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Thursday, April 6, 2017

किसानों की कर्ज माफी से लाभ क्या होगा

किसानों को कर्ज माफी से लाभ क्या होगा 
उत्तर प्रदेश की सत्ता संभालने के बाद योगी आदित्य नाथ ने अपने मंत्रिमंडल की पहली बैठक में राज्य उन किसानों के कर्ज माफ कर दिए जिन्होंने 31 मार्च 2016 तक 1 लाख रुपया लिया था। इसी के साथ राज्य मंत्रिमंडल ने उन छोटे किसानों के कर्ज भी माफ कर दिए जो अरसे से उन कर्जों को चुका नही पा रहे थे। इन दोनों को मिला कर लगभग 36 हज़ार करोड़ रुपये का राज्य पर दबाव पड़ेगा। योगी जी इस कर्ज माफी को चुनाव के दौरान भा ज पा के वायदों को पूरा किया जाना कहा है। लेकिन इसके साथ कोई ऐसी योजना नहीं घोषित की गई जिससे पता चले कि कृषि क्षेत्र में सरकार कोई बहुत बड़ा सुधार करने वाली है जिससे भविष्य में किसानों की हालत सुधर जाएगी और " किसी होरी को किसी महाजन के कर्जे के लिए फिर पोपोस की रात काली नही करनी पड़ेगी।" उत्तर प्रदेश में कृषि क्षेत्र में कुल व्यय का महज 2.3% का निवेश किया जाता है। यह निवेश देश के सभी बड़े राज्यों में किये जाने वाले निवेश से कम है। अबसे कुछ साल पहले मद्रास हाई कोर्ट ने तमिल नाडु सरकार को कुछ ऐसा ही आदेश दिया  था जिसमें कहा गया था कि सभी छोटे और हाशिये अवस्थित किसानों से कर्ज वसूले ना जाएं। इसासे सरकार को 5,780 करोड़ रुपयों का घाटा लगा था और ऊपर से अदालत के आदेश को लागू करने में 2 हजार करोड़ रुपये और लग गए थे। एक ऐसे देश में जहां प्रधानमंत्री 2022 तक कृषि आय को दोगुना करने की बात करते हैं वहां राज्य सरकारें किसानों के कर्ज माफ कर रहीं हैं। यह एक चिंताजनक प्रक्रिया है। इसासे इसासे देश भर में कर्ज माफी के एक नए चलन की शुरुआत होगी और भविष्य में राज्यों में चुनाव के दौरान इसी तरह वादे किए जाने लगेंगे। यह दहला पर बनी फिसलन की तरह है जिसका परिणाम भविष्य में दिखेगा। यही नही मद्रास हाई कोर्ट ने जो आदेश दिया वह एक तरह सेर कार्यपालिका में न्यायपालिका की दखलंदाजी कही जा सकती है और इसका सबसे बड़ा खतरा भविष्य में अन्य अदालतों द्वारा अनुकरण किया जाना हो सकता है। वैसे इस वर्ष फसल अच्छी होने की उम्मीद भी है और असर में कर्ज माफी के लिए उचित समय नही कहा जा सकता है। वैसे कर्ज माफी एक राजनीतिक औजार है जो सरकार की नाक़ाबलियात पर कलई करता है। इस तरह के कदम से जाहिर होता है कि सरकार के पास कृषि विकास और उत्पाद विपणन की कोई शक्तिशाली और अचूक याजना नही है। सार्वजनिक कर्जमाफी उन लोगों के लिए एक नैतिक दिक्कत पैदा करती है जो कर्ज लेने के पक्ष में नही रहते या अपना कर्ज चुका देते हैं। इसासे बैंकों पर भी प्रभाव पड़ेगा और वे ग्रामीण क्षेत्रों में निवेश से हिचकने लगेंगे। इसके चलते किसानों को बैंकों से कर्ज मिलना कठिन हो सकता है और ऐसी स्थिति में गंवई सूदखोरों की बन आएगी। इस कार्य से 2008 में यू पी ए सरकार द्वारा ऐसी ही कर्ज माफी की याद आती है। हालांकि केंद्र में भा ज पा सरकार इस तरह के गैरजिम्मेदाराना आर्थिक कार्यों से अभीतक दूर है। यू पी ए द्वारा कर्ज माफी से कर दाताओं पर 72000 करोड़  रुपयों का बोझ आया था। नई माफी इसके एक तिहाई के बराबर है। उस कर्ज माफी से सबक लेने की जरूरत है क्योंकि जोगी जी की माफी का चरित्र भी कुछ वैसा ही है। 2008 की कर्ज माफी के बाद जेवियर जिनी और मार्टिन कैंज़ के एक शोध में प्रमाणित किया गया है कि सरकार के इस कदम का अर्थ व्यवस्था और उस कदम से लाभ पाने वालों के आचरण पर गंभीर असर पड़ा है। शोध में यह बताया गया है कि " कर्ज़ माफी से उत्पादकता मैं कोई लाभ नही हुआ उल्टे कर्ज़ चुकाने वालों का मज़ाक बन गया, उनके सामने नैतिकता का संकट आ गया। वे 'बुड़बक ' समझे जाने लगे।"  नोटबंदी को बेईमानो पर एक बार करारोपण माना गया और यह कर्ज माफी तो ईमानदारों पर बेवजह कर्ज है। ऐसे कदम के बाद समाज में कर्ज नहीं चुकाने की प्रवृति का विस्तार- विकास होगा अन्य किसान भी कर्ज नहीं चुकाना शुरू करेंगे। क्योंकि हमेशा यह उम्मीद बानी रहेगी कि सरकार कृषकों के कर्ज माफ कर देगी। इसासे साफ पता चलता है कि कृषि ऋण माफी से अर्थव्यवस्था को आघात लगता है और गलत आचरण को बढ़ावा मिलता है। 2008 की कर्जमाफी से यह भी पता चला कि लाभ पाने वाले किसानों ने अपनी आय का कोई स्थाई स्रोत नही तैयार किया यानी कर्ज का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला। सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारत में 67 प्रतिशत खेत एक हेक्टेयर से छोटे हैं , यह रकबा उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत ज्यादा निवेश के लिए उचित नहीं है अतएव इसमें लगातार सहायता बहुत कारगर नहीं होगी। इसके लिए राजनीतिक दलों , अर्थ शास्त्रियों और कृषि विशेषज्ञों को बैठ कर याजना बनाने की ज़रूरत है ना कि इस तरह के दान देने की।

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