भा ज पा की मुश्किलें बढीं
भारतीय जनता पार्टी की मुश्किलें बढती जा रहीं हैं. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जहां बढती बेकारी और गिरती अर्थ व्यवस्था के लिए पार्टी की आलोचना करता चल रहता था अब उसका उपहास भी उड़ाने लगा है. अब वह खुल्लम खुल्ला कह रहा है कि उनके गलत सुधार गरीबों को दुःख पहुंचा रहे हैं और अमीरों को सहायता दे रहे हैं. संघ की श्रमिक इकाई भारतीय मजदूर संघ ( बी एम एस ) कहा है कि मोदी सरकार की आर्थिक तथा श्रमिक नीतिया पिछली कांग्रेस सरकारों की नीतियों का विस्तार है. उसने आरोप लगाया कि इस सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर “एन आर आई” सलाहकार बैठे हैं. और यही लोग आर्थिक अव्यवस्था का कारण हैं. बी एम् एस के अध्यक्ष सी के सजीनारायण ने कहा कि “ नीति निर्माण में उन लोगों का वर्चास्वा है जो वैश्वीकरण के तरफदार थे नतीजा हुआ कि सरकार दिशाहीन सुधारों की रह पर चल पड़ी और यह हमारी अर्थ व्यवस्था को हानि पहुंचा रहा है.” सजीनारायण ने आगे कहा कि “ सहचर पूंजीवाद हमारी अर्थ व्यवस्था की ख़ास खराबी है और सुधारों के बाद भी इसमें बदलाव नहीं आया.” बी एमएस नेता ने नीति आयोग की खिल्ली उडाई और कहा कि “इस सारी बीमारी का कारण नीति आयोग के अध्यक्ष बिबेक देबराय के गलत सुझाव हैं. हम फकत विदेशी निवेश को ही आमंत्रित नहीं कर रहे बल्कि विशेषज्ञों और सलाहकारों को भी आमंत्रित कर रहे हैं. जिस आदमी ने किसानो पर टैक्स का सुझाव दिया वही आदमी आर्थिक सलाहकार परिषद् का प्रमुख है , अब नतीजा क्या होगा यह सोच सकते हैं. इसी आदमी ने उदारीकरण, निगमीकरण और रेलवे के निजीकरण के सुझाव दिये. यहाँ तक कि रेलवे की नलों पर भी टैक्स लगा दिया. अब ऐसे लोग निति निर्माण के महत्वपूर्ण पदों पर रहेंगे तो यही कहा जा सकता है कि वर्तमान सरका पिछली सरकार की नीतियों का ही अनुसरण कर रही है. नतीजा यह हुआ कि हमारा देश बेरोजगार भारत बन गया.” नारायणन के मुताबिक़ नीति निर्माण का मूल कारन ही दोषयुक्त है. मुद्दों के शिनाख्त के तंत्र नाकाम पश्चिमी पूंजीवादी मॉडल पर आधारित है. उन्होंने कहा कि नीति आयोग के पुनर्गठन के सम्बन्ध में बी एम् एस ने हाल में जो प्रस्ताव पारित किया त्या वह उसे लागू करने की मांग जारी रखेगा. नारायणन ने कहह की गरीबी तो थी ही अब कृषि संकट , अवरुद्ध उत्पादन तथा बेरोजगारी बड़े संकट बन गयी है. बी एम् एस ने घोषणा की कि वह आगामी 17 नवम्बर को दिल्ली में सरकार के विरोध में रैली का आयोजन करेंगे. केवल बी एम एस अकेला हो इस विरिध में तो गनीमत थी अब इसमें भारतीय किसान संघ भी आकर जुड़ गया है. किसान संघ के नेता दिनेश कुलकर्णी ने मोदी सरकार की नीतियों पर गहरा रोष ज़ाहिर किया और कहा कि किसानों का संकट बढ़ा है. कुलकर्णी ने भी साफ़ कहा कि जब नीतियों की बात आती है तो यह कहा जा सकता है कि इस सरकार की नीतियाँ पिछली सरकार की नीतियों का विस्तार है. देश में किसानो की लगातार खराब होती जा रही स्थिति के बीच विभिन्न राजनीतिक दलों से एकजुट होकर उनके पक्ष मे आने का आह्वान करते हुए भारतीय किसान संघ ने आज यहां कहा है कि अन्न उपजाने वालों की स्थिति में सुधार लाने के उद्देश्य से चर्चा करने के लिए सरकार संसद का विशेष सत्र बुलाये जिसके बाद देशव्यापी कृषि नीतिबने. दिनेश कुलकर्णी ने कहा, देश भर की सरकारों ने अपने अपने स्तर पर स्वयं को किसानो का हितैषी बनाकर पेश किया है और बहुत कुछ करने का दावा भी किया गया है। सरकारों ने इस दिशा मंे कुछ प्रयास भी किये हैं लेकिन फिर भी इन भुमिपुत्रों की स्थिति में कोई सुधार नहीं आया है.
उन्होंने कहा, केंद्र सरकार को किसानों के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाना चाहिए जिसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के लोग आरोप प्रत्यारोप तथा उपलब्धियों एवं असफलताओ का बखान छोड़कर किसानों से जुडे़ मसले पर और किसानों की माजूदा स्थिति पर गंभीरतापूर्वक चर्चा करे और इसके बाद देशव्यापी कृषि नीति बनाया जाए. कुलकर्णी ने कहा,किसान या तो कृषि छोड़ रहे हैं या फिर मौत को गले लगा रहे हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है. कर्जमाफी अथवा सहायता राशि को किसानो की हर समस्या का समाधान मान लिया गया. देश के आम जन से सीधे जुड़े राजनितिक संगठनों ने सरकार के किलाफ आरोप लगाना शुरू कर दिया है. यह नीतियों की नाकामयाबी की पहचान हगे. सरकार ने यदि खुद को नहीं सुधारा और जनता की अपेक्शायों को पूरा नहीं किया तो भविष्य में मुश्किलें बढ़ सकती हैं.
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