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Friday, April 7, 2017

इतनी नाउम्मीदी क्यों

इतनी नाउम्मीदी क्यों ?
महज  पांच दिन पहले मुम्बई के एक पांच सितारा होटल 19 वीं मंजिल से कूद कर मैनेजमेंट के एक छात्र ने जान दे दी। वह परीक्षाओं में अपनी असफलता सड़े निराश था और खबरों के मुताबिक वशाल मीडिया पर जान देने के तरीकों के बारे में बातें किया करता था। वह छात्र अकेला या अपवाद नहीं था। राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो ( एन सी आर बी) के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर घंटे एक छात्र आत्म हत्या करता है। 2015 ( अद्यतन उपलब्ध) के आंकड़े बताते हैं  कि उस वर्ष 8934 छात्रों ने आत्महत्या की। 2011 से 2015 के बीच पाँच वर्षों में 39775 छात्रों ने जान दे दी। आत्म हत्या की कोशिशों के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं , हो सकता है यह और ज्यादा हो। लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 15 से 29 वर्ष के छात्रों की आत्महत्या की संख्या दुनिया में  सबसे ज़्यादा है और इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप की ज़रूरत है । 2015 में महराष्ट्र में सबसे ज्यादा छात्रों ने खुदकुशी की , इनकी संख्या 1230 थी जो कुल संख्या के 14 प्रतिशत  है। इसके बाद आता है तमिल नाडु यहां 955 छात्रों आत्महत्या की और इसके बाद छत्तीसगढ़ जहां 730 बच्चों ने यह राह चुनी इसके बाद आता है पश्चिम बंगाल जहां 676 बच्चों ने ऐसा किया।महाराष्ट्र और तमिलनाडु देश के सबसे विकसित राज्य है और ये आंकड़े बताते हैं कि आर्थिक विकास के दबाव का परिणाम क्या है, किस कीमत पर मिला है यह भड़कीला आकार। सबसे ज्यादा किशोर और नौजवान बेरोजगारी से ऊब कर आत्महत्या कर लेते हैं। परीक्षाओं में  नाकामयाबी या बेरोजगारी से जन्मी निराशा में ढाढस और  हौसला बढ़ाने की कोई व्यवस्था हमारे समाज में नही है और है भी तो बहुत कम है। कोई उन्हें यह बताने ब्3आला नहीं है कि 
असफलता एक चुनौती है उसे स्वीकार करो
क्या कमी रह गयी देखो और सुधार करो
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जयकर नही होती 

2016 की एक रपट के मुताबिक भारत मानसिक स्वास्थ्य कर्मियों का सबसे ज्यादा अभाव है, इसकी कमी 87 प्रतिशत है। पारिवारिक पृष्ठभूमि इसमें ज्यादा मायने रखती है। 
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास साहस रागों में भरता है
चढ़ कर गिरना गिरकर चढ़ना ना अखरता है
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती

सम्पन्न परिवार के बच्चों में ऐसी निराशा काम होती है, क्योंकि इसके मूल में निराशा और असहायता सबसे बड़ा कारण है। भारत में उम्मीदें और सपने बेच कर शिक्षा की दूकान चलाने वाले शहर कोटा में छात्र आत्म हत्या की संख्या सबसे ज्यादा है। हफिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के  मुताबिक अवास्तविक सपने देखने के बाद मिली नाकामयाबी और परिवार की बेइज़्ज़ती के भय से वे खुदकुशी कर लेते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि मां बाप बच्चों से बहुत ज्यादा उम्मीद लगा लेते हैं और उसकी पूर्ति ना होने पर बच्चों से विमुख होने लगते हैं। परिवार की आर्थिक अवस्था भी इसका एक कारण है। बहुत मामूली ही सही पर इसका एक कारण नशाखोरी भी है।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। डब्लू एच ओ की एक रपट के मुताबिक भारत सरकार स्वास्थ्य के कुल बजट का महज 0.06 प्रतिशत मानसिक सवास्थ्य पर व्यय करती है। 27 मार्च 2017 को प्रसाधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने " मन की बात " कार्यक्रम में वे अपने अवसाद के बारे में लोगों को बताएं और उनकी मदद लें। " दिशा" से जुड़ीं मनोवैज्ञानिक प्रियंवदा पाण्डेय के मुताबिक "  स्कूलों और कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता पैदा करनी चाहिए। इसे पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि बच्चे विकास की अपनी उम्र में मानसिक स्वास्थ्य को समझ सकें।" 
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर खाली हाथ लौट कर आता है 
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में 
मुठ्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वाले कि कभी हार नहीं होती

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा लोक सभा में दिए गए जवाब के अनुसार देश में महज 3800 मनोचिकित्सक, 898 मनोशास्त्री , 850 मनोचिकित्सा सामाजिक कार्यकर्ता, और मानो चिकित्सा नर्सेज है। इसका मतलब है कि देश में प्रति 10 लाख पर 3 मनोचिकित्सक है जबकि डब्लू एच ओ के अनुसार राष्ट्र मंडलीय देशों यह औसत प्रति 1लाख आबादी पर 5.6 मनोचिकित्सक का होना ज़रूरी है। इस भयानक कमी के कारण नौजवान दबाओं को झेलने का हुनर सीख नहीं  पाते और निराशा के गहरे क्षणों में अपना जीवन खत्म कर लेते हैं। उन किशोरों कोई यह सिखाने वाला नहीं है कि ,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती

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