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Monday, October 23, 2017

भूख  और सियासत

भूख  और सियासत

दुनिया की सबसे बड़ी हकीक़त भूख  है और इसी लिए हमारे मनीषियों ने भी कहा है कि “ बुभुक्षितः किम न करोति पापम” दुनिया की बड़ी से बड़ी सल्तनत भूख के विप्लव के आगे टिक नहीं सकी. भारत में भूख और राजनीती का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध रहा है. अभी हाल में ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि भूखों की संख्या के मामले में दुनिया के 119 देशों में भारत का स्थान 110वां  है.बस इस आंकड़े को लेके पक्ष और प्रतिपक्ष में जोर आजमाइश शुरू हो गयी. कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपने भाषणों में इस का जिक्र किया और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी  ने  राहुल गांधी की बातों का उपहास करते हुए कहा कि कुछ लोगों को निराशा का प्रसार किये बिना नींद नहीं आती. ऐसी बातों से समस्या तो ख़त्म नहीं होती. इसका एकमात्र जवाब है कि मोदी जी यह साबित करें कि जी एच आई के उस आंकड़े में जो बताया गया है उससे काम भूखे लोग भारत में हैं. जी एच आई का यह आंकडा कुपोषण, 5 साल की उम्र से कम बच्चों की मृत्यु दर , बच्चों का अवरुद्ध शारीरिक विकास तथा कम वजन पर संगृहीत तथ्यों  पर  आधारित है. सच तो नयः है कि ये पाचों गुणक भूख के कारण नहीं हैं. यह बाल पोषण रिपोर्ट ज़रूर है पर उसे भूख का नाम देना सुन्दरी को दिखाकर जूते के विज्ञापन की तरह है. ऐसी रपटों के लिए भूख ज्यादा बिकाऊ नाम है. जहां तक भारत का सवाल है तो एन एस एस ओ के आंकड़े के मुताबिक़ हालत सुधरे हैं. इस आंकड़े के अनुसार भारत में 1983 में 16 प्रतिशत आबादी भूखी थी जो 20 वर्ष बाद 2004 में घट कर 1.9 प्रतिशत हो गयी जबकि इस बीस वर्ष में आबादी भी बढ़ी. मोदी जी ने इन आंकड़ों को पेश ना कर सामने वाले की खिल्ली उडानी शुरू कर दी. भारत एक गरीब देश है और सांस्कृतिक  तौर पर लोग खुद को गरीब और भूखा  कहने में शर्म महसूस  करते हैं. पिछले साल यू एन डी पी द्वारा देश सर्वाधिक गरीब 16 जिलों के  सर्वे के अनुसार 7.5 प्रतिशत घरों में खाने को कुछ नहीं है और 29 प्रतिशत घरों में खाने के लिए बहुत थोड़ा है. नोबेल विजेता अर्थ शास्त्री एंगस डीटन और ज्यां देरेज के अनुसार भारत में 25 प्रतिशत निर्धनतम लोगों में1987 की तुलना में  कैलोरी की खपत  2004 में  बढ़ी है. जबकि इस अवधी में प्रति व्यक्ति आय में इजाफा हुआ है. इसका कारन यह है कि जिनकी आमदनी बढ़ी है वे कैलोरी युक्त खाद्य कम खरीदते है. ये भूख की कमी को पूरा नहीं करते बल्कि खुद को बड़ा दिखाना चाहते हैं. यही नहीं आदतें भी बदल रही है. ओःले लोग मीलों चल कर काम पर पहुँचते थे अब साइकल से आते हगें बस से आते हैं या एनी साधनों से आते है. इससे कैलोरी की अधिक मात्रा लेने की ज़रूरात नहीं होती. कृषि, उद्योग और अन्य सेवाओं में मशीनों का वर्चास्व हो गया. शारीरिक श्रम ख़त्म हो गए. इसके कारण कैलोरी को ग्रहण कने की मात्रा भी घटी है और उसी मात्रा पर आधारित ये आंकड़े कुपोषण की गलत तस्वीर दिखाते हैं. निति आयोग के पूर्व अध्यक्ष अरविंद पनागारिया ने सही कहा था कि बाल कुपोषण और विकास अवारुधता के ये अंतर्राष्ट्रीय आंकडें सही नहीं हैं.भारत में नवजात एवं शिशु मृत्यु दर अन्य अफ़्रीकी देशों से कम है. इन आंकड़ों में कहीं ना कहीं कुछ गड़बड़ ज़रूरे है. यहाँ बातें थोड़ी बढ़ा चढ़ा कर बतायी गयी हैं पर कुछ समस्याए ज़रूर हैं. भारत में शिशु मृत्यु दर प्रति एक हज़ार पर 47 है जबकि बंगलादेश में 38 , इंडोनेसिया में 27 और श्रीलंका में 10 है.  यह हो सकता है कि वैक्सीन के  प्रति जागरूकता में कमी और पोषकता के बारे में जानकारी का अभाव के कारन हो लेकिन यह समस्या नहीं है. यही नहीं मेडिकल शोधों से पता चलता है कि कैलोरी लेने के बावजूद कई मामलों में वह पचती नहीं है ख़ास कर डायरिया या अस्वच्छता की स्थिति में अक्सर ऐसा होता  पाता गया है. अब ऐसी हालत में पेट  भरा भी हो तो विकास नहीं होता. 

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