राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा की 2019 के लिए तैयारी
भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह बुधवार को कोलकाता आये थे। उन्होंंने कहा कि हमें बंगाल से कम से कम 21 सीटें चाहिये। तृणमूल नेता ने उनकी इस बात पर टिप्पणी करते हुये कहा कि भाजपा मूर्खों के स्वर्ग में रहती है।दरअसल अमित शाह ऐसा इसलिये बोल रहे हैं कि उनके साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी कदमताल कर रहा है। दुनिया में यह पहला उदाहरण है कि खुद को एक सांस्कृतिक इकाई कहने वालाल संगठन अपने राजनीतिक इकाई के बाहों में बाहें डाल कर चल रहा है। वैसे ,यह केवल मोदी ही नहीं है जिन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जरूरत है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नेतृत्व का भी मानना है कि संघ परिवार का भविष्य भी भाजपा पर निर्भर करता है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बारे में बातें उसके विचारधारात्मक मूलसंगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उल्लेख के बिना शायद ही कभी पूरी होती हैं। चुनाव के दौरान संघ के समर्थन से ही भाजपा 2014 में सत्ता में आयी। तब से, संघ के नेताओं ने कभी भी नरेंद्र मोदी सरकार की कार्यशैली के विरोध में असहमति नही जताई है। कामकाज और इसकी आर्थिक नीतियों, जिनमें एयर इंडिया की बिक्री और सामान और सेवा कर भी शामिल हैं, का समर्थन किया है। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल के दौरान संघ् ने सरकार के कई काम का विरोध किया था। अब कुछ भी हो, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा अब सहजीवी आलिंगन में आबद्ध हो चुके हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा की राजनीतिक मशीनरी के लिए कैडर प्रदान करता है, जिससे नई चुनावी जमीन तैयार करने में मदद मिलती है, जैसा कि इस साल की शुरुआत में त्रिपुरा में हुआ था। जहां सैकड़ों कैडर उतरे और दो दशकों के सीपीआई (एम) के गढ़ पर कब्जा कर लिया। संघ ने अपनी सदस्यता का विस्तार रोक दिया और परिणाम स्वरूप भाजपा केंद्र में सत्ता में आ गयी। विपक्ष ने इस बढ़ती निकटता को समझने में जल्दबाजी की है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के हालिया हमलों से यह जाहिर होता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और पार्टी और सरकार के साथ अपने संबंधों को बारीकी से देखा जाय तो पता चलेगा कि संघ स्वयं परिवर्तन की हड़बड़ी में है। गणवेश में बदलाव से युवा सदस्यों को आकर्षित करने, सदस्यों को साप्ताहिक और मासिक बैठकों का विकल्प देने के लिए दैनिक बैठकों पर जोर देना इत्यादि शामिल है। लोगों की व्यापक परीधी तक पहुंचने के अपने अभियान में अनुभवी कांग्रेस नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को आमंत्रित करना और संघ के सदस्यों को उनका सम्बोधन इत्यादि सांस्कृतिक संगठन के राजनीतिक दृष्टिकोण की ओर इशारा करते हैं। अब, अगले आम चुनावों में एक वर्ष से भी कम समय है और भाजपा के मुख्य प्रचारक नरेंद्र मोदी के आस-पास की कुछ ऐसी चीजें हैं जो प्रशंसनीय नहीं हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुमानित 50 लाख अनुयायी हैं। संदेश स्पष्ट है: मोदी सरकार के पुनर्मूल्यांकन को सुनिश्चित करने के लिए उन्हें चुनावी पहिये को घूमाना होगा। 2014 में, यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सामाजिक, आर्थिक और सुरक्षा मुद्दों पर यूपीए की असफलताओं के खिलाफ रैली की, तो दोनों के लिए यह राष्ट्रवाद है। संघ और भाजपा के पास एक चुनावी मशीन के रूप संघ के काडर हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा दोनों का मानना है कि देश भर में फैले हुए विरोध प्रदर्शनों को राष्ट्रविरोधियों द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य मोदी सरकार को अस्थिर करना और इसे दूसरे कार्यकाल में सत्ता में आने से रोकना है। इसका उद्देश्य न केवल संयुक्त विपक्ष की संयुक्त शक्ति को जोड़ना है बल्कि यह संघ को हिन्दू अविभाजित परिवार के रूप में देखता है। यह केवल मोदी ही नहीं है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नेतृत्व का भी मानना है कि संघ परिवार का भविष्य भाजपा के केंद्र में सत्ता में बने रहने में है।