CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Sunday, November 11, 2018

केवल टोपी से क्या होगा?

केवल टोपी से क्या होगा?

यद्यपि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब सार्वजनिक अवसरों पर भाषण देने जाते हैं तो फहराती हुई पगड़ी में देखे जाते हैं। पिछले एक पखवाड़े से उन्हें तरह-तरह की टोपियां में देखा जा रहा है। कभी वे आजाद हिंद फौज की टोपी पहन लेते हैं तो कभी पनडुब्बी के सिपाहियों वाली टोपी पहन लेते हैं। दिवाली में वे आई टी बी पी के जवानों के साथ  मैरून रंग की टोपी पहने दिखे। जिस पर पीएम शब्द कढ़ाई से लिखा हुआ था। आजाद हिंद फौज की 75 वीं वर्षगांठ पर उन्होंने सुभाष चंद्र बोस वाली टोपी पहनकर लाल किले की प्राचीर पर ध्वजारोहण किया । जब उन्होंने आईएएनस अरिहंत नाम की पनडुब्बी के काम पूरे होने पर राष्ट्र को संबोधित किया तो उन्होंने परमाणु त्रिशूल की घोषणा की और उस समय उन्होंने पनडुब्बी के जवानों जैसी टोपी पहन रखी थी ।  उस टोपी पर साफ-साफ अक्षरों में प्रधानमंत्री शब्द लिखा हुआ था। लेकिन जब वे अपनी पार्टी या अपने प्रधानमंत्रित्व के प्रथम काल को बचाने के लिए सियासी जंग में उतरते हैं तो देश के नागरिक उनसे यह सवाल पूछना चाहते हैं कि जिन टोपियों को उन्होंने पहना क्या वे उनको माफिक आती हैं।
    प्रधानमंत्री की हाल की टिप्पणियों के चार महत्वपूर्ण पहलू थे। पहला कि, उन्होंने देश की सुरक्षा पर बल दिया और ऐसे मौके पर उन्होंने इंदिरा जी के प्रमुख मुहावरे को नहीं दोहराया। इंदिरा जी को हमेशा विदेशी हाथ का खतरा बना रहता था।  मोदी जी ने ऐसा कुछ नहीं कहा, पर जो उन्होंने कहा उसका अर्थ वही था। उन्होंने कहा कि यह परमाणु त्रिशूल बाहरी दुश्मनों से हमारी सीमा की सुरक्षा करेगा । हमारी सीमा को बाहरी खतरे हैं। दूसरी बात उन्होंने कही कि केवल भाजपा ने ही भारत को शक्तिशाली बनाया। अरिहंत वाले जलसे में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के नाम लिए। भारत के परमाणु और मिसाइल विकास में उनकी भूमिका की प्रशंसा की।  उन्होंने नेहरू, इंदिरा गांधी ,राजीव गांधी , इंद्र कुमार गुजराल, देवेगौड़ा अथवा चंद्रशेखर तथा चरण सिंह के नाम नहीं लिये।  यहां सवाल यह है कि अगर इन लोगों ने भारत के परमाणु कार्यक्रम की हिफाजत नहीं की होती ,खासकर के पश्चिमी निगरानी से ,तो क्या बाजपेई 1998 में सफल परमाणु परीक्षण कर पाए होते? तीसरी बात कि बेशक नेहरू गांधी परिवार भारत में अपने नाम का प्रसार कर रहे हैं और करते रहे हैं पर मोदी जी की प्रवृत्ति तो ऐसी लग रही है कि वह अपनी विरासत तैयार करने में लगे हैं । सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे लोगों की मूर्तियां लगाना इसलिए वे उचित समझते हैं कि पटेल नेहरू के व्यक्तित्व और राजनीति के विरोधी थे। ऐसा सचमुच था या नहीं लेकिन मोदी जी या मानते हैं और वे ऐतिहासिक भूलों को सही करने में लगे हैं ।  इसी क्रम में शहरों के नाम बदले जा रहे हैं ।चौथी बात या चौथा पहलू जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है कि मोदी जी को यकीन है कि सुरक्षा के मामलों को उठाने  से लोगों का ध्यान महत्वपूर्ण मसलों से हट जाएगा। वह महत्वपूर्ण मसला देश की आर्थिक स्थिति है। विगत कुछ हफ्तों से भारतीय रिजर्व बैंक अपनी स्वायत्तता के लिए लड़ रहा है। सब  लोग जानते हैं कि 2 साल पहले की नोट बंदी के बारे में रिजर्व बैंक ने मंजूरी नहीं दी थी। पिछले 2 वर्षों से मोदी जी लगातार विश्वास दिलाने में लगे हैं कि करेंसी की कमी कभी नहीं हुई । लेकिन 2 वर्ष से मोदी जी के तरफ से इस मामले पर एक भी ट्वीट नहीं आया। अलबत्ता वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने फेसबुक पर इस संबंध में जरूर कुछ लिखा था और कहा जा सकता है प्रधानमंत्री जी ने नोटबंदी  के कारण आई विपत्ति को पूरी तरह से नजर अंदाज कर दिया।
         क्या हम भूल सकते हैं इसे आसानी से? 22 नवंबर 2016 को संसदीय भारतीय जनता पार्टी ने एक प्रस्ताव पास कर प्रधानमंत्री मोदीजी  के इस प्रयास की प्रशंसा की थी। इस प्रस्ताव को राजनाथ सिंह और तत्कालीन  सूचना और प्रसारण मंत्री  वेंकैया नायडू ने प्रस्तुत किया था। भाजपा ने " इस पहल को व्यवस्था की सफाई की परियोजना  के रूप में स्वीकार किया और कहा था कि यह सामान्य और राजनीतिक जीवन में ईमानदारी को बढ़ावा देगा। इससे  सामान्य जन और गरीबों को लाभ होगा।" लेकिन, इस वर्ष ना राजनाथ सिंह ना वेंकैया नायडू और ना विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस पर एक शब्द भी कहा। अमित  शाह ने जेटली के संदेश को ट्वीट किया ।इससे लोगों के बीच यह भ्रम पैदा हुआ कि इस सारे काम के लिए जेटली ही दोषी हैं।
        यहां सवाल उठता है कि कुछ राज्यों में  होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे मोदी जी के आर्थिक व्यवहार के लिए जनादेश होंगे क्या?
    

0 comments: