फौज की भी आलोचना हो
कश्मीर में इन दिनों एक वीडियो वायरल है कि एक नौजवान को फौजी जीप के बोनट पर बांध कर सेना सड़कों पर गश्त लगा रही है और वह नौजवान फरियाद कर रहा है। आज़ादी के बाद यह पहला ऐसा दृश्य देखने या सुनने को मिला। पहले भी सेना पर ज्यादतियों के आरोप लगे थे पर उन्हें खारिज कर दिया गया या उनके सबूत नहीं मिले । हालांकि किन हालातों में फौज ने ऐसा किया वह अभी ज़ाहिर नही हो सका है। सेना की तरफ से भी कोई सरकारी बयान नहीं आया है। जैसा कि वीडियो में दिख रहा उससे पता चलता है कि वह जीप 53 राष्ट्रीय राइफल्स की है और नौजवान को बांध कर गश्त के दौरान पाठ्ठारबाजो को चेताया जा रहा है कि अगर वे पथ्थर मारने से बाज नहीं आएंगे तो उनसे भी ऐसा ही सलूक किया जाएगा। संदेश साफ है पर हालात नहीं। एहमाँ कर चलें कि आने वाले दिनों में और ऐसे वीडियो दिखेंगे। सेना के एक अधिकारी का कहना है कि नौजवान को इसलिए बांधा गया था कि उस जीप पर कोई पथराव ना करे। यह घटना 9 अप्रैल की है और जब घटना हुई तो वहां मौजूद सबसे बड़े अफसर का यह फ़र्ज़ बनता था कि वह इसकी रिपोर्ट अपने आला अधिकारियों को दे। लेकिन ऐसा नही किया गया और जब वीडियो सार्वजनिक हो गए तो बयान भी आने लगे।सेना को यह सख्त आदेश है कि इस तरह के कोई काम नहीं होने चाहिए और किसी भी हालत में मानवाधिकार का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। सेना अधिनियम की धारा 69 के तहत यह अपराध है।
कश्मीर में जो कुछ हो रहा और उसे दबाने में सेना का जो उपयोग हो रहा है उससे बेशक हम फौजी जंग जीत जाएंगे पर यकीनन राजनीतिक युद्ध में पराजित हो जाएंगे।कश्मीर की जो सबसे बड़ी मुश्किल है कि वहां आम आदमी और आतंकी के बीच की विभाजक रेखा धुंधली हो चुकी है। जबसे वहां पाठ्ठारबाजी की घटनाएं शुरू हुईं तबसे देश के लोग यह समझने लगे हैं कि वहां सब आतंकी ही हैं। सेना अभी तक विद्रोह विरोधी कार्यक्रम में पराजित नही हुई है क्योंकि सब कानून के मुताबिक हो रहा है। एरकार और आतांकि दोनों के निशाने पर वहां जनता ही है। दोनों चाहते हैं कि जनता उनका साथ दे क्योंकि जनता स्थिरता चाहती है। लेकिन पिछले कुछ सालों से देखा जा रहा है कि आतांकि वहां सियासी जंग जीत रहे हैं और फौजी लड़ाई में हार रहे हैं।जनता आतंकियों के साथ हो रही है और सरकार सेना की लड़ाई जीत रही है और राजनीतिक युद्ध हार रही है। उधर इस स्थिति को मीडिया पूरी तरह प्रचारित कर रही है। बेशक घाटी में इसासे भी बुरे दिन आये हैं पर उन पर काबू करने में कामयाबी मिली है। 1989-91 के बीच वहां इसी तरह कुछ हुआ था और फौज का रास्ता रोकने के लिए औरतें तथा बच्चे सड़कों पर लेट जाते थे। उस स्थिति को भी सुलझाने में सफलता मिली। अभी भी ऐसा नही है कि उसे काबू ना किया जा सके। अभी राजनीतिक युद्ध की ज़रूरत है। एक ऐसा वातावरण निर्मित करना ज़रूरी है जो औपचारिक वार्ता के लिए मुफीद हो। वैसे जो खबर है उसके मुताबिक घाटी पाकिस्तानी आतंकियों की संख्या पहली बार घटी है। 2003 की घटना सबको याद होगी जब घाटी में एक वर्ष में घाटी में लगभग 2000 आतांकि मारे गए थे और 400-500 फौजी भी काम आ गए थे। इसके बाद युद्ध विराम हुआ और आतंकियों के मरने की तादाद 2000 से 30 हो गई। आज भी अगर ठोस राजनीतिक कदम उठाए जाएं तो सुधार की उम्मीद की जा सकती है।
इन दिनों उग्र राष्ट्रवाद को लेकर सोशल मीडिया पर काफी बातें हो रहीं हैं। ऐसा आश्चर्यजनक नहीं है। विगत दो तीन वर्षों से उग्र राष्ट्रवाद का रिवाज चल पड़ा है और फौज को कुछ ऐसा बताया जा रहा है कि वह गलत कर ही नहीं सकती। फौज के किसी काम की आलोचना करने वाले को भद्दी गालियां सुननी पड़ती हैं। इससे फौज में सुधार नहीं हो सकता जबकि बदलते समय के साथ हर संगठन में सुधार की ज़रूरत होती है। अति राष्ट्रवाद या कट्टर राष्ट्रवाद भाषणबाज़ी का हुनर है पर जब यह सामान्य जीवन का हिस्सा बन जाता तो वही होता है जो हो रहा है। जब विरोधी विचारवालों को सोशल मीडिया पर राष्ट्रविरोधी कह कर लानतें भेजी जाती हैं तो ऐसे ही होगा। कोई संवेदनशील सरकार किसी शिक्षक या आम आदमी को जेलों में नहीं ठूंस सकती। सरकार कठोर भले हो जाय पर वह असंवेदनशील नही होनी चाहिए। कानून के दायरे में ताकत का प्रयोग महत्वपूर्ण है पर राजनीतिक सदिच्छा का संबल प्राप्त होना चाहिए। इसमें सरकार को दोष देना उचित नही है जो कुछ हुआ है वह सार्वजनिक कीर्तन का परिणाम है। फिर उसी बात पर आते हैं जिसपर शुरू में चर्चा हुई थी। सेना और कश्मीर दोनों इस देश के लिए ज़रूरी है।सेना की इस करतूत का यदि समर्थन होता है तो आगे इसासे भी कुछ भयानक हो सकता है।
Friday, April 21, 2017
फौज की भी आलोचना हो
Posted by pandeyhariram at 8:40 PM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment