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Sunday, November 25, 2018

अपराध और आतंकवाद

अपराध और आतंकवाद

26 /11 का हमला हमारे देश का पहला ऐसा आतंकी हमला था जिसे टेलिविजन पर देखा गया । ठीक, उसी तरह जिस तरह 2002 का गुजरात का दंगा टेलीविजन पर देखा गया था। इसमें जो समझने की सबसे महत्वपूर्ण बात थी वह थी 2002 और 2008 की घटनाएं ,जिसे कहेंगे भयानक हिंसा , बहुत ज्यादा दृश्य थी। 26/11  के उस हमले के  विजुअल्स जड़ कर देने वाले थे । टेलिविजन पर दौड़ते - भागते आतंकी ,हमले रोकने की कोशिश करते , पुलिस अधिकारी और उनके बैकग्राउंड में गेटवे ऑफ इंडिया और ताज होटल, कोलाबा के यहूदियों के केंद्र पर घूमता हेलीकॉप्टर और उसे उतरते कमांडो, कोने में कहीं- कहीं छिपे पत्रकार और कैमरामैन ,ताज होटल से निकलता धुआं, बेचैन लोग और  लाशें, सब कुछ ऐसा लग रहा था जैसे एक कहानी का हिस्सा हो ।जब तक वहां शांति नहीं हुई तब तक यह सब चलता रहा और शांति के बाद वह घटना आतंकवाद की अंतरराष्ट्रीय डायरेक्टरी में शरीक कर ली गई है।
     इस घटना के 10 वर्ष हो  गए। इतना समय हैरत और गुस्से को शांत करने के लिए बहुत होता है । लेकिन भारतीय बहुत ही भावुक लोग हैं और हम अभी भी इस घटना के लिए पाकिस्तान की तरफ उंगली उठा रहे हैं तथा 26 नवंबर को शोक दिवस के रूप में याद करते हैं । लेकिन शायद ऐसा नहीं है । हां, अलीगढ़ विश्वविद्यालय में  नमाजे जनाजा का आयोजन देशद्रोह के आरोप के लिए  काफी है। लेकिन शायद यह काफी नहीं है।  अभी वक्त नहीं आया है लेकिन एक दिन ऐसा आएगा जब नेटवर्क चलाने वाले टीवी कार्यक्रम के साथ मिलकर इस तरह के हमलों की योजना बनाएंगे । जरा सोचिए बगदाद में जनवरी 1991 की बम बाजी। ठीक उसी समय हुई थी जब न्यूयॉर्क के लोग लौट रहे थे और टेलिविजन  के सामने बैठे थे। यहां गलत ना समझें । पूरी घटना शुरू से आखिर तक एक भारी दुखद घटना थी और इसका प्रभाव अरसे तक कायम रहने वाला है। इस घटना में लगभग 160 लोग मरे थे। कई पुलिस वाले मारे गए थे हेमंत करकरे भी उनमें शामिल थे। यही नहीं बहुत से लोग ऐसे भी होंगे जो घायल होकर पड़े होंगे और इस दुखद दुस्वप्न  को भूल नहीं पाए होंगे ।  इसी के साथ इस बात को भी याद करें कि किसी ने यह झूठी अफवाह फैला दी थी अजमल कसाब को जेल में बिरयानी खिलाई जा रही है।
       जो भी हो, टेलिविजन पर दिखाई गई इस दुखद घटना के बाद एक गंभीर तथ्य यह है कि आतंकवाद का प्रसार और हिंसा आधुनिकता के कुछ लक्षणों के साथ सहभागी होती है। यह अति असमानता का प्रतिफल है, जो बाजार के आदर्शों के अन्याय के कारण उत्पन्न होती है।  दिनोंदिन इसका रुख भयानक होता जाता है। यकीनन आधुनिकता के अन्य स्वरूप भी हैं। आधुनिकता सौहार्द और समानता की जननी भी है । दिल्ली के लोगों ने इसका उदाहरण देखा है । एक अलग टोपी पहन लेने के कारण जुनैद को पीट-पीटकर मार डाला गया था । ऐसे लोग भी अस्थाई तौर पर सभ्य थे और इसके बाद सभ्य  भी हो गए और अपने कामकाज में लौट गये। सामान्यीकृत हिंसा का समन्वय आमतौर पर सरकार  करती है। जो कभी-कभी या आपराधिक रूप में भड़कती  है और आधुनिकता में यह स्वाभाविक है। आतंकवाद दरअसल विचारधारा की पैंतरेबाजी है ।खासकर ऐसे समय में जब लोग इसकी प्रक्रिया को समझने से इनकार कर देते हैं ।इसकी प्रक्रिया वैविध्य पूर्ण और संकट की स्थिति में विशेष रूप से जुड़ी हुई  होती है तथा इतिहास के बोझ  से ग्रस्त रहती है, और इसलिए आपराधिक प्रतीत होती है। अपराध एक वस्तुनिष्ठ वास्तविकता है। यह दुनिया में एक वस्तु है , खासकर उत्पीड़न में सामान्य है घटना है । आतंकवाद के सिद्धांत का विरूपण साक्ष्य और दुनिया में इसे स्पष्ट करने का एक तरीका है आतंक। आतंकवाद एक विचारधारा या प्राविधिकी  और हिंसा की अभिव्यक्ति है। वस्तुतः यह सिद्धांत खुद ही वस्तु को प्रेरित करता है ताकि उसका विवरण दिया जा सके। यही कारण है कि आतंकवाद को परिभाषित करने के प्रयास अक्सर नाकाम हो जाते हैं । जो लोग तथा देश इस कोशिश में लगे रहते हैं वह गोल - गोल घूमते नजर आते हैं। उदाहरण के लिए एक आदमी की नजर में जो आतंकी है वह दूसरे आदमी की नजर में देशभक्त सिपाही है या शहीद है । आतंकवाद एक शक्तिशाली सिद्धांत है। इसलिए नहीं कि यह विश्व की प्रकृति में अंतर्दृष्टि के लिए सशक्त माध्यम है बल्कि इसलिए कि ताकतवर लोगों को अपना वर्चस्व बनाए रखने की सुविधा प्रदान करता है। वह वर्चस्वता  सभी प्रकार के विरोध और हिंसा को नाजायज घोषित करती है । हाल में एक केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आतंकवादी हिंसा विकास के लिए सबसे बड़ा खतरा है, लेकिन इस संभावना के साथ यह भी तो कहा जा सकता है कि कुछ खास किस्म के विकास आतंकवाद के सबसे बड़े जनक हैं और वह हिंसा को बढ़ावा देते हैं । हिंसा के मामले में विविधता और सूक्ष्म अंतर को मानने से इनकार  ही आतंकवाद  की विचारधारा की मुख्य समर नीति है। इसलिए यह सब स्वीकार करते हैं कि जो सरकार करती है वह आतंकवाद नहीं है बल्कि इस तरह की हिंसा का विरोध आतंकवाद की परिधि में आता है। जिसे आतंकवाद कहते हैं यह हमारी वैचारिक दृष्टि का दोष है। इसलिए जिस पर आज हम बात कर रहे हैं वह घृणित अपराध है तथा अपराध को मिटाने का प्रयास होना चाहिए न कि इसे आतंकवाद की संज्ञा देकर महिमा मंडित करने में  अपनी ऊर्जा खत्म करनी चाहिए।

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