मोदी जी का “ नया भारत “
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
बड़े बड़े नारों के लिए मशहूर श्री नरेंद्र मोदी का “ न्यू इंडिया “ का नारा लगता है अपने खोखलेपन के कारण उन्ही को परेशान कर रहा है. भा ज पा ने खुद महसूस करना शुरू कर दिया है कि देश की आरती स्थिति तेजी से बिगड़ रही है है. जो चमक के आंकड़े पेश किये गए थे या दावे किये गए थे किताबी थे, हकीक़त से दूर थे. नोट बंदी के दलदल में फंसे देश को जी एस टी के दलदल में फंसे देश को और गहरे धकेल दिया. छोटे कारोबार डूबने लगे , रोजी- रोजगार चौपट होने लगा. जी एस टी के लागू होने के पहले कारोबारी अपना माल निकालने लगे थे इस उम्मीद में कि इसके बाद नया स्टॉक करेंगे , पर ऐसा नहीं कर सके. अब विश्लेषक कह रहे हैं की टैक्स प्रणाली जब स्थिर नहीं हो जायेगी तब ही कुछ किया जा सकेगा. कब होगा यह मालूम नहीं. ... और यह सब हो रहा है त्योहारों के पहले. इसका असर 2017 की दूसरी छमाही में सकल घरेलू उत्पाद पर इसका असर पडेगा ही. जैसा लोगों ने महसूस किया है जी एस टी के बाद महंगाई भी बढ़ी है. बहु स्तरीय टैक्स से भी बात नहीं बन रही है. एकमात्र डीजल- पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतें ही सरकार के कोष को भर राहा है क्योकि यह जी एस टी से बाहर है. यही नहीं सरकार को जी एस टी की पहली टीस तो उस समय व्याकुल कर गयी जब 95 हज़ार करोड़ की जी एस टी वसूली में से 65 हज़ार करोड़ की वापसी की मांग की गयी. अगर सारा भुगतान कर दिया गया तो सरकार के खजाने में महज 30 हज़ार करोड़ बचा रह जाएगा. स्थिति कब ठीक होगी यह कोई नहीं जानता. बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशिल मोदी ने कहा कि हम एक जहाज बना रहे हैं और उसे पानी में उतार भी चुके हैं. यह साफ़ तौर पर केंद्र पर आरोप है जिसने बिना पूरी तरह सोचे इसे लागू कर दिया. संघ के बड़े आर्थिक चिन्तक भी अब कहने लगे हैं की हालत खराब है. हाल संघ के आर्थिक चिन्तक गुरुमूर्ति ने ने कहा कि जी एस टी , बैंक की एन पी ए , कालेधन पर बहुतरफ़ा हमला इत्यादि ने अर्थ व्यवस्था को भारी आघात पहुंचाया है. गुरुमूर्ति का यह कहना बड़ा महत्वपूर्ण है क्योंकि नोट बंदी और जी एस टी के सबसे बड़े तरफदार वही थे. जिन्हें भीतर की व्यवहारिक बातें मालूम होंगी वे जानते होंगे कि टैक्स विभाग के अफसर उन व्याव्स्सयियों के यहाँ नहीं जाते जो बड़े हैं क्योंकि उनसे उनके पुराने मधुर रिश्ते हैं. वे छोटे व्यापारियों को ही निचोड़ते हैं. यह बात केवल कहने की नहीं है. अभी कुछ दिनों में ही 800 बड़े टैक्स अफसरों ने नौकरी छोड़कर बड़ी कंपनियों में ज्वाइन किया है. अब संघ के चिन्तक आलोचना करने लगे हैं तो मतलब है कि बात बहुत गंभीर है तथा मोदी और जेटली के संभाले संभल नहीं रही है. निर्यातकों को पहले उत्पाद कर नहीं लगता था पर अब उन्हें जी एस टी का 18% जमा कराना पडेगा. हालांकि इसे निर्यात के तुरत बाद वापस कर दिये जाने की बात है पर जब वापस करने की मांग लेकर संबध विभाग में जाएँ तो ऐसा आचरण किया जाता है मानो वह कोई अपराधी है और टैक्स रिफंड मांग कर जुर्म कर बैठा. सोचिये भारत 300 अरब डॉलर का निर्यात करता है. और इसपर 18 प्रतिशत टैक्स देकर उनके चक्कर लगाने पड़ते हैं. अगले लोकसभा चुनाव में बस 18 महीने रह गए हैं और मोदी जी ने 2022 में पुरे किये जाने वाले बड़े बड़े वादे किये हैं. इसका साफ़ मतलब है कि वे दुबारा सत्ता में आने की सोच चुके हैं. इतहास गवाह है की सियासत कभी भी सीढ़ी रहा पर नहीं चलती. कई बार ऐसा होता है की लोकप्रियता के शीर्ष पर खड़े नेता के नीचे से जमीन निकल जाती है. 2018 के अंत तक मतदाता की मोदी जी वाडे करते हैं या जुमलेबाजी. आब न्यू इंडिया या स्वच्छ भारत क्या है वादा है या जुमलेबाजी. वे तो चाहते हैं कि ,
आँख पर पट्टी रहे, अक्ल पर टाला रहे
अपने साहबे वक़्त का यूँ मर्तबा आला रहे
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