जाधव मामला: बहुत कम विकल्प बचे हैं भारत के हाथ में
इसमें कोई हैरत नहीं है कि पाकिस्तान सैनिक अदालत ने कराची और बलोचिस्तान में आतंकवाद को उकसाने और पाकिस्तान के खिलाफ जंग को हवा देने तथा अस्थिरता पैदा करने जैसे आरोपों के आधार पर कुलभूषण जाधव को फांसी की सजा सुनाई है। विगत 3 मार्च को पाकिस्तान की आई एस आई ने ईरान के चाबहार इलाके से कुलभूषण को गिरफ्तार किया। इसके बाद उसे बड़े पोशीदा ढंग से सेना की अदालत में पेश किया गया और वहीं उसकी सुनवाई हुई। पाकिस्तान ने उसे अकेला एक फौज के बराबर कहा है ( चाहता है कि हम उस पर भरोसा कर लें)। पाकिस्तान का दावा है कि जाधव भारत का जासूस है और उसे उसने सोमवार को फांसी की सजा सुनाई। यह एक ढकोसला भरा निर्णय है। भारतीय हॉग कमीशन ने बार बार जाधव सेव् मिलने की कोशिश की पर इज़ाज़त नहीं मिली। आई एस आई ने जाधव की कथित करतूतों का एक वीडियो भी जारी किया है जो देखने से ही फर्जी लगता है। इस पूरी कार्यवाही से असैनिक अदालत को अलग रखा गया क्योंकि पूरा फैसला इकबालिया बयान पर कायम है। पाकिस्तान की सीनेट में वहां के प्रधानमंत्री के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने कहा था कि जाधव के खिलाफ सबूत फकत बायानो पर कायम हैं। अजीज की बात नहीं मानी गई। पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की बात भी अनसुनी कर दी गई। अब भारतीय मीडिया में कहा जा रहा है कि सरकार जाधव को बचाने के लिए अंतिम प्रयास करे। यह सही कदम है और मीडिया की मांग भी जायज है। पर जो लोग पाकिस्तान की फितरत जानते हैं वे यह अप्रिय सत्य भी जानते हैं कि शायद ही ऐसा हो फिर भी प्रयास ज़रूरी है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसे " सोची समझी गई हत्या " कहा है। भारत के विदेश सचिव ने पाकिस्तानी हाई कमीशन को विरोध पत्र भी सौंपा है। पाकिस्तान पर कई और संगठनों जैसे एमन्सटी इंटरनेशनल , राष्ट्र संघ और सोशल मीडिया के माध्यम से दबाव डाला जा सकता है पर उससे कुछ होगा नहीं। ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो की फांसी के वक्त ऐसा कर के देखा जा चुका है। पाकिस्तानी सेना कसाई है। यह जिस तरह से विरोधियों को कुचलती है या बलोचिस्तान अथवा खैबर पख्तूनख्वा प्रतं में जिस तरह से दमन करती है उसकी रोशनी में जाधव का मामला देखें तो समझ में आ जायेगा कि क्या हो सकता है। बहुत कम विकल्प बचे हैं। भारत के कब्जे में ना पाकिस्तानी रिटायर्ड सैनिक अफसर है और ना मसूद अजहर जैसा कोई आतंकी जिसके बदले वह जाधव को छुड़ा सके। लेकिन निराशा कमज़ोर दिल की बात है। कुछ विकल्प अभी भी बचे हैं और सरकार को उसपर कोशिश करनी चाहिए। मसलन चीन अभी ऐसी हैसियत में है कि वह पाकिस्तान पर दबाव डाल सकता है पर सवाल है कि वह क्यों ऐसा करने लगा। सऊदी अरब दूसरा ऐसा देश है जो पाकिस्तान पर दबाव डाल सकता है। लेकिन वह एक रिटायर्ड नौ सैनिक अफसर के लिए ऐसा करेगा क्या। भारत रियाद से बहुत ज्यादा करवा सकता है तो यह कि वह पाकिस्तान पर सदभाव दे कर जाधव की मौत की सजा को उम्रकैद में बदलवा सकता है। अन्य जो देश हैं जिससे भारत मदद ले सकता है वे हैं संयुक्त अरब अमीरात और ईरान। उत्तेजना पूर्ण प्रतिक्रियाएं और राजनीतिक बड़बोलेपन को भारत को त्यागना होगा। अब चुप चाप कूटनीतिक तौर पर एकदम सर्वोच्च स्तर पर काम करना होगा।
यह दिलचस्प है कि जब हम यह देखें कि भारत में पाक के साथ क्या सलूक होता है। एक तरफ पाकिस्तानी सैन्य अदालत जाधव को मौत की सज़ा दी रही है और दूसरी तरफ भारत में पाकिस्तान के हाई कमिश्नर अब्दुल बासित खुल्लम खुल्ला अलगाववादियों का समर्थन करते हैं और लगातार टी वी पर बोलते है जिसमें भारत की क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती देते हैं और भारत से अलग होने के लिए कश्मीरी आतंकियों को उकसाते हैं। यही नहीं जिलानी और कश्मीर के अन्य अलगाववादी नेता क्या करते हैं ? वे पाकिस्तान से मदद हासिल कर विद्रोहियों को भड़काते हैं लेकिन हमारे यहां उन पर सैनिक अदालत मेंब कोई मुकदमा नहीं चलता। ये लोग हैं जो विदेशी जासूसी एजेंसी के लिये काम करते हैं ना कि जाधव रॉ के लिए करते थे। दरअसल पाकिस्तान के पास यह सोचने की क्षमता ही नही है कि रॉ कितनी सतर्क एजेंसी है। वह किसी जासूस को कराची और बलोचिस्तान में जासूसी के लिए अकेलेव भेज ही नही सकती है। रॉ ने बांग्लादेश के निर्माण के समय अपने अफसरों को थोड़े ही तैनात किया था। आई एस आई केवल अपहरण कर सकती है , जैसे उत्तरी कोरिया वाले करते हैं, और उनपर झूठा मामला बना सकते हैं और कबूल करवा सकते हैं । ये ज्यादा से ज्यादा गिलानी जैसे एजेंट्स की मदद से कश्मीर में पत्थरबाजी करवा सकते हैं, स्कूल जलवा सकते हैं और कश्मीरी नौजवानों को आतंकी बना सकते हैं।
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