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Monday, April 3, 2017

नीतियों को लागू करना जरूरी

नीतियों को लागू करना ज़रूरी  
हाल में खत्म हुए विधान सभा चुनावों में लगभग उन सभी राज्यों में भा ज पा को सफलताएं मिलीं जिसमे उसने चुनाव लड़े । ये कामयाबियां के सवाल भी उठाती हैं। पहला कि क्या ये 2019 की बानगी तो नहीं है? दूसरा की देश के विकास के लिए मोदी सरकार ने क्या कुछ किया? पिछला साल यानी 2016 सुधार का साल था लेकिन साथ ही वह उन सुधारों के दावों को चुनौती देने का भी साल था। अक्सर यह पूछा जाता था कि क्या यह कोई  वास्तविक सुधार था या प्राधान्य मंत्री की केवल बातें ही थीं? यह भी देखा गया कि मोदी जी के समर्थक कहते फिरते थे कि बस सुधार होने ही वाले हैं जबकि विरोधी इसे इनकार कर रहे थे। 2017 के बजट और आर्थिक सर्वेक्षण में देश के जी डी पी में आगामी वित्त वर्ष में  6.75- 7.5 प्रतिशत विकास की बात कही गई है। यह आंकड़ा या कहें कि विकास दर कुछ ज्यादा है। लेकिन बात है कि और भी कई विकास मापदंडों में भारत पीछे दिखता है। कई ऐसे क्षेत्र हैं जिसमें गत वर्ष देश ने विकास किया है पर कई ऐसे भी हैं संसाधनों का ज्यादा आवंटन ज़रूरी है । हम दूर क्यों जाएं भ्रष्टाचार, मानव विकास और समावेशन के माप डंडों में कहां हैं। जहां तक भ्रष्टाचार का सवाल है प्रधान मंत्री जी ने उसकी जड़ों में मठ्ठा डालने की घोषणा की। कई क्षेत्रों से मिली खबरों में यह माना भी गया है कि भ्रष्टाचार से कड़ाई से निपटा जा रहा है जबकि कई क्षेत्न से निराश जनक खबरें भी आ रहीं हैं। हलानिक भ्रष्टाचार के बारे में लोगों की सोच है कि उससे कड़ाई से निपटा जा रहा है। ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल की एक रपट के अनुसार भ्रष्टाचार के मामले में भारत का 176 देशों की सूची 79 वां स्थान है। इस उप महाद्वीप में हैम सिर उठा कर चल सकते हैं , क्योंकि इससूची में लंका 95 वें  स्थान पर, पाकिस्तान 116वें स्थान पर, नेपाल 131 वें स्थान पर , म्यांमार 136 वें स्थान पर और बांग्लादेश 145वें स्थान पर है। चीन हमारे बराबर 79 वें स्थान पर है जबकि भूटान हमसे बहुत ऊपर 27वें स्थान पर है। अगर अपने आस पास देखें तो भारत भूटान को छोड़ कर सबसे कम भ्रष्ट देश है। 2012-13 में भारत का स्थान 94 वां था और दो वर्षों तक  स्थिति यथावत रही। 2014 में भारत 85वें स्थान पर आ गया और फिर 2015 में यह 76 वें स्थान पर आया। 2016 में इस सूची में 8 और देशों को शामिल कर लिया गया इसलिए भारत थोड़ा नीचे चला गया। रैंकिंग में यह परसेप्शन बेशक थोड़ा नीचे है पर हकीकी तौर पर सुधार हुआ है। यह सुधार लोगों की बातों से झलकता है। नोटबंदी खुद मानें इसकी कथा है। लेकिन यह यथेष्ट नही है।वैश्विक तौर पर हमारा स्थान 79 वां है लेकिन संतोष की बात है कि 2012 से अबतक हैम 20 अंक ऊपर गए हैं। यह पर्याप्त है अथवा नही यह तो अनुमान की बात है पर भ्रष्ट देशों को इंगित करने वाले नक्शे में भारत अति भ्रष्ट देशों की तरह आंखों में चुभता है।
इसके बाद आती है मानव विकास की बात।नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा है कि " मानव विकास में निवेश के बगैर आर्थिक विकास ज्यादा टिकता नहीं है और ना नैतिक होता है।" संयुक्त राष्ट्र की मानव विकास की रपट मानव विकास का की सूची मानी जाती है, यह मानव विकास सूचकांक पर आधारित होता है। इस सूचकांक में शिक्षा , स्वास्थ्य , व्यक्तिगत आय इत्यादि को शामिल किया जाता है। भारत 188 देशों की इससूची में 130 वें स्थान पर है। जबकि भूटान और  बांग्ला देश क्रमशः 132 वें और 142 वें स्थान पर हैं। जबकि श्री लंकाऔर चीन क्रमशः 73 वें और 90 वें स्थान पर हैं। नमेपल (145) और पाकिस्तान (147) की हालत तो बहुत ही खराब है। भारत में कई दुखद सूचक आंकड़े भी हैं जैसे जी डी पी के अनुपात में बढ़ता हुआ कर्ज का बोझ, स्कूलों में बच्चों के नाम लिखाने की बदर में कमी, जिससे कुशल कारीगरों की कमी इत्यादि। इसे दूर करने के लिए नीतियों का सही तौर पर लागू किया जाना जरूरी है।सरकार को इसे प्रमुखता देनी होगी और तभी 2019 का पथ प्रशस्त होगा।

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