डोकलम में गूँज
चीनी कमुनिस्ट पार्टी कि 19 वीं कांग्रेस में चीन के राष्ट्र्पति सही जिन पिंग ने अपने संबोधन में चीन को महाशक्ति बनाने के लिए अपने विचार प्रकट किये हैं. उन्होंने बताया है कि कैसे चीन “ समन्वित राष्ट्रिय शक्ति और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव के मामले में दुनिया कि अगुवाई करेगा. यह चीन के राजनीतिक नेतृत्व के लिए पञ्च साल कि शुरुआत है. इस शुरुआत का असर भारत चीन सीमा पर दिखाई पड़ने लगा है खास कर के डोकलम में. कुछ दिन पहले डोकलम में जो हुआ वह तो सब जानते हैं लेकिन यह बहुत कम लोगों को मालूम है की जिस स्थान पर वह जिच पैदा हुई थी चीन अभी भी उसी स्थल के पास है और अपने को विजयी बता रहा है. साथ ही वह समय का इन्तजार कर रहा है. भारत के वायु सेना प्रमुख चीफ एयर मार्शल बी एस धनोआ ने उम्मीद ज़ाहिर की कि चीनी सेना अपने ग्रीष्मकालीन अभ्यास के लिए चुम्बी घाटी में मौजूद है वह सर्दियों में अपने मूल स्थान में चली जायेगी. राष्ट्रपति शी के भाषण के प्रभाव के रूप में सेना को पक्का यकीन है कि 4000 किलोमीटर लम्बी वास्तविक नियंत्रण रेखा कई स्थलों पर चीनी सेना घुसपैठ करेगी. हालांकि शी ने अपने भाषण में कहा है कि “ चीन किसी देश के लिए ख़तरा नहीं बनेगा” पर उन्होंने चीन के क्षेत्रीय अखंडता कि भी बात कही है. उन्हों चीनी सेना – पीपल्स लिबरेशन आर्मी – से कहा है कि वह आधुनिक तकनीक अपनाए क्योकि हमले का क्षमता का मूल है तकनीक. चीनी सेना और राष्ट्रपति शी के तनाव को देखते हुए कहा जा सकता है कि देश में जो भी बदलाव आते हैं उनका असर सीमा पर होता है. विगत दो वर्षों में राष्ट्रपति शी ने सेना के कमांड में बदलाव कर पी एल ए के अधिकार छीन लिए. 2015 में शी ने सेना में काफी परिवर्तन किये. इन परिवर्तनों से सैनिक जनरलों की गुटबाजी कम हो गयी और उनका प्रभाव भी ख़त्म हो गया. उन्होंने डोकलम से चीनी सेना को पीछे हटाने के नाम पर भी कूटनीतिक सफलता पायी. देश के लोग उसे चीन की विजय मान रहे हैं. अब वे पार्टी पर शिंकजा कसने कि तैयारी में है. चीन के प्रमुख हितों में खुद को निर्णायक साबित करना उनके हित में है. चीन के अतीत को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वह क्षेत्रीय झगड़ों को स्थायी रूप दे देता है. डोकलम को ही देखें , चुम्बी घाटी में चीनी फ़ौज को लाया ही इसीलिए गया कि वह डोकलम में जैम जाय. हुआ भी वैसा ही. 2012 में जो हुआ उसी को देखें. स्कारबोरो शोआल में फिलिपिन्स के साथ जो हुआ वह तो इतिहास में दर्ज है. अब सवाल उठता है कि स्कारबोरो शोआल की घटना की पुनरावृत्ति होगी क्या ? दर असल भारत ने डोकलाम में यही नहीं होने देना चाहता था. चीन डोकलम कि तीनमुहानी पर अपनी तरफ से सड़क बनाना चाहता था.भारत ने उसे रोका. रोकने की इस क्रिया में भारत ने जो असाधारण दिखाई वह चीन की इसी आदत के कारण थी. फिलिपिन्स के साथ जो हुआ उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी थी. राष्ट्रपति शी ने अपने भाषण में इशारा किया है कि चीन के हित को आघात पहुंचाने वाली किसी भी स्थिति को मानने के लिए कोई हमें बाध्य नहीं कर सकता है. सीमा सड़क निर्माण में चीन अपना हित मानता है और डोकलम में उसकी मौजूदगी का कारण सड़क ही है. इधर भारत का अमरीका की ओर झुकाव , हिन्द महासागर में भारत की मुखरता और चीन के ग्रैंड प्लान का सख्ती से विरोध अपने आप में समर्नितिक तौर पर बहुत कुछ कहता है. अतः यह संभव है कि चीन डोकलम में नहीं किसी और इलाके में आजमाएगा. अगर ऐसा होता है तो वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बहुत कुछ सदा के लिए बदल जाएगा. यह समा को कैसे असर करेगा यह तो अभी कहना मुश्किल है. राष्ट्रपति ने जो अपना ग्रैंड विजन जाहिर किया उससे लगता है कि इसके प्रभाव सीमा पर व्यापक होगा.
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