजरंग दल , संघ और शिव सेना जो सुरक्षा लागू कर रही है उसके मायने बदल रहे हैं। यह नफरत, संदेह और संविभ्रम पर आधारित है और इसका एक ही अर्थ बताया जाता है। यह सब जानते हैं कि रामायण की हर चौपाई के कई कई अर्थ होते हैं और योगी जी को इन अर्थों पर पाबंदी लगानी चाहिए। यह जो उत्तर प्रदेश में हो रहा है वह वहां के उन आवारों और मनचलों को सुधारने के लिए नहीं है जिन्हें वहां का शहरी मध्य वर्ग कानून और व्यवस्था की समस्या मानता है उल्टे कानून के नाम पर खुद कानून को ही गुंडई में ढाला जा रहा है। पहले लड़के - लड़कियों के संबंधों को "निगरानी समूहों" द्वारा रोका जाता था। अब इन समूहों को शासन का जामा पहना दिया गया है। सच तो यह है कि कट्टरवाद को कानून की कार्रवाई का नाम दिया जा रहा है। आज वहां जो हो रहा है वह एन्टी रोमियो नहीं है बल्कि मानवाधिकार विरोधी कार्रवाई है। वही बात गो हत्या विरोध के साथ भी लागू होती है। यह शाकाहार की ओर उठाया गया पहला कदम है। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने परोक्ष रूप से विधान सभा में यह बात कह भी दी है। रूपानी ने तो यह भी कह दिया कि ब्वे गुजरात को शाकाहारी राज्य बनाना चाहते हैं, वे शाकाहार का अर्थ सच्चाई और नैतिकता बताते हैं। उनका सपना राज्य में मांस की सभी दुकानों को बंद करने की मांग को हवा देना है। समाज वैज्ञानिक तौर पर भोजन के मामले में कट्टरता के घटक परिणाम होते हैं। यह विविधता का प्रश्न हैं , संस्कृति के बहुलता वाद का भी सवाल है। वही हाल गो हत्या के विरोध का भी है। भा ज पा शासित राज्यों में गाय प्रकृति की अनुपम रचना ना हो कर धर्म का बिम्ब बन गयी है। गाय बहुत गंभीर विषय है और इसकी हत्या से कई सवाल जुड़े हैं उसपर रोक लगाने के पहले उन विषयों पर योगी जी ने कुछ नहीं कहा। यह स्वभाव और संस्कृति के बीच एक विरोध पैदा हो रहा है।यहां मुस्लिमों को कसाई और हिंदुओं को गौ रक्षक बताने अमूर्त प्रयास चल रहा है। यह एक खतरनाक प्रयास है और इससे देश की विविधता को खतरा पैदा हो रहा है।
Sunday, April 9, 2017
हिंदुत्व का आदर्श
Posted by pandeyhariram at 6:37 PM
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