मोदी जी का गुब्बारा फूटा
अच्छे दिन और उगता भारत का जो गुब्बारा मोदी जी ने जनता के सामने फुला था वह अब फूट चुका है और गुब्बारे से निकली हवा से गुबार चारो ओर फ़ैल रहा है. कल तक जो मोदी जी के भक्त थे आज भीतर ही भीतर गुस्से में हैं. देश के मद्य्वार्गीय नौजवान जिन्होंने मोदी जिओ के अच्छे दिन के की बातों पर ना केवल यकीन किया बल्कि उसकी नीव पर अपने सपनों का महल भी ताबीर किया, आज गुस्से में है. आम आदमी के जीवन पर सीढ़ी असर करने वाली अर्थ व्यवस्था गिरावट की और है और गिरने की रफ़्तार डरावनी है. हाल में सुब्रमनियम स्वामी ने कहा था की “ अर्थ व्यवस्था मुंह के बल गिर रही है और उसे रोकने के लिए कई काम करने होंगे.” स्वामी छद्म सेकुलर नहीं जो भा ज पा की आलोचना कर रहे हैं बल्कि राहुल गाँधी पर ललकारने के लिए भा ज पा ने खुद उनका चुनाव किया था. स्वामी अकेले नहीं हैं जो इस तरह की बात कर रहे हैं. एक बार भा ज पा सरकार में मंत्री रह चुके अरुण शौरी ने भी कहा कि “ गिरती अर्थ व्यवस्था को संभालने के लिए मोदी जी के पास कोई फार्मूला नहीं है है और अब वे 2019 का चुनाव जीतने की हड़बड़ी में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को को हवा दे रहे हैं.” यही नहीं पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने भी मोदी सरकार की आलोचना की. स्वामी विख्यात अर्थ शास्त्री हैं और बाकी दो पूर मंत्री हैं इन्हें भीतर की बात का भी ज्ञान है. लेकिन आम मोदी भक्त – पढ़ा लिखा शहरी मध्यवर्गीय नौजवान क्या सोच रहा है? क्या वह अब भी इस बात पर यकीन कर रहा है कि उगता भारत या उभरता भारत का जुमला अच्छे दिन लाएगा? शायद उनका भरोसा ख़त्म हो रहा है या हो चुका है. अर्थ व्यवस्था के सारे संकेत बुरी तरह नकारात्मक हैं. कृषि उत्पादन में गिरावट आ रही है और इससे ग्रामीण क्रय शक्ति में ह्रास होगा. नोट बंदी के बाद जो मजदूर शहरों से गाँव लौट आये थे वे कृषि अर्थ व्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ बन गए हैं. विश्वस्त आंकड़ों के मुताबिक़ दिसंबर 2016 से अप्रैल 2017 के बीच लगभग 15 लाख लोगून के राजगार ख़त्म हुए हैं. बैंकों ने उद्योगों को ऋण देना कम कर दिया है . मैक किंसी रिपोर्ट के अनुसार भारत 4.66 करोड़ मजदूरों में से 35 प्रतिशत मजदूर मामूली मजदूरी पर काम कर रहे हैं. फिक्की के अनुसार अगले तीन महीने तक उद्योगों में लोगों का नियोजन बंद है. उद्योग धंधे दीवालिया होने की और बढ़ रहे हैं. दशहरे का त्योहारी मौसम ख़त्म हो गया और बाज़ार में उत्साह नहीं दिखा. सच तो यह है कि भारत का उद्यमी वर्ग हतोत्साहित हो चुका है और भारत तुकडे तुकडे में विदेशियों के हाथों बिक रहा है.
मोदी जी के विराट प्रचार अभियान ने भारत के युवकों को सम्मोहित कर दिया था. युवकों ने यह मान लिया कि सरकार हमसे झूठ नहीं बोल सकती. लगातार बेकार हो रहे नौ जवानों के समूह इसी सम्मोहन में थे कि “ हो सकता है हम दो चार बेकार हो गए नौजवान ही हों बाकी लोग मौज कर रहे हों.” अब यह तिलिस्म टूटने लगा है. जब मोह भंग की यह प्रक्रिया समाप्त हो जायेगी तो मोदी जी को नौजवानों के गुस्से से दो चार होना पडेगा. इसी गुस्से ने कोंग्रेस को 2014 में सत्ता से हटा दिया. अब यह मोदी जी के खिलाफ उभर रहा है. अब बहुत देर हो चुकी है और मोदी इसे रोक नहीं सकेंगे. यहाँ एक महत्वप[ऊर्ण प्रश्न यह भी है कि क्या मोदी इसे रोकने का हुनर जानते हैं? अगर वे जानते हैं तो इसे रोकने से कौन बाधित कर रहा है. मोदी जी दवा कर सकते हैं कि आय करने वाले समुदाय को सरकार के प्रति ज्यादा जवाबदेह बनाने तथा अन्य सुधार कुछ समय के बाद फायदा दिखाएँगे. अब हालात ये हैं कि जो लोग इस अवस्था से ज्यादा आहत हैं उन्हें भरोसे में लेना कठिन है.
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