क्यों नहीं होता वर्तमान का जिक्र
पिछले कुछ दिनों से मी टू अभियान चर्चा का विषय रहा और कई लोगों पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगे । लेकिन सब के सब बहुत पुराने थे। कई-कई वर्ष पुराने और आरोप लगाने वाले समाज के उच्च वर्ग से संबंधित थे तथा वे लोग भी जिन पर आरोप लगे थे वह भी लगभग उन्हीं वर्गों से थे। इनमें फिल्म अभिनेत्रियां ,महिला पत्रकार वगैरह लोगों ने अभिनेताओं ,निर्देशकों, पत्रकारों और नेताओं पर आरोप लगाए । यह आरोप भी बहुत पुराने थे। महिला और बाल विकास मंत्रालय की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2014 से 18 के बीच कार्य स्थलों पर यौन उत्पीड़न के मामलों में 43% की वृद्धि हुई है। इनमें उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 4 वर्षों में उत्तर प्रदेश में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के 726 मामले दर्ज किए गए। यह आंकड़ा देशभर में कुल जितने मामले दर्ज किए गए थे उनका लगभग एक तिहाई है। सबसे बदनाम दिल्ली इस मामले में दूसरे स्थान पर है और हरियाणा तीसरे स्थान पर जबकि मणिपुर और मेघालय में 2015 से 3 वर्षों के बीच एक भी ऐसी घटना नहीं हुई । महिला विकास और बाल कल्याण मंत्रालय की इस रिपोर्ट से स्पष्ट जाहिर होता है कि देश में यौन उत्पीड़न के मामले बढ़ रहे हैं। लेकिन, हाल में बहु प्रचारित मी टू अभियान में वर्तमान के मामलों का कोई जिक्र नहीं किया गया।
इंडियन बार काउंसिल की रिपोर्ट बताती है कि कार्यस्थल पर होने वाली यौन हिंसा के खिलाफ 70% महिलाएं रिपोर्ट ही नहीं दर्ज कराती हैं। यह हाल तब है जब रिपोर्ट दर्ज कराने का अनुपात 51% बढ़ा है। कामकाजी महिलाओं के यौन उत्पीड़न से जुड़े कानून के तहत ऐसे स्थान पर जहां 10 या 10 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं वहां एक आंतरिक शिकायत समिति का होना अनिवार्य है। लेकिन, हाल के आंकड़े बताते हैं कि भारत की 36% और मल्टीनेशनल कंपनियों 25% में आंतरिक शिकायत समिति का गठन नहीं हुआ है। अभी हाल में मी टू अभियान के बाद भी कोई भी महिला या लड़की वर्तमान में अपने साथ हो रहे यौन शोषण के खिलाफ खुलकर नहीं आई या उसने कोई शिकायत दर्ज कराई आखिर क्यों?
देश में व्याप्त बेरोजगारी इसका मुख्य कारण है । क्योंकि अगर नौकरी छूट जाती है तथा कहीं और काम नहीं मिलता है तो वह लड़की क्या करेगी ? खासकर के ऐसे मौके पर जब यौन शोषण के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के नाम पर उसकी नौकरी गई हो। सर्व व्याप्त सोशल मीडिया के कारण उसका उसका प्रचार हो ही जाता है। इस प्रचार के बाद उस लड़की या महिला को कहीं भी काम मिलना मुश्किल हो जाता है तथा बेइज्जती होती है वह अलग। भारतीय शहरों और कस्बों में यौन शोषण आम बात है। वह बेकार रहेगी तो यह संकट और बढ़ता जाएगा इसलिए लड़की या महिला इस तरह की रिपोर्ट दर्ज कराने से पहले यह सोचती है। इससे उसकी आर्थिक आत्मनिर्भरता खत्म हो जाएगी और भविष्य भी दुखमय हो जाएगा। लड़कियां अपने करियर के डर से रिपोर्ट नहीं दर्ज करातीं क्योंकि इसमें बहुत बड़ा जोखिम है। यही नहीं, उसका साथ देने वाला भी कोई नहीं होता और इस कारण हुई बदनामी के चलते शादी में भी दिक्कत है आती है । पुरुष मानसिकता कुछ ऐसी है कि कोई भी यौन शोषण की शिकार महिला से शादी करने को तैयार नहीं होता। यही नहीं, आंतरिक शिकायत समिति के सदस्यों को कानून की पूरी जानकारी नहीं होने से भी मामला गड़बड़ हो जाता है और भ्रष्टाचार एक दूसरा मसला है। कई बार यह भी देखा गया है दबाव के कारण यह समिति केस को हल्का कर देती है और निष्पक्ष जांच नहीं हो पाती । इस दुरावस्था से गुजरने के बाद कई महिलाओं ने आत्महत्या तक कर ली है । कई बार पुरुष प्रधान समाज में महिला के व्यवहार को ही यौन शोषण का कारण समझा जाता है और उसे ही दोषी करार दे दिया जाता है । इसलिए मध्यम वर्ग में वर्तमान में ऐसा कुछ भी नहीं किया जा रहा है ना कहा जा रहा है। जो कुछ भी है वह अतीत की घटना है और उच्च वर्ग से ही संबंधित है, जहां जीवन में सुरक्षा है और भविष्य पूरी तरह सुरक्षित है।
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