कोंग्रेस के लिए अच्छा अवसर
पिछले कुछ महीनों से भाजपा का अर्थव्यवस्था के विकास का बुलबुला फूटता जा रहा है. नोट बंदी की हाराकिरी से लेकर जी एस टी को ढीला करने की मजबूरी , नीतियों को सही ढंग से लागू नहीं करने से लेकर सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट और रोज़गार का तेजी से घटना इत्यादि किछ ऐसे मसाइल हैं जो मोदी सरकार की नाकामयाबी की कहानी कह रहे हैं. यहाँ तक की 2019 के चनाव को लेकर भा ज पा के नेताओं में दर साफ़ दिख रहा है. ये नए हालत कोंग्रेस के लिए एक अवसर की तरह है. कोंग्रेस चाहे तो इसका लाभ उठा सकती है और खुद को दूर दृष्टि वाली एक पार्टी के रूप में फिर से स्थापित कर सकती है. जबसे मोदी सत्ता में आये कोंग्रेस केवल असहिष्णुता को लेकर हाय तौबा मचाती रही और बाद में इसे महसूस हुआ कि यह व्यर्थ का शोर है इससे कोई उपलब्धि नहीं होने वाली है. उसके इस प्रयास से जनता में यह सन्देश गया कि पार्टी पास कोई अंतर्दृष्टि है ही नहीं. नतीजा यह हुआ कि वह हताश सी दिखने लगी. पार्टी ने इस हताशा से निकलने के लिए किसानों की आत्महत्या और गुजरात की बाढ़ का मसला भी उठाया पर इसके लिए या किसी भी अन्य समस्या के समाधान के लिए कोई नीति सुझाने में नाकामयाब रही. राजनीती के प्रति बेतरतीब नज़रिया और प्रतिघातक नीतियों के बीच अंदरूनी कलह के कारण पार्टी भाजपा के सुसंगत आर्थिक विकास की नीतियों सम्बन्धी जुमलों का तोड़ नहीं पेश कर सकी. साथ ही कोंग्रेस ने कई वर्षों से आर्थिक विकास को प्रचारित करना छोड़ दिया था जिसे मोदी जी विकास का चोला पहना कर नए रूप में जनता के सामने पेश किया. जबकि प्रत्यक्ष पूँजी निवेश और जी एस टी का आइडिया कोंग्रेस का ही था. वह इसे लागू नहीं कर सकी और भाजपा ने मैदान मार लिया. लेकिन अब यह साबित हो गया कि भाज पा ने अपने हाथ जला लिए है , क्योकि आइडिया तो उसने कोंग्रेस का उड़ा लिया पर उसे लागू करने में निपुणता के अभाव के कारण नीतियाँ पिट गयीं. ताल ठोकने वाली दिखावटी बहादुरी ने मोदी जी को चुनाव तो जितवा दिया पर जब शासन का मामला आया तो वह बहादुरी काम नहीं आ सकी. भारी विजय के कारन भा ज पा में अखाद पण आ गया और वह विशेषज्ञों की सलाह मानने से भी गुरेज करने लगी नतीजा हुआ कि मुल्क आरती आत्म विनाश की डगर पर बढ़ने लगा. कोंग्रेस को इस दुर्लभ अवसर का फाय्स्दा उठाना चाहिए तब ही वह 2019 के चुनाव में कुछ हासिक कर सकेगी. समय कम है और आगे बढ़ने की राह संकरी है इसलिए कोंग्रेस को सक्रीय हो जाना चाहिए साथ ही यह सब जो असहिष्णुता की बात है उसे त्याग कर आर्थिक विकास के मुद्दों को उठाना चाहिए. पार्टी को नयी रणनीति बनानी ही होगी. मतदाता भोजन और आवास को लेकर ज्यादा चिंतित हैं इसके बाद ही वह न्याय और लोकतंत्र की बात सोचेगा. जैसा कि जनता ने मोदी के चुनाव के समय किया था.जनता न्याय और लोकतंत्र को भी नज़रन्दाज़ कर किसी अधिनायकवादी नेता को जीता सकती है बशर्ते वह भरोसा दिला सके कि जनता की तात्कालिक आर्थिक ज़रूरतों को पूरा कर देगा.
कोंग्रेस देश के लाखों गरीब किसानों और मजदूरों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश करनी चाहिए कि वह उनकी दैनिक ज़रूरतों को भा ज पा से बेहतर ढंग से पूरा कर सकेगी. इस अवसर का लाभ उठाने के लिए कोंग्रेस को अपने घर को भी दुरुस्त करने की आवश्यकता है. बदलाव के लिए व्याकुल पार्टी के नौजवान नेताओं को अवसर मिलना ही चाहिए. इसके अलावा पार्टी को अर्थशास्त्रियों और बड़े व्यापारियों से भी सलाह लेनी चाहिए.देश के समक्ष अनगिनत आर्थिक और विकास के मसले हैं जिनके लिए नए नज़रिए और समाधान की ज़रुरत है. भा ज पा का आर्थिक विकास का नारा खोखला साबित होने लगा. कोंग्रेस को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए.
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