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Thursday, April 20, 2017

दोनों सूरतों में मोदी जी की जय जय

दोनों सूरतों में मोदी जी की जय जय
थोड़ा पीछे लौटें और यह देखें कि क्या मुरली मनोहर जोशी , लाल कृष्ण आडवाणी एवं अन्य पर बाबरी ढांचा ध्वस्त करने के आरो से सम्बंधित मुकदमा फिर से खोले जाने के आदेश के पीछे क्या रहस्य है? ध्यान देने की बात है कि मुकदमा खोलने की अपील सी बी आई ने की है। यह वही सी बी आाई है ​जिसे सुप्रीम कार्ट ने ही एक बार सरकार के पिंजरे का तोता नकहा था और यही मोदी जु जब प्रधानमंत्री नहीं थे ते इसे “ कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन “कहा करते थे। यह वही सी बी आई है जो प्रधानमंत्री के तहत काम करता है और असी को जवाबदेह है। उसी सी बी आई ने इन नेताओ के खिलाफ मुकदमा खोलने की अपील की है। यह यकीनन एक राजनीतिक चाल है। जो बात सबसे ज्यादा चर्चा में है वह है आडवाणी जी का राष्ट्रपति पद के लिये उम्मीदवार बनने का रास्ता रोकना। अब यहां सवाल यह उठता है कि क्या आडवाणी जी को रोकने के लिये मोदी जी को यहां तक उतरने जरूरत है? वैसे भी सब जानते हैं कि वयोवृद्ध् नेता आलडवाणी जी की पार्टी पर इतनी पकड़ नहीं हैं कि उन्हें रोकने के लिये मोदी जी सी बी आई का हथकंडा अपनाना पड़े।

दूसरी बात जो चर्चा में है वह है कि यह खुद में एक सियासी चाल है जो 2019 के चुनाव को सामने रख कर चली गयी है। गौर करने की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने लगातार सुनवायी की बात कही है और ऐसे सुनवायी दो वर्षों में पूरी हो जायेगी तथा चुनाव के ठीक पहले फैसला आ जायेगा। अगर ये नेता दोषी करार दिये जाते हैं तो भाजपा यह ढिंढोरा पीटेगी उसने कानून की हिफाजत के लिये अपने नेताओं को कुर्बान कर दिया। अगर वे दाष मुक्त हो जाते हैं तो प्रचार किया जायेगा कि पार्टी के खिलाफ जो दशकों से कहा जा रहा था कि वह मुस्लिम विरोधी है यह बात गलत है। लगातार सुनवायी से भाजपा और संघ को मसला जीवित रखने का पूरा मौका मिलेगा और वोट का आधार बढ़ेगा। उमा भारती ने तो इसका संकेत दे दिया है कि “राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा बनकर वे गर्व महसूस कर रहीं हैं। “ उन्होंने तो यह भी कहा है कि इसमें कोथ्ॡ् षडयंत्र नहीं है जो भी है वह खुल्लम खुल्ला है। यही नहीं आंदोलन के इरादे की स्वीकृति पार्टी के कार्यकर्त्ताओं के लिये संदेश भी है कि वे इसमें गर्व जाहिर करें और जन सहानुभूति पैदा करें। हालांकि कोर्ट का फैसला चुनाव तक आ ही जायेगा इस बात की गारंटी नहीं है। हो सकता है यह लम्बा चले या हो सकता है उसके पहले भी खत्म हो जाय। इस केस में महज 105 लोगों की गवाहियां होनी हैं और अगर लखनऊ कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के हुक्म का अक्षरश: पालन करता है तो यह जल्द ही खत्म हो जायेगा। अगर सरकार इसमें हस्तक्षेप करती है और भाजपा नेताओं को क्लीन चिट देकर मामला रफा दफा करना चाहती है तो मामला जल्द निपट जायेगा, हो सकता है महीने दो महीने में ही। इसमें समय महत्वपूर्ण है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का समय 25 जुलाई को खत्म हो रहा है। अगर इसके पहले मामला गत्म हो जाता है और वे निर्दोष करार दे दिये जाते हैं तो एन डी ए शान से उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित करेगी। लेकिन यह सब सरकार पर निर्भर करता है। यह तभी हो सकता है जब लखनऊ कोर्ट में मामले की जान निकाल दी जाय। इसका मतलब है यह सरकार की पसंद पर निर्भर है। परंतु क्या सरकार ऐसा करेगी? उधर सी बी आई यह कहती चल रही है कि इन अभियुक्तों ने बाबरी ढांचे को ढाने की साजिश 1990 में ही कर ली थी, इसका उसके पास सबूत है। यह कुछ इस तरह था कि देखने में लग्गे कि यह काम भीड़ ने किया है। इसलिये इन नेताओं ने खुद को ढांचे से दूर रखा। वे लगबग 200 मीटर दूरी पर थे , ऐसा जता रहे थे कि वे घटना के समय वहां नहीं थे। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था पर जब सुप्रीम कोर्ट ने दुबारा सुनवायी की तो इसे स्वीकार कर समीक्षा का हुक्म दिया। सी बी आई से यह कहा गया है कि वह इसकी सुनवायी के समय कम से कम एक गवाह जरूर दे। यह एक मामला है कि इसमेंभाजपा के दोनों हाथों में लड्डू है। अगर नेताओं को सजा हो जाती है तब भी प्रचार का मसाला लिगा और अगर बरी हो जाते हैं तब भी लाभ है। दोनो सूरतों में मोदी जी की जय जय है।     

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